अमानवीयता की कोई हद होती है तो उसे पार कर दिया है म्यांमा की सेना ने। क्रूरता की कोई हद होती है तो उसे पार कर दिया है म्यांमा की सेना ने। अत्याचारों की कोई हद होती है तो उसे पार कर दिया है म्यांमा की सेना ने। जी हाँ, सरकार का तख्तापलट करने के बाद से म्यांमा की सेना लगातार आम जनता को प्रताड़ित कर रही है, देश में खौफ का वातावरण बना रही है लेकिन दुनिया चूँ तक नहीं कर रही है। आज की इस रिपोर्ट में हम कुछ ऐसी कहानियाँ बयाँ करेंगे जो आपकी रुह कंपा देगी। आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आपको यह अत्याचार सुनकर ही डर लग रहा है तो जिस पर बीत रही होगी उसका क्या हाल होगा।
चिमटे से खाल की खिंचाई
तो आइये शुरुआत करते हैं इस रिपोर्ट की। म्यांमा में ग्रामीण इलाके में सैन्यकर्मियों ने एक युवक की खाल को चिमटे से खींचा और उसके सीने पर तब तक लात मारते रहे, जब तक उसके लिए सांस लेना मुश्किल नहीं हो गया। इसके बाद उन्होंने उसके परिवार को लेकर भी उसे तब तक ताने दिए, जब तक वह शिथिल नहीं पड़ गया। उन्होंने उसका उपहास उड़ाते हुए कहा, ‘‘तेरी मां अब तुझे नहीं बचा सकती।’’ हम आपको बता दें कि इस युवक और उसके मित्र को उस समय अचानक गिरफ्तार कर लिया गया था, जब वे अपनी मोटरसाइकिल से अपने घर जा रहे थे। सेना द्वारा उत्पीड़न केंद्र में तब्दील किए गए एक टाउन हाल में उन्हें घंटों प्रताड़ित किया गया। युवक ने कहा, ‘‘वे लोग रुक ही नहीं रहे थे। वे लगातार यातनाएं दे रहे थे।’’ उसने कहा, ‘‘मैं केवल अपनी मां के बारे में सोच रहा था।’’ सैनिकों ने टाउन हॉल के अंदर युवक को तेज चट्टानों पर घुटने टेकने के लिए मजबूर किया, उसके मुंह में बंदूक तान दी और उसके पैरों पर लाठियां चलाईं। उन्होंने अपनी चप्पलों से उसके चेहरे पर हमला किया।
सुनियोजित तरीके से प्रताड़ना
म्यांमा में इस साल फरवरी में तख्तापलट किए जाने के बाद से देशभर में हिरासत में लिए गए लोगों को सेना बड़े ही सुनियोजित तरीके से प्रताड़ित कर रही है। हिरासत में लेने के बाद हाल में रिहा किए गए 28 लोगों के साक्षात्कार के बाद यह जानकारी मिली। तस्वीरों संबंधी साक्ष्य, रेखाचित्रों और पत्रों के साथ-साथ हाल में दोषद्रोही करार दिए गए सैन्य अधिकारियों की गवाही के आधार पर की गई जांच तख्तापलट के बाद से अत्यंत गोपनीय हिरासत प्रणाली के बारे में समग्र जानकारी देती है। सेना और पुलिस ने फरवरी से 1,200 से अधिक लोगों की कथित रूप से हत्या कर दी है। कैदियों ने कहा कि अधिकतर लोगों को सैन्य परिसर में यातनाएं दी गईं, लेकिन सेना ने सामुदायिक सभागारों और शाही महल जैसी सार्वजनिक सुविधाओं को पूछताछ केंद्रों में बदल दिया है। समाचार एजेंसी ‘एपी’ ने साक्षात्कारों एवं उपग्रह से मिली तस्वीरों के आधार पर जेलों और पुलिस लॉकअप के अलावा म्यांमा में दर्जनों पूछताछ केंद्रों की पहचान की है। कैदी देश के विभिन्न हिस्सों से और विभिन्न जातीय समूहों से संबंध रखते हैं। इनमें 16 वर्षीय लड़की से लेकर बौद्ध भिक्षु भी शामिल हैं। कुछ लोगों को सेना के खिलाफ विरोध करने के लिए हिरासत में लिया गया था, जबकि कुछ लोगों को बिना किसी स्पष्ट कारण के हिरासत में लिया गया। इन कैदियों से कई सैन्य इकाइयों और पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन पूरे म्यांमा में उनके प्रताड़ित करने के तरीके समान थे। एपी ने कैदियों के नाम उजागर नहीं किए है ताकि सेना की कार्रवाई से उनकी रक्षा की जा सके।
यह कहानियां आपको भावुक कर देंगी
जिन लोगों को प्रताड़ित किया गया है उनकी कहानी सुन कर आप भी रो पड़ेंगे। एक भिक्षु को शर्मिंदा करते हुए उन्हें एक मेंढक की तरह चलने पर मजबूर किया, एक लेखा अधिकारी को बिजली के झटके दिए गए और एक कलाकार के सिर पर तब तक चोट की गई जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। बताया जाता है कि म्यांमा में सेना ने युवाओं और लड़कों समेत हजारों लोगों को अगवा किया, शवों और घायलों का इस्तेमाल आतंक फैलाने के लिए किया और वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के दौरान चिकित्साकर्मियों पर जानबूझकर हमले किए। फरवरी से अब तक सुरक्षा बलों ने 1,200 से अधिक लोगों की हत्या की जिनमें से अनुमानत: करीब 131 लोगों को यातनाएं देकर मार डाला।
सेना द्वारा प्रताड़ित किए गए कुछ लोगों की कहानियों की बात करें तो सेना की पकड़ से भागते समय 31 वर्षीय भिक्षु को गोली मारी गई, उन्हें हथकड़ी लगाई गई और डंडों तथा राइफलों से पीटा गया। सुरक्षा बलों ने उनके सिर, छाती और पीठ में लात मारी। उन्होंने आपराधिक इरादे के सबूत बनाने के लिए भिक्षु और अन्य प्रदर्शनकारियों की गैसोलीन की बोतलों के साथ फोटो खिंचवाई। सैनिकों ने भिक्षु को आम लोगों जैसे कपड़े पहनने को मजबूर किया और उन्हें मांडले पैलेस में बनाए गए उत्पीड़न केंद्र भेज दिया। भिक्षु कहते हैं, ‘‘वह पूछताछ केंद्र किसी नर्क की तरह था।’’ भिक्षु को मेंढ़क की तरह चलने पर मजबूर किया गया, उन्हें ऐसे बंदीगृह में रखा गया जहां शौचालय नहीं था। कैदियों को एक कोने में पेशाब करना पड़ता था और प्लास्टिक की थैलियों में मल त्याग करना होता था। छह दिन बाद भिक्षु को पुलिस थाने भेजा गया जहां उन्हें 50 अन्य कैदियों के साथ एक काल कोठरी में रखा गया। वहीं भी यातनाएं जारी रहीं।
अमेरिका नाराज
इस बीच, इस मुद्दे पर अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने नाराजगी जताते हुए इसकी जांच की मांग की है। म्यांमा में मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष विशेषज्ञ ने भी सेना पर पुरजोर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए जाने की अपील की है। अमेरिका में सांसदों ने कांग्रेस से अपील की है कि वह ‘एपी’ की रिपोर्ट के मद्देनजर कार्रवाई करे। विदेश मंत्रालय ने म्यांमा के लिए उसके एक अन्य नाम ‘बर्मा’ का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘‘हम बर्मा के सैन्य शासन द्वारा देशभर में लोगों को सुनियोजित तरीके से प्रताड़ित किए जाने से आक्रोशित और व्यथित हैं।’’ बहरहाल, देखना होगा कि इस जांच से क्या निकल कर आता है लेकिन एक चीज तो साफ है कि म्यांमा, अफगानिस्तान, सूडान, उत्तर कोरिया जैसे दुनिया के कई देशों में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है लेकिन संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्था कुछ नहीं कर पा रही है।