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पुस्तक समीक्षा

बिंदलू-कहानी संग्रह

(नीना अन्दोत्रा पठानिया)

समीक्षक-राकेश कुमार,बिलासपुर छग

कहानी, गद्य साहित्य की सबसे मनोरंजक विधा है जिसका लक्ष्य मानव जीवन की समस्याओं और संवदेनाओं को व्यक्त करना है। 

नीना अन्दोत्रा पठानिया की कहानी संग्रह “बिंदलू“ ऐसी 16 कहानियों का संग्रह है जो समाज के विभिन्न क्षेत्रों की समस्याओं को पाठकों के समक्ष ना केवल रखती हैं अपितु पाठकों को चिंतन को विवश भी करती हैं। नीना की कहानियों में सीमा पर बसर करने वाले किसानों की व्यथा पर चिंता है तो समाज के दोहरे पुरूषगत चरित्र पर पीड़ा भी है। वह प्रेम और मानवीय संवदेना पर लिखती हैं तो किसी स्त्री को देह से इतर ना देखने की पुरूषों की मानसिकता पर प्रहार भी करती हैं। 

नीना एक कुशल चितेरे की भांति जब कहानी की रचना करती हैं तो सारे दृश्य आंखों के सामने किसी चलचित्र की तरह उभरने लगते हैं। अपनी कहानी "युद्ध" में जब वह सुखवंत सिंह और उसके परिवार की पीड़ा का चित्रण करती हैं तो सरहद पर रोज-रोज की गोलीबारी से किसानों की सिसकियां आंखों के सामने उभर आती है। उनकी इस कहानी में सीमा पर बसने वाले उस समाज और क्षेत्र के प्रति चिंता है जो पड़ोसी राष्ट्र की नापाक हरकतों से रोज-रोज प्रभावित होती है लेकिन इस समस्या का समाधान दोनों ही राष्ट्रों के पास नहीं है।

उनकी दूसरी कहानी "वर्जिनिटी" पुरूष प्रधान समाज की उस दोहरी और खोखली तस्वीर को प्रतिबिंबित करती है जहां एक पुरुष किसी स्त्री से तो विवाह के पूर्व कौमार्य की अपेक्षा रखता है परंतु वह स्वयं को इससे परे रखना चाहता है।

आभासी दुनिया के प्रति समाज का नजरिया चंद मौकापरस्त लोगों की वजह से बेहद नकारात्मक रहा है परंतु लेखिका इस नकारात्मक दुनिया में प्रेम के नये आयाम ढूंढती है। अपनी रिक्तता को पूरी करने के लिए प्रांजलि और पुष्पेंद्र जैसे दो लोग जब इस आभासी दुनिया में मिलते हैं तो एक-दूसरे के किस तरह पूरक बन जाते हैं लेखिका ने अपनी कहानी "अहसास की खुश्बू" में बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। कहानी "अधूरे" जैसे इस कहानी का द्वितीय भाग होकर इस प्रेम कहानी को पूर्णता प्रदान करती है।

इस कहानी संग्रह की एक अन्य महत्वपूर्ण कहानी "बिंदलू" है, जिस पर लेखिका ने अपनी कहानी संग्रह का नाम रखा है। इस कहानी को पढ़ते हुए यह कयास लगाना बेहद मुश्किल होता है कि जिस मामूली रोड एक्सीडेंट पर मुआवजे के लिए चंद लड़के विशाल को अगवा कर रहे हैं उसका इतना प्रेमिल अंत होगा। दादी के कमर पर बंधी हुई किशोरावस्था में प्रेमी की दी हुई बिंदलू जो कि स्त्रियों की मांग में सजाया जाने वाला आभूषण होता है, को जब विशाल को सौंपती है तो कहानी का दृश्य भावुक हो जाता है।

नीना की कहानियों में प्रेम सिर्फ एक आकर्षण मात्र नहीं है और ना ही यह देह की पिपासा को शांत करने की अभिलाषा है, बल्कि वह अपनी नायिका को संघर्ष के क्षणों में भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करती है। कहानी "पगड़ी" में नवतेज का अपनी पूर्व अध्यापिका निजता के प्रति लगाव में ऐसा ही कुछ सौंदर्य दिखायी देता है वहीं कहानी "एफ-10" में मिसेज रोहिणी और मिस्टर हितेश बरसों बाद प्रौढ़ावस्था में अपने ही कंपार्टमेंट में जब अनायास मिलते हैं तो अश्रुओं की धार से अहसासेें महक उठती है। जब लेखिका लिखती हैं कि रात, चुंबन बन रूही के होंठों पर ठहर गयी थी तो उस समय मन का हर कोना जैसे प्रेममय हो जाता है।

नीना की कहानी "स्पर्श" और "पहली किताब" दोनों में ही में समाज में घटते हुये मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों के प्रति एक कहानीकार की चिंता है। जहां "स्पर्श" सुगंधि नाम की एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो वैश्विक महामारी के दौर में अपने पति के खो देने के बाद घर से बेघर हो जाती है और  उसकी सहायता के लिए बढ़ते हुए लाला जैसे लोगों के हाथ उसके देह से अपनी पिपासा शांत करने की अभिलाषा रखने लगते हैं। तो दूसरी ओर "पहली किताब" नर्तकी नाम की नवोदित लेखिका की कहानी है जो अपनी रचना के प्रकाशन के लिए प्रकाशक ढूंढ़ती है और प्रकाशक उसमें देह ढूंढता है। दोनों ही कहानी "बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ" के समाज के खोखले नारे पर समाज के समक्ष कई प्रश्न खड़ी करती है।

नीना की प्रायः हर कहानियों में स्त्रियों के अहसासों और कोमल भावनाओं को उकेरने की चेष्टा दिखायी देती है। "मां मैं तुझे माफ नहीं कर पाउंगी" "जंगली फूल" ऐसी ही कहानियां है। इस कहानी संग्रह में "मुलाकात" "मन की पीड़ा", "शास्त्री जी" जैसी और कहानियां भी हैं जो कि लेखिका के कहानी प्रस्तुतीकरण की शैली का लोहा मानने को विवश करती है।

ऐसा माना जाता है कि किसी लेखक की रचनाओं में उसके सामाजिक अथवा सांस्कृतिक परिवेश का बहुत हद तक समावेश होता है। नीना की कहानियों में भी कठुआ, जम्मू, रावी नदी, नुरपूर, पठानकोट,डल झील, कश्मीर की खूबसूरत वादियों का भरपूर जिक्र है और पाठक पढ़ते हुये इसकी खूबसूरती में खो जाता है।

इस किताब की एक अत्यंत महत्वपूर्ण विशेषता लेखिका का कहीं भी अपना परिचय अथवा पूर्व की साहित्यिक उपलब्ध्यिों का जिक्र ना करना है , जैसे वह इसके माध्यम से संकेतों में पाठकों से कहना चाहती हो कि मेरी इस किताब को मेरे परिचय अथवा पूर्व की साहित्यिक उपलब्धियों से नहीं बल्कि कहानियों की विषयवस्तु की कसौटी पर कसा जावे और लेखिका जैसे इस कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं।

नीना की कहानियों में अमृता प्रीतम, कृष्णा सोबती और मन्नू भंडारी की झलक दिखायी देती है। पाठकों को उनकी पहली कहानी संग्रह पढ़ते हुये सहज रूप से आभास होगा कि नीना अन्दोत्रा पठानिया हिंदी साहित्य के गगन का आने वाले दशकों का ध्रुव तारा है। इस शानदार कहानी संग्रह के लिए उन्हे ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें ...।

पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत आकर्षक है विशेषकर कहानी संग्रह बिंदलू के नाम को पृष्ठ पर सलीके से उभारना तथा कागज की गुणवत्ता, उसकी छपाई सब कुछ स्तरीय है।