Probability of Third World War: यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने दिया तीसरे विश्व युद्ध का संकेत, जानें क्या हैं इसके निहितार्थ- एक्सपर्ट व्यू
नई दिल्ली कीव जेएनएन। रूस यूक्रेन जंग के करीब चार सप्ताह बाद यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा है कि अगर उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्ता विफल रहती है तो तीसरा विश्व युद्ध तय है। उन्होंने साफ किया कि यूक्रेन रूस के समक्ष समर्पण नहीं करेगा। उन्होंने यह बात तब कही जब रूस ने कहा था कि अगर यूक्रेनी सेना समर्पण कर देगी तो वह मारीपोल से नागरिकों को सुरक्षित निकासी के लिए मानवीय गलियारा दे सकता है। इसी क्रम में उन्होंने रूस को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर पुतिन के साथ वार्ता विफल रही तो तीसरा विश्व युद्ध होगा। उन्होंने कहा कि नाटो को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे हमें स्वीकार कर रहे हैं या खुले तौर पर कहें कि वह हमें स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सच तो यह है कि वह रूस से डरते हैं। इसी दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति ने तीसरे विश्व युद्ध का भी जिक्र किया। आखिर क्या हैं इसके निहितार्थ ? उन्होंने नाटो से एक बार फिर अपने संगठन का सदस्य बनाए जाने की अपील क्यों की। इस युद्ध में क्या है नाटो फैक्टर।
1- प्रो पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन युद्ध जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। रूस लगातार चीन से मदद की बात कर रहा है। अगर इस युद्ध में चीन रूस के समर्थन में आता है तो जाहिर है अमेरिका इसमें हस्तक्षेप करेगा। यह अमेरिका और नाटो देशों के लिए बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में इसका दायरा यूक्रेन तक सीमित नहीं रहेगा। इसकी आंच यूरोप के अन्य देशों तक जानी है।
2- उन्होंने कहा कि अगर यह युद्ध और लंबा चला तो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती है। खासकर तब जब जेलेंस्की ने यह ऐलान कर दिया है कि वह रूस के समक्ष झुकेंगे नहीं। ऐसे में रूस के पास युद्ध को आगे बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। दूसरे अब यह युद्ध रूस की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। पुतिन को देश के समक्ष यह बताना होगा कि इस युद्ध में उन्होंने क्या हासिल किया। अभी तक उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं हासिल किया जिसके आधार पर वह यह सिद्ध कर सके कि यह जंग जरूरी थी।
3- पुतिन की नजर यूक्रेन के समर्पण कराने पर टिकी है और ऐसा हो नहीं सकता है। यह जेलेंस्की के हित में नहीं होगा। ऐसे में यह युद्ध लंबा चलेगा और चीन पर रूसी सहयोग का दबाव बन सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो रूस यूक्रेन को दबाने के लिए परमाणु हमले के लिए उतावला हो सकता है। ऐसी स्थिति में अमेरिका और नाटो देशों को इस युद्ध में आगे आना होगा। इन तमाम अटकलों के कारण जेलेंस्की यह कह रहे हैं कि यह जंग तीसरे विश्व युद्ध की ओर आगे बढ़ रहा है।
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन जंग के करीब चार सप्ताह हो रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस युद्ध के लिए नाटो या अमेरिका कितना दोषी है। दरअसल, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यह कहते रहे हैं कि अमेरिका ने नब्बे के दशक में वादा किया था कि सुदूर पूर्व में नाटो का विस्तार नहीं करेगा। पुतिन ने कहा कि लेकिन अमेरिका ने अपने इस वादे को तोड़ा है।
दरअसल, रूसी राष्ट्रपति पुतिन लंबे समय से यह दावा करते आए हैं कि अमेरिका ने नब्बे के दशक में वादा किया था कि सुदूर पूर्व में वह नाटो का विस्तार नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि लेकिन अमेरिका ने अपने इस वादे को तोड़ दिया है। पुतिन ने कहा कि अमेरिका ने रूस को निराश किया है। हालांकि, सावियत संघ के नेता मिसाइल गोर्बाचेव से इस बारे में क्या वादा किया गया था इसे लेकर दोनों पक्षों के मध्य मतभेद है। बता दें कि पूर्व सोवियत संघ के कभी सदस्य या उसके प्रभाव में रहे कई पूर्वी और मध्य यूरोपीय देश आज नाटो का हिस्सा बन चुके हैं। इनमें से चार देशों- पोलैंड, लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया की सीमाएं रूस से लगती हैं। रूस यह कहता रहा है कि नाटो के विस्तार और उसकी सीमा के पास नाटो की सेनाओं और सैन्य उपकरणों के रहने से रूस की सुरक्षा को सीधा खतरा है।
प्रो पंत का कहना है कि पुतिन ने कई बार कहा था कि यूक्रेन को अपना सैन्यीकरण बंद करना चाहिए और वह किसी गुट का हिस्सा नहीं बने। हालांकि, यूक्रेन पुतिन की इस मांग का सदैव विरोध करता रहा है। इसके लिए पुतिन अमेरिकी प्रशासन और पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। पुतिन का तर्क रहा है कि यूक्रेन पूर्ण रूप से कभी एक देश नहीं था। उन्होंने सदैव यूक्रेन पर पश्चिमी देशों की कठपुतली बनने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि पुतिन अमेरिका और पश्चिमी देशों से यह सुनिश्चित कराना चाहते थे कि यूक्रेन को कभी नाटो का हिस्सा नहीं बनाया जाए। वह इस बात की अमेरिका और पश्चिमी देशों से गारंटी भी चाहते थे।
नाटो की मान्यता है कि संगठन के किसी भी एक देश पर आक्रमण पूरे संगठन पर हमला माना जाएगा। यानी किसी के एक देश पर आक्रमण का जवाब नाटो के सभी देश मिलकर देंगें। नाटो की अपनी कोई सेना या अन्य कोई रक्षा सूत्र नहीं द नार्थ अटलांटिक ट्रिटीर्गनाइजेशन यानी (नाटो) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। वर्ष 1949 में 28 यूरोपीय देशों और दो उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच बनाया गया था।
नाटो का उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों के माध्यम से अपने सदस्य देशों को स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देना है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह संगठन अस्तित्व में आया। नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में स्थित है।है, बल्कि नाटो के सभी सदस्य देश आपसी समझ के आधार पर अपनी-अपनी सेनाओं के साथ योगदान देगें।
बता दें कि केवल नाटो के सदस्ट देश ही उसके संरक्षण का लाभ ले सकते हैं। अन्य देश जो नाटो के सदस्य नहीं हैं उनके प्रति नाटो की कोई जवाबदेही नहीं होगी। नाटो अपने सदस्य देशों पर किसी भी बाहरी आक्रमण से बचाव के प्रति जवाबदेह है, लेकिन यदि किसी सदस्य देश में सिविल या कोई अन्य हमला होता है तो नाटो की उसमें शून्य भागीदारी होगी।