विराट कोहली उस दिन ड्रेसिंग रूम के कोने में बैठे थे, रोने की वजह से आंखें लाल थी, साथी खिलाड़ी का खुलासा
नई दिल्ली, पीटीआइ। कर्नाटक के खिलाफ 2006 में दिल्ली के रणजी ट्राफी मैच के तीसरे दिन जब पुनीत बिष्ट ड्रेसिंग रूम में पहुंचे तो कमरे में सन्नाटा पसरा था और एक कोने में 17 वर्ष का विराट कोहली बैठा था, जिसकी आंखें रोने की वजह से लाल थीं। बिष्ट यह देखकर सकते में आ गए, लेकिन उन्हें अहसास हो गया कि इस लड़के के भीतर कोई तूफान उमड़ रहा है।
कोहली के पिता प्रेम का कुछ घंटे पहले ही ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हुआ था। कोहली और बिष्ट एक दिन पहले के नाबाद बल्लेबाज थे, लेकिन कोहली पर मानों दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।एक समय दिल्ली के विकेटकीपर रहे बिष्ट अब मेघालय के लिए खेलते हैं।
उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा, 'आज तक मैं सोचता हूं कि उसके भीतर ऐसे समय में मैदान पर उतरने की हिम्मत कहां से आई। हम सब स्तब्ध थे और वह बल्लेबाजी के लिए तैयार हो रहा था।' उन्होंने कोहली के 100वें टेस्ट से पहले उस घटना को याद करते हुए कहा, 'उसके पिता का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था और वह इसलिए आ गया कि वह नहीं चाहता था कि टीम को एक बल्लेबाज की कमी खले क्योंकि मैच में दिल्ली की हालत खराब थी।'
16 साल पहले की वह घटना आज भी बिष्ट को याद है और यह भी कि कप्तान मिथुन मन्हास और तत्कालीन कोच चेतन चौहान ने विराट को घर लौटने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा, 'चेतन सर और मिथुन भाई दोनों को लगा कि इतनी कम उम्र में उसके लिए इस सदमे को झेलना आसान नहीं होगा। टीम में सभी की यही राय थी कि उसे अपने घर परिवार के पास लौट जाना चाहिए, लेकिन विराट कोहली अलग मिट्टी के बने हैं।'
बिष्ट ने करीब एक दशक तक दिल्ली के लिए खेलने के बाद 96 प्रथम श्रेणी मैचों में 4378 रन बनाए। इसके बावजूद युवा विराट के साथ 152 रन की वह साझेदारी उन्हें सबसे यादगार लगती है। बिष्ट ने उस मैच में 156 और कोहली ने 90 रन बनाए थे।
उन्होंने कहा, 'विराट ने अपने दुख को भुलाकर जबरदस्त दृढ़ता दिखाई थी। उसने कुछ शानदार शाट खेले और मैदान पर हमारी बहुत कम बातचीत हुई। वह आकर इतना ही कहता था कि लंबा खेलना है, आउट नहीं होना है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहूं। मेरा दिल कहता था कि उसके सिर पर हाथ रखकर उसे तसल्ली दूं, लेकिन दिमाग कहता था कि नहीं, हमें अपने काम पर फोकस करना है। इतने साल बाद भी विराट उसी 17 साल के लड़के जैसा है। उसमें कोई बदलाव नहीं आया।'