आधुनिक समाचार सर्वेश कुमार यश वाराणसी ब्यूरो
नारी अपनी स्वयं सुरक्षा करें तभी पारिवारिक का दायित्व निभाएंगी रीता जयसवाल
टीवी व इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर प्रसारित होने वाली फिल्म नारी की विकृत छवि को खुली छूट देकर आने वाली पीढ़ियों को बर्बादी की ओर जा रही है
हरहुआ/ वाराणसी-आजकल इलेक्ट्रॉनिक व टीवी यूज ने महिलाओं के सम्मान को फिल्मों व तस्वीरों में खुलेआम प्रसारित हो रहा है जो आने वाले बच्चों का भविष्य अंधकार की ओर है उक्त बातें हरहुआ बैजलपट्टी राजेश्वरी महिला महाविद्यालय में विश्व नारी अभ्युदय संगठन के आयोजन संपन्न हुआ। जिसमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ नारी शिक्षा और पारिवारिक दायित्वबोध की मुख्य अतिथि विश्व नारी अभ्युदय संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रीता जायसवाल ने विषय पर प्रकाश डालते हुए साहित्यकार और महाविद्यालय के प्रबंध निदेशक ने नारी को परिवार समाज देश की वह धुरी बतलाया जिसके चतुर्दिक ही संस्कृति का पहिया घूमता है। बच्चे को संस्कारित करने में नारी की महती भूमिका होती है। भारतीय समाज ने नारी को पुरुष से पृथक कभी देखा ही नहीं। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं,एक के बिना दूसरा अधूरा है।दुर्भाग्यवश हम पश्चिमी देशों से आयातित विचारों और टी वी मीडिया पर प्रसारित नारी की विकृति छवि को खुली छूट देकर अपनी पीढ़ियों को बर्बाद कर रहे हैं। संस्कृति लमन्वयवादी होती है वह विघटनकारी नहीं। हर देश की संस्कृति हजारों लाखों साल में वहाँ के लोगों के रहन सहन खान पान आचार विचार व्यवहार के अनुरूप ही होती है। नारीवाद का अर्थ स्त्री के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए है न कि पुरुष और स्त्री को दो अलग जीव मानकर एक दूसरे के खिलाफ युद्ध छेड़ना। पुरुष और स्त्री के पारिवारिक दायित्व होते हैं और दोनों ही सन्तान को सुसंकृत शिक्षित करके समाज और देश को सुख समृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं इसलिए हमारी शिक्षाव्यवस्था केवल अर्थोपार्जन के लिए ही नहीं वरन सभ्य सुसंकृत पारिवारिक दायित्वबोध से सम्पन्न नागरिक पैदा करने का माध्यम होनी चाहिए।
मुख्य अतिथि श्रीमती रीता जायसवाल जी ने उपस्थित छात्राओं और शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा के जरिये ही छात्राओं में संस्कार के बीज गहरे बोये जाते हैं। बचपन में जो संस्कार बच्चे में बीजारोपित किये जाते हैं वे ही जीवन मूल्य बनकर व्यक्ति के क्रियाकलाप को निर्देशित करते हैं। आज की तमाम बुराइयों को सही सोच के माध्यम से दूर किया जा सकता है।यह सोच सही सुसंकारित शिक्षा ही उत्पन्न कर सकती है। उन्होंने परिवार को विखंडित होने से बचाने की पुरजोर वकालत करते हुए नारी को उसके पारिवारिक उत्तर दायित्व से रूबरू कराने की आवश्यकता पर बल दिया।आज परिवार टूट रहे हैं,घर घर में घृणा कलह द्वेष देखने को मिल रहा है क्योंकि परिवार एकल होते जा रहे हैं,शादी होते ही मां बाप से अलग होने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिसके पीछे बहू की एकांगी सोच ही है। यदि दुल्हनें अपने ससुर सास को पिता माता का सम्मान देना शुरू कर दें तो पारिवारिक टूटन रुक सकती है। कुंठित सोच की स्त्री परिवार के लिए कुछ नहीं कर सकती है, वह सुसंस्कारित संतान भी समाज को नहीं दे सकती है।
इस अवसर पर छात्राओं ने भी अपने विचार व्यक्त किये जिन्हें मुख्य अतिथि रीता जायसवाल ने प्रमाण पत्र और पुरस्कार प्रदान किया। महाविद्यालय के समस्त शिक्षकों ने भी कार्यक्रम में अपने व्यक्त किये। डॉ शालिनी नाग,डॉ संतोष श्रीवास्तव, प्रियंका सिंह,रागिनी रंजन अस्थाना ,इकबाल अहमद,प्रियंका श्रीवास्तव,श्वेता सिंह ,अमित कुमार सिंह, बसन्ती देवी ,वी एन पांडेय आदि ने कार्यक्रम में वैचारिक सहभागिता प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ सुमन सिंह और धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के उपनिदेशक अंशुमान सिंह ने किया।