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मोदी सरकार का फॉर्मूला रहा हिट! Xiaomi, Vivo और Oppo के "मेड इन इंडिया" फोन की दुनियाभर में होगी धूम, जानें पूरी डिटेल

नई दिल्ली, टेक डेस्क। चीन की तीन दिग्गज मोबाइल निर्माता कंपनी Xiaomi, Vivo और Oppo की दुनियाभर में धूम होगी। इस बारे में भारतीय मैन्युफैक्चर्स के साथ लोकली स्मार्टफोन बनाने को लेकर चर्चा हो रही है, जिसे ग्लोबल सप्लाई किया जाएगा। मतलब जल्द आपको दुनियाभर में मेड इन इंडिया स्मार्टफोन दिखेंगे। इससे भारत को एक इलेक्ट्रॉनिक्स स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग हब बनने में मदद मिलेगी। उम्मीद है कि लावा इंटरनेशनल लिमिटेड और डिक्सन टेक्नोलॉजीज इंडिया लिमिटेड को Xiaomi, Oppo और Vivo स्मार्टफोन कीअसेंबलिंग की जिम्मेदारी मिल सकती है।  बता दें कि चीन दुनिया का स्मार्टफोन निर्माता और उपभोक्ता मार्केट है। लेकिन Xiaomi जैसी कंपनियां चीन के अलावा दूसरे देश के तौर पर भारत को देख रही हैं। जो स्मार्टफोन का एक बड़ा मार्केट है। इसके लिए ओप्पो और वीवो ने लावा के साथ चर्चा शुरू कर दी है, जबकि Xiaomi की डिक्सन से बातचीत चल रही है।  मोदी सरकार ने भारत से स्मार्टफोन के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विदेशी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग ब्रांड पर लंबे समय से दबाव डाला है। साधारण शब्दों में कहें, तो चीनी और अमेरिका के बीच जारी ट्रेड वॉर और कोरोना वायरस महामारी के दौरान स्मार्टफोन शिपिंग में देरी के चलते भारत ने दुनिया को चीन पर निर्भरता घटाने का जोर दिया। मोदी सरकार ने भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया में स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर विकसित करने का जोर दिया।  काउंटरपॉइंट की रिसर्चर प्रिया जोसेफ के मुताबिक भारत अमेरिका और चीन और अब चीन और ताइवान के टेंशन को अपने लिए मौका बनाने की कोशिश में है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी कोल्ड वॉर का इस्तेमाल कर रहा है। सरकार की तरफ से पहले फोन निर्माताओं पर मेड इन इंडिया स्मार्टफोन बनाने का दबाव डाला गया। इसके बाद अब मेड इन इंडिया स्मार्टफोन के एक्सपोर्ट की पॉलिसी पर काम किया जा रहा है।  इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने साल 2020 में मोबाइल फोन के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव यानी पीएलआई स्कीम शुरू की थी। जिसके बाद से भारत के मोबाइल निर्यात में लगातार भारी इजाफा हो रहा है। इस साल मार्च तक मोबाइल निर्यात 450 बिलियन रुपये (5.9 बिलियन डॉलर) को पार करने की उम्मीद है, जो 5 साल में 30 गुना ज्यादा है।