विपक्षी विकल्प बनने की ओर आप ने बढ़ाए कदम, भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी ऐसी पार्टी जिसकी दो राज्यों में सरकार
संजय मिश्र, नई दिल्ली। पंजाब में महाजीत के साथ सत्ता हासिल करके और गोवा में पहली बार खाता खोलकर आम आदमी पार्टी (आप) ने विपक्षी राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बनाने की दिशा में गंभीर कदम बढ़ा दिए हैं। पार्टी गठन के नौ साल के भीतर केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की सीमा पार करते हुए पंजाब में लगभग तीन चौथाई बहुमत हासिल कर आप मौजूदा समय में भाजपा और कांग्रेस के बाद कम से कम दो राज्यों में अपनी सरकार बनाने वाली तीसरी पार्टी बन गई है।
आप ने इस कामयाबी के दम पर कांग्रेस के लिए गंभीर चुनौती पेश कर दी है। इतना ही नहीं, विपक्षी सियासत को आगे बढ़ाने की होड़ में शामिल कई क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों के लिए अब आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल की अनदेखी संभव नहीं होगी। पंजाब में 42 प्रतिशत से अधिक वोट हसिल कर और 92 सीटों पर जीत दर्ज कर दिल्ली से बाहर पांव फैलाने की आप की यह उपलब्धि सियासी रूप से बेहद मायने रखती है।
दरअसल, बीते तीन दशक के दौरान देश की राजनीति में भाजपा, कांग्रेस और वामपंथी दलों के अलावा कोई भी अन्य पार्टी दो प्रदेश में सरकार नहीं बना सकी है। चाहे राष्ट्रीय विपक्षी राजनीति की पताका थामने की महत्वाकांक्षा को लेकर सक्रिय तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी हों या टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव। इनकी पार्टियां भी ऐसा कमाल नहीं कर सकी हैं।
विपक्षी खेमे की सियासत में सक्रिय रही समाजवादी पार्टी, राजद, द्रमुक व शिवसेना हो या फिर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस, इनमें से कोई भी एक से अधिक राज्य में सत्ता हासिल नहीं कर पाई है। पंजाब की सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस की भी अपने बलबूते अब केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सरकार है।
राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए चार राज्यों में छह प्रतिशत से अधिक वोट हासिल करना जरूरी होता है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए अब आप को दिल्ली, पंजाब और गोवा के बाद केवल एक राज्य में छह प्रतिशत वोट हासिल करने की जरूरत है। पार्टी गुजरात व हिमाचल प्रदेश में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करने के लिए कमर कसती नजर आ रही है।
दिलचस्प यह भी है कि आप को राष्ट्रीय विकल्प बनाने की अपनी हुंकार के दौरान केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के उभार के बाद राष्ट्रीय विमर्श की धुरी बने नरम हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की लाइन पर चलने का संकेत दिया है। भगवान राम के इर्द-गिर्द रही भाजपा की सियासत के जवाब में केजरीवाल ने अपने संबोधन से पहले अपनी हनुमान भक्ति को फिर से जाहिर करने से परहेज नहीं किया।
पंजाब की जीत के बाद वह पहले हनुमान मंदिर में दर्शन करने गए, उसके बाद अपना संबोधन दिया। संबोधन की शुरुआत और अंत में बार-बार भारत माता और वंदे मातरम का जयघोष करते हुए साफ कर दिया कि राष्ट्रवाद और नरम हिंदुत्व के नैरेटिव पर वे भाजपा को चुनौती देने का जोखिम लिए बिना आप को राष्ट्रीय विकल्प बनाने की कोशिश करेंगे।