चुनाव प्रचार को तकनीक ने बनाया आसान, जनता तक पहुंचने के ये हैं हाईटेक तरीके
अनंत विजय, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चार चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। पहले दो चरण के चुनाव पर कोरोना महामारी की छाया रही और ज्यादातर चुनाव प्रचार आभासी माध्यमों के जरिए हुए। बाद में चुनाव का पारंपरिक रंग देखने को मिला। इस चुनाव में एक नया ट्रेंड देखने का मिला वो है इंटरनेट मीडिया और तकनीक का चुनाव प्रचार में उपयोग। 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार देश की जनता ने तकनीक का कमाल देखा था। उस वक्त नरेन्द्र मोदी ने पहली बार अपने चुनाव प्रचार के दौरान होलोग्राम तकनीक का उपयोग किया था। इस तकनीक में वो अपने निवास से जमसभा को संबोधित करते थे, न्यूज चैनलों के स्टूडियो में लाइव दिखाई देते थे। इससे समय की बचत होती थी। उस चुनाव में फेसबुक और ट्विटर का भी उपयोग हुआ था।
चुनाव में तकनीक का उपयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखने को मिल रहा है। इस बार प्रचार में ट्विटर के स्पेसेज का जमकर उपयोग हो रहा है। इसमें किसी भी ट्वीटर हैंडल से आडियो के जरिए कहीं से भी जुड़ा जा सकता है। किसी भी विषय पर चर्चा आयोजित की जा रही है। हर दिन शाम को ट्विटर स्पेसेज पर राजनीतिक चर्चा सुनी जा सकती है। नेता और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग अपने घर से या यात्रा के दौरान भी स्पेसेज पर जनता के सामने अपनी बात रखते हैं। स्पेसेज आयोजित करनेवाला होस्ट किसी को भी बोलने की अनुमति दे सकता है। चुनाव के आंरंभिक काल से ही बीजेपी उत्तर प्रदेश के हैंडल से नियमित अंतराल ट्विटर स्पेसज पर आयोजित हो रहा है। अलग अलग राजनीतिक दल भी स्पेसेज आयोजित करते हैं।
ट्विटर की कंटेंट पार्टनरशिप की इंडिया प्रमुख अमृता त्रिपाठी के मुताबिक स्पेसेज की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और संस्थान, राजनीतिक दल और पत्रकार भी इसका उपयोग राजनीतिक चर्चा के लिए कर रहे हैं। अमृता ने बताया कि ट्विटर भी लगातार अपनी इस सेवा में नए नए फीचर जोड़ने पर काम कर रहा है। ट्विटर स्पेसेज पर होनेवाली चर्चा को अब रिकार्ड भी किया जा सकता है ताकि बाद में भी लोग चर्चा को सुन सकें। स्पेसज पर आयोजित चर्चा को शेड्यूल भी किया जा सकता है और आयोजन का समय और विषय आयोजक के हैंडल पर चर्चा आरंभ होने तक दिखता है। ट्विटर के प्लेटफार्म पर आयोजित चर्चा में जितने लोग जुड़े दिखाई देते हैं उससे कहीं अधिक लोग उसे सुन रहे होते हैं। इसको इंटरनेट पर भी सुना जा सकता है जो संख्या चर्चा के दौरान दिखती नहीं है। इस प्लेटफार्म को आभासी चौपाल कहा जा सकता है।
ट्विटर के अलावा फेसबुक रूम पर भी राजनीतिक चर्चा सुनी जा सकती है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान क्लबहाउस की लोकप्रियता भी दिखी थी। इस ऐप के जरिए उस समय राजनीतिक चर्चा और नेताओं से संवाद के कई कार्यक्रम हुए थे। चुनाव के दौरान मैसेजिंग प्लेटफार्म का भी खूब उपयोग हो रहा है। व्हाट्सएप, टेलीग्राम और सिग्नल पर संदेशों और इमोजी का आदान-प्रदान पुरानी बात हो गई है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान मैसेजिंग एप पर राजनीतिक संदेशों वाले स्टिकर और जीआईएफ का प्रयोग देखने को मिला।