टेलीविजन अभिनेत्रियों ने महिला सशक्तीकरण के बदलते मायनों पर की बात, कहा-आज महिला हर चीज में सुदृढ़ हैं
, मुंबई। वक्त के साथ समाज में महिला सशक्तीकरण के मायने भी बदलते रहते हैं। पहले की तुलना में आज के दौर में महिलाएं काफी सशक्त हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में आगे बढ़कर खुद को साबित किया है। फिर भी समाज के कई तबकों में पुरुषों की तुलना में उन्हें कम आंका जाता है। आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी कम है। वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अपने फैसले स्वयं करना, शिक्षा और करियर चुनने की स्वतंत्रता जैसे आज भी ऐसे कई विषय हैं, जिन पर महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से काम करने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर मौजूदा दौर में महिला सशक्तीकरण के सही मायने और जरूरतों पर टीवी कलाकारों हिबा नवाब, मौली गांगुली, एतशा संझगिरी और स्वाति राजपूत की राय...
स्टार भारत के आगामी शो वो तो है अलबेला की मुख्य अभिनेत्री हिबा नवाब कहती हैं, मेरा पेशा ही मुझे बहुत सशक्त महसूस कराता है। कलाकार होने के नाते हम दर्शकों को प्रभावित करते हैं। मैं अगर अपने काम से किसी को प्रभावित या खुश कर पाऊं तो वह अहसास ही मुझे मजबूत बनाता है। सशक्त महिला वही होती है, जो अपनी कमियों और खूबियों को अपनाए। उन्हें जो चाहिए, उसके लिए वे कड़ी मेहनत करें। टीवी पर महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। मैंने बहुत कम उम्र में काम करना शुरू किया था, छोटे शहर से हूं। मेरे लिए मुश्किल था, वहां पहुंचना, जहां आज हूं। मैंने कई चुनौतियों का सामना किया है। मैं लड़कियों को प्रेरित करने के साथ ही उनके माता-पिता से भी कहना चाहूंगी कि वे अपनी बेटियों को सुरक्षित महसूस कराएं। मेरे माता-पिता मुझे सपोर्ट नहीं करते या सुदृढ़ महसूस नहीं कराते तो मैं अपने लक्ष्य को नहीं पा सकती थी। अगर माता-पिता अपनी बेटियों पर भरोसा दिखाएं तो लड़कियां चमत्कार कर सकती हैं। वैसे भी लड़कियां अगर कुछ ठान लें तो वे पुरुष प्रधान समाज में अपने लिए मजबूत जगह बना सकती हैं।
मौली शुरू से ही लैंगिक समानता वाले माहौल में रही हैं। आजकल वह एंड टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक बाल शिव में काम कर रही हैं। महिला सशक्तीकरण को लेकर उनका कहना है, महिला पुरुष समानता ही सही मायने में महिला सशक्तीकरण है। मैं ऐसे परिवार से आती हूं, जहां मैंने हमेशा समानता ही देखी है। मेरे घर में सभी मिल बांटकर काम करते हैं। कभी ऐसा कुछ नहीं था कि अगर पुरुष खाना बनाएंगे या घर के दूसरे काम करेंगे तो उनकी इच्जत कम हो जाएगी। महिला सशक्तीकरण का सही अर्थ महिलाओं का मनपसंद विकल्प और राह चुनने की स्वतंत्रता है। कभी-कभी लड़कियां आत्मनिर्भर होने के बाद भी पुरुषों के पीछे रहना या जंजीरों में बंधकर रहने को अपनी पसंद बताती हैं, लेकिन बात यह है कि वे बचपन से ही ऐसे माहौल में पली बढ़ी होती हैं कि उनके लिए समाज और आसपास के लोगों का नजरिया ही सही होता है। ऐसे में कई बार वे जंजीरों को भी अपनी पसंद बता देती हैं। मैंने ऐसी कई औरतों को देखा हैं, जिन्होंने अपने साथ गलत होती चीजों को अपनी पसंद बताया है। हालांकि रोना तो किसी की पसंद नहीं हो सकता है। स्वतंत्र फैसले वही माने जा सकते हैं, जो अपने हित में और बिना किसी सामाजिक दबाव के और अपने विचारों से लिए गए हों। यह सिर्फ शिक्षा और अपने अधिकारों की जागरूकता के माध्यम से ही संभव है।
धारावाहिक पुण्यश्लोक अहिल्याबाई में अहिल्याबाई का सशक्त किरदार निभाने वाली एतशा के मुताबिक, महिला सशक्तीकरण की दिशा में ऐसा माहौल तैयार करना जरूरी है, जहां महिलाओं की सुरक्षा कोई बड़ा मुद्दा न हो। वह कहती हैं, अहिल्याबाई उस दौर में भी निडर और जिज्ञासु थीं। उन्होंने बिना डरे समाज की विभिन्न समस्याओं की गहराई में जाकर उसका समाधान निकालने की कोशिश की। घुड़सवारी हो या तलवारबाजी या फिर शासन करना, ऐसी चीजें जो उस दौर में मर्दों को ताकतवर बनाती थी, वह उन चीजों को करने में कभी शरमाईं नहीं। हमारे यहां बीते कुछ वर्षों में महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आया है। अब सिर्फ शादी करना, खाना बनाना और बच्चों की देखभाल करना ही उनकी जिंदगी का मकसद नहीं है। अब वे भी मर्दों की तरह सपने देखती हैं और उन्हें पूरा करती हैं। मैं सही मायनों में महिला सशक्तीकरण उसे ही समझती हूं, जहां औरतों को अपनी क्षमता आजमाने का पूरा मौका दिया जाता है। हमारे यहां अभी भी महिलाओं का अकेले सफर करना सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं माना जाता है। जैसे ही कोई लड़की या औरत अकेले घूमने जाने की बातें करती है तो परिवार या समाज से अलग-अलग तरह के सवाल उठने लगते हैं। अगर हम महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करके इन सवालों को हटा सकें तो वह महिला सशक्तीकरण के लिहाज से बहुत बेहतर माहौल होगा। मेरा मन भी अक्सर अकेले घूमने के लिए कहता है।
त्वचा के रंग को लेकर लड़कियों को अक्सर तानों का सामना करना पड़ा है। स्टार प्लस के धारावाहिक ये झुकी झुकी सी नजर में अभिनेत्री स्वाति राजपूत एक सांवली लड़की का किरदार निभा रही हैं। रंग को लेकर समाज की सोच पर स्वाति कहती हैं कि रंग, साइज, शेप वाली सोच से हटकर, जो महिला पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले तथा निजी और पेशेवर दोनों जिंदगी में संतुलन बनाए रखे, वह महिला मेरे लिए सशक्त है। टीवी की पहुंच हिंदुस्तान के हर कोने तक है। महिलाएं, युवा लड़कियां इस पर दिखाई जाने वाली कहानियों से प्रेरित होती हैं। ऐसे में मेरी जिम्मेदारी है कि उन्हें हौसला दूं साथ ही ऐसा संदेश न दूं, जो समाज में महिलाओं के लिए सही न हो। मैैंने अभिनय से पहले करियर माडलिंग से शुरू किया था। फिर टीवी, फिल्मों और वेब सीरीज जैसे अलग-अलग माध्यमों पर काम किया है। मैं आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर रही हूं। अपने निर्णय भी खुद लेती आई हूं। हर उतार-चढ़ाव में मैं अपनी जड़ों को मजबूत रखते हुए, खुद पर यकीन से आगे बढ़ी हूं।