बीएमसी के चुनाव इस साल के अंत में होने वाले हैं। इससे पहले शिवसेना ने भाजपा का मुकाबला करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन इस बीच उद्धव ठाकरे के करीबी मंत्री अनिल परब पर ईडी के छापों से तैयारियों पर पानी फिरता दिख रहा है। परिवहन मंत्री अनिल परब को मुंबई की राजनीति का जमीनी नेता माना जाता है। वह मुंबई में होने वाले किसी भी चुनाव में पार्टी के लिए अहम रणनीतिकार होते हैं। शिवसेना के दिवंगत नेता मधुकर सरपोतदार के करीबी रहे अनिल परब ने लंबे समय तक शिवसेना की स्टूडेंट विंग भारतीय विद्यार्थी सेना के लिए काम किया था। तब राज ठाकरे इसके मुखिया होते थे और बाल ठाकरे सीधी नजर रखते थे।
परब के लिए पुलिस अफसरों पर बरसे थे बाल ठाकरे
अकसर अनिल परब वह किस्सा सुनाते हैं कि जब एक आंदोलन के चलते पुलिस अफसरों ने उन्हें अरेस्ट कर लिया था तो कैसे बाल ठाकरे ने उनकी क्लास लगाई थी। इससे समझा जा सकता है कि अनिल परब की ठाकरे परिवार में कितनी पैठ रही है। 1990 में देश में केबल टीवी का बिजनेस शुरू ही हो रहा था। यह कारोबार दबंग लोगों के हाथों में ही होता था और इसमें शिवसेना की पैठ भी अनिल परब के चलते ही बनी थी। इसी दौरान उनकी जमीनी पकड़ मजबूत हुई और जमीन पर वह मसल पावर और मनी पावर दोनों रखने वाले नेता बनकर उभरे थे।
राणे और राज के झटके से शिवसेना को बचाया था
इससे समझा जा सकता है कि मुंबई की राजनीति में अनिल परब शिवसेना के लिए कितना अहम स्तंभ हैं। ऐसे में ईडी की छापेमारी और उनकी गिरफ्तारी के डर ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को भी गहरा दर्द दिया है। बीएमसी का चुनाव शिवसेना के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है और उसका भाजपा से सीधा मुकाबला होना है। अनिल परब के महत्व को दो और वाकयों से समझा जा सकता है। 2005 में पूर्व सीएम और तत्कालीन नेता विपक्ष नाराण राणे ने उद्धव से मतभेदों के चलते शिवसेना छोड़ दी थी। इसके बाद 2006 में ही राज ठाकरे ने अपना रास्ता अलग कर लिया था और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था।
कैसे बाल ठाकरे और उद्धव के करीबी हुए थे अनिल परब
ठाकरे और राणे के शिवसेना छोड़ने पर लीडरशिप को झटका लगा था। ग्रासरूट पर अच्छा दखल रखने वाले दो नेताओं के पार्टी छोड़ने पर एक खालीपन पैदा हुआ था। लेकिन इस संकट से पार्टी कुछ ही सालों में उबर गई थी और इसमें अहम भूमिका अनिल परब की भी थी। उन्हें बाल ठाकरे ने मुंबई का विभाग प्रमुख बनाया था। शहर में उन्होंने मजबूती से संगठन को खड़ा करने का काम किया था। यही वह दौर था, जब अनिल परब को शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और उद्धव के करीबी नेताओं में शुमार किया जाने लगा था।