ब्राह्मण परिवारों में तीन दिन पूर्व से चूल्हे पर नहीं चढ़ती कड़ाही
अनपरा (सोनभद्र) : ऊर्जांचल के ब्राह्मण परिवारों में होली मनाने की परंपरा अनोखी है। होली पर्व को लेकर प्राय: सभी घरों में पकवान, गुझिया, नमकीन, मिठाई आदि की तैयारी जहां शुरु हो जाती है,वहीं ब्राह्मण परिवारों में होली के तीन दिन पूर्व से ही घर में कड़ाही नहीं चढ़ाई जाती। घर में घी, तेल से जुड़े कोई पकवान या खाद्य पदार्थ नहीं बनाए जाते हैं। होली के दिन परंपरा का निर्वहन करने के बाद ही पकवान बनने शुरू होते हैं।
कश्मीर से कन्याकुमारी औऱ कच्छ से कामरूप तक फैले इस विशाल भूखंड में विविधताओं का होना तो स्वाभाविक है। इन विविधताओं के बावजूद पर्व सभी को
एकता में समेटे हैं। सिगरौली जनपद समेत ऊर्जांचल के सैकड़ों गांवों में होली के तीन दिन पूर्व चूल्हे पर कड़ाही नहीं चढ़ाई जाती। यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पूर्व से चली आ रही है। इसका निर्वहन करते हुए ग्राम चंदुआर के अमरेश दुबे, श्रीकृष्ण दुबे ने बताया कि होली पर्व के मद्देनजर मंगलवार को होलिका जलाने के लिए गांव के लोग शाम को एक जगह एकत्रित होंगे। सभी ग्रामीण मिलकर सेमर की लकड़ी काटकर होलिका के लिए निश्चित स्थान पर पूजन कर उसे स्थापित करेंगे। यहीं से ब्राह्मण परिवार का होली पर्व शुरू हो जाएगा।
अगले दिन बुधवार को ग्रामीण लकड़ी, घास लाकर होलिका जलाने के लिए स्थापित की गई सेमर की लकड़ी के इर्द गिर्द रखकर उसे होलिका का वृहद आकार देंगे। घर की महिलाओं द्वारा गोबर से प्रत्येक सदस्यों के नाम पर चांद सूरज तारों की आकृति तैयार की जाएगी। जिसे होलिका जलने से पूर्व परिवार के मुखिया द्वारा होलिका में डाला जाएगा। होलिका दहन के बाद सभी ग्रामीण अपने घर चले जाएंगे। अगले दिन होली पर ग्रामीण दोपहर तक रंग-अबीर खेलते हैं। इसके बाद होलिका दहन वाले स्थल पर आकर होलिका की राख को चंदन स्वरूप मानकर घर ले जाते हैं। होलिका की राख से होली खेलने के बाद ही घर की महिलाओं द्वारा पकवान बनाने का सिलसिला शुरू किया जाएगा।