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शिखा धारीवाल। स्टार प्लस के पॉप्युलर सीरियल 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' में नायरा के किरदार से दर्शकों का दिल जितने वाली अभिनेत्री शिवांगी जोशी ने इस ेंदसह'े Daब् व्aुraह.म्दस् से एक्सक्लूसिव बातचीत में अपने स्ट्रगल से लेकर महिलाओ के बदलते रूप को लेकर खुलकर बातचीत की है।

शिवांगी कहती है मेरी प्रेरणा मेरी मां है और वह इस दुनिया की सबसे स्ट्रॉग महिला है। वह जब मुझे लेकर मुंबई आयी थी तब कई रिश्तेदारों ने उन पर गुस्सा करते हुए कहा था कि कहा बेटी को मुंबई डाक्टर या इंजीनियर बनाने नही बल्कि एक्टिंग कराने ले जा रही हो। मत जाओ नही तो पछताओगी। शिवांगी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए बताती है कि कई रिश्तेदारों ने तो यहां तक की उस वक़्त हमसे बात तक करना बंद कर दिया था लेकिन अब वही लोग न सिर्फ बहुत अच्छे से खुद बात करते है बल्कि कहते है कि एक्टिंग अच्छा करियर है हमारे बच्चे को भी एक्टिंग करियर बनवाने में मदद करो। मेरी सक्सेस के साथ रिश्तेदारों का बात करने का ढंग ही बदल गया है। शिवांगी हंसते हुए पुराने दिनों को याद करती हुई कहती है कि मैंने और मेरी मां दोनों ने साथ -साथ स्ट्रगल किया है। मेरी माँ जिस तरह पूरे परिवार को छोड़ मेरा करियर बनाने मुझे मुंबई लेकर आई थी और यह हमारे स्ट्रगल का सबसे बड़ा पड़ाव था और इसके बाद मुंबई में काम ढूढने का स्ट्रगल शुरू हुआ। शुरुआत में ढेर सारे ऑडिशन दिए तब जाकर 'बेगुसराय' सीरियल से छोटे पर्दे पर एंट्री मिली।

शिवांगी कहती है कि मैं खुद छोटे शहर से हूं और आज भी कई छोटे शहरों में सिर्फ लड़कियों के लिए एक्टिंग को खराब प्रोफेशन माना जाता है जबकि अगर लड़का कहता है कि मुझे मुंबई जाना है एक्टिंग में करियर बनाना है तो घरवाले आसानी से भेज देते है लेकिन जब बात लड़की की आती है तो यह परिभाषा बदल जाती है मैं इस ेंदसह'े ्aब् पर चाहती हूँ कि ये बदलाव हो कि जिस तरह कोई भी प्रोफेशन चुनने या किसी भी शहर में काम करने को लेकर परिवार लड़के को छूट देता है ठीक वैसे ही लड़कियों को भी मिलनी चाहिए। अब समाज को सोचना पड़ेगा कि आखिर हम लड़कियां क्या चाहती है।

शिवांगी स्कूल के दिनों को याद कर बताती है कि जब मैं स्कूल में थी तब मुझे स्पोर्ट्स में बहुत कहा जाता था कि जाओ जाकर लड़कियों वाले खेल खेलो लेकिन मैं स्पोर्ट्स में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। हालांकि अब यह लड़की और लड़के के बीच जो फर्क था काफी हद तक खत्म हो चुका है लेकिन फिर भी छोटे शहर और गाँव में जो थोड़ा बहुत है वो भी खत्म होना चहिये।

शिवांगी कहती है कि ेंदसह'े ्aब् मेरे लिए बहुत स्पेशल है। इस दिन मुझे जैसे ही शूट से टाइम मिलता है तो मैं अपनी मां को घुमाने ले जाती हूं और हर दिन मेरी मां मुझे खाना बनाकर खिलाती हैं। लेकिन आज के दिन मेरी पूरी कोशिश रहती है कि मैं उन्हें कुकिंग कर कुछ अच्छा खाना बनाकर कर खिलाऊं। क्योकि वह मेरी दुनिया की सबसे बेहतरीन महिला हैं और ऐसी बेहतरीन महिला का महिला दिवस सबसे स्पेशल होना चाहिए।