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यूक्रेन गए भारतीय छात्रों के लौटने के बाद से भारत में मेडिकल शिक्षा का मुद्दा चर्चा में
रघुवीर चारण। मेडिकल शिक्षा प्राप्त करने बड़ी संख्या में यूक्रेन गए भारतीय छात्रों के लौटने के बाद से भारत में मेडिकल शिक्षा का मुद्दा चर्चा में है। आज भारत के लगभग एक लाख छात्र विभिन्न देशों में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। चीन, यूक्रेन, रूस, फिलिपींस, किर्गीस्तान, कजाखस्तान, पोलैंड और आर्मेनिया जैसे देशों में सर्वाधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। कम शुल्क होने के कारण भारतीय छात्र बड़ी संख्या में इन देशों में मेडिकल शिक्षा हासिल करने जाते हैं। विदेश में पढ़ने वाले इन डाक्टरों को वतन वापसी पर एक परीक्षा देनी होती है जिसे फारेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) या स्क्रीनिंग टेस्ट कहते हैं।

यह परीक्षा एनबीई द्वारा साल में दो बार आयोजित करवाई जाती है। सभी छात्रों के लिए इस परीक्षा को पास करना अनिवार्य है। उसके बाद ही उन्हें भारत में मेडिकल प्रैक्टिस के लिए वैध माना जाता है। हालांकि कुछ देश ऐसे भी हैं जहां से पढ़ाई पूरी करने वाले छात्रों को इस परीक्षा से छूट दी गई है। ये देश हैं- आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, यूनाईटेड किंगडम और अमेरिका। पिछले कुछ वर्षो के एफएमजीई के परिणाम बहुत ही चिंताजनक हैं।

एनबीई द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015-2018 के बीच लगभग 61 हजार छात्रों ने यह परीक्षा दी जिनमें से मात्र नौ हजार ही सफल हुए यानी 83 प्रतिशत असफल रहे। ऐसे में सफलता का कम अनुपात विदेशी मेडिकल डिग्री पर कई सवाल खड़े करता है। इससे यह भी पता चलता है कि सस्ती मेडिकल शिक्षा का गुणवत्ता स्तर काफी निम्न है।

वर्ष 2020 में 17 हजार छात्रों ने यह परीक्षा दी जिसमें महज 1700 ही उत्तीर्ण घोषित हुए। इन परिणामों को आधार मानकर भारतीय विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट का आकलन करें तो काफी दयनीय दशा है। इनका संबंधित ज्ञान और चिकित्सा प्रशिक्षण देश में पढ़ रहे छात्रों की तुलना में कमजोर है। इसके पीछे कई प्रमुख कारण हैं जिनमें कुछ इस प्रकार हैं- विदेशी मेडिकल कालेजों की मेडिकल शिक्षा में रोग अध्ययन, भाषा, क्लिनिकल प्रशिक्षण, प्रवेश आधार के मानक हमारे देश की तुलना में भिन्न हैं तथा कुछ देशों की जनसंख्या बहुत कम होने के कारण मरीज चिकित्सक अनुपात बहुत कम है। इस तथ्य से हम सभी सहमत होंगे कि चिकित्सा के क्षेत्र में गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

भारत में चिकित्सा शिक्षा प्रणाली के मानक नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) तय करता है जिसमें मेडिकल कालेज में प्रवेश से लेकर इंटर्नशिप करने तक कई परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना पड़ता है। नए नियमों के अनुसार मेडिकल पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए नीट और इंटर्नशिप से पूर्व नेशनल एग्जिट टेस्ट पास करना पड़ेगा, उसके बाद ही मेडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस मिलेगा।