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प्रकृति ने भी ओढ़ी भगवा चादर, खिले पलाश के फूल
 दुद्धी (सोनभद्र) : यह संयोग ही है कि एक तरफ इन दिनों भगवा रंग राजनीतिक गलियारों में दिख रहा है, वहीं जनपद के वनवासी इलाके में पलाश के फूल खिलने से समूचे वन क्षेत्र का कलर भी भगवा हो गया है। प्राकृतिक रंगों से होली खेलने के लिए आदिवासी कुनबा उन फूलों को रंग एवं अन्य औषधीय उपयोग के लिए एकत्र करने में जुटा है।

बसंत ऋतु का प्राकृतिक रूप से संदेश देने वाले पलाश के फूल से रंग बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। प्रकृति में बसंती बिखेर रहे फूलों को जुटाने में वनवासियों का कुनबा लगा है। एक ओर शहरी आवरण का चोला ओढ़े उपनगर, नगर एवं महानगरों में केमिकल युक्त रंगों की मांग की पूर्ति के लिए तमाम फैक्ट्रियों में केमिकल युक्त चटख रंग तैयार की जा रही है। रंगों की खेप बाजारों में पहुंचाने का सिलसिला शुरू हो गया है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति प्रदत्त संसाधनों से होली खेलने के लिए वनवासी बच्चे प्राकृतिक रंगों को तैयार करने में लगे हैं।शहरों में महंगे दामों में बिकने वाले एवं त्वचा के लिए बेहद हानिकारक रंगों के बजाय दुद्धी के दुरूह व दुर्गम क्षेत्र में आबाद लोगों ने प्राकृतिक रंग से होली खेलने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके प्रथम पायदान पर वातावरण को लालिमा एवं बसंती चादर ओढ़ाने वाले पलाश के फूलों को एकत्र करने में किशोर आयु वर्ग के बच्चे पूरे उत्साह के साथ जुटे हैं। बघाड़ू गांव में एक पेड़ पर चढ़कर टेसू का फूल तोड़ रहे किशोर पवन ने इसका रंग बनाकर उसी से होली खेलने की बात बताई। इसी तरह नगवां गांव की कक्षा आठ में पढ़ने वाली छात्रा आरती व आराधना नामक किशोरियों ने बताया कि होली से करीब १०-१५ दिन पूर्व फूल को तोड़कर उसे कड़े धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद इन्हें तीन दिन तक पानी में डालकर गलाया जाता है। होली से एक दिन पहले बड़े-बड़े कड़ाहों में इन फूलों को गरम पानी में डालकर उबाला जाता है। रंग केसरिया आए और उसकी पकड़ मजबूत हो, इसके लिए इसमें कुछ मात्रा में चूना मिलाया जाता है। इस विधि से चटख केसरिया रंग तैयार हो जाती है।

बुजुर्गों का मानना है कि इस प्राकृतिक रंग से होली खेलने वालों को कभी भी त्वचा रोग नहीं होता उसमें चमक भी आ जाती है। दशई राम ने इसके औषधीय गुण के बारे में बताया कि हम लोग बचपन से इसी तरह होली खेलते आ रहे है। नेत्रों की ज्योति बढ़ाने के लिए पलाश फूल के रस में शहद मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से काफी लाभ होते हैं। इसके बीजों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद, खाज, खुजली में आराम मिलता है।