क्रिप्टो करेंसी की राह पर चलना जरा संभल कर, आभासी मुद्रा के हैकिंग की बढ़ी आशंका
आज लगभग पूरे विश्व में क्रिप्टो करेंसी चर्चा में है। इसमें निवेश करने वालों की संख्या और निवेशित धन को देखते हुए अनेक देशों की सरकारें इसे वैध बनाने की दिशा में अग्रसर दिख रही हैं। हालांकि दुनिया में अल सल्वाडोर जैसे देशों के उदाहरण बहुत कम हैं, जहां बिटकाइन जैसी आभासी (क्रिप्टो या वर्चुअल) करेंसी को कानूनी मान्यता मिली है। इसके बावजूद दुनिया भर के युवाओं में क्रिप्टो करेंसी में निवेश का क्रेज है।
दरअसल हाल के वर्षों में जिस तरह से रातों-रात इनकी कीमतों में उछाल आया है, खास तौर से युवाओं ने भीषण गिरावट के खतरे के बावजूद इनमें निवेश का जोखिम लिया है। उससे यह सवाल पैदा हुआ है कि दुनिया में इस वक्त जो लाखों लोग बिटकाइन डिजिटल मुद्राओं के कारोबार में लगे हुए हैं, कहीं वे किसी जुए जैसी लत के शिकार तो नहीं हो गए हैं। खतरा यह है कि बेरोजगारी की मार और शेयर से लेकर रियलिटी सेक्टर में गिरावट से जूझती दुनिया में क्रिप्टो की दीवानगी एक बड़ा मर्ज न बन जाए।
कभी अर्श पर, तो कभी फर्श पर : आज की तारीख में ब्लाकचेन तकनीक पर आधारित बिटकाइन जैसी क्रिप्टो मुद्राओं की संख्या हजारों में है। हालिया अतीत देखें तो इनमें से कई क्रिप्टो मुद्राओं ने अपने निवेशकों को हजारों गुना रिटर्न भी दिया है। कुछ दावों के मुताबिक कई नई क्रिप्टो करेंसी ऐसी भी आई हैं जिन्होंने अपने निवेशकों को रातोंरात करोड़पति- अरबपति भी बना दिया है। इनकी कहानियां खास तौर पर इंटरनेट मीडिया पर छाई रहती हैं। ऐसे विस्मयकारी रिटर्न ने कोरोना महामारी के दौर में लोगों का रुझान इनकी तरफ कायम कर दिया। डिजिटल मुद्रा ट्रेडिंग प्लेटफार्म क्रिप्टो डाट काम के मुताबिक फिलहाल दुनिया भर में 22.1 करोड़ लोग ऐसी मुद्राओं में ट्रेडिंग (कारोबार) कर रहे हैं। चीन स्थित क्रिप्टो विश्लेषक फर्म -चाइना एनालिसिस- के मुताबिक जुलाई, 2020 से जून, 2021 के बीच भारत में क्रिप्टो का कारोबार 641 प्रतिशत बढ़ गया। यह बढ़त एशियाई देशों में सबसे ज्यादा मानी जा रही है।
आकलन यह है कि मध्य और दक्षिण एशियाई देशों में समान अवधि में 572.5 अरब डालर क्रिप्टो में झोंके गए। इसमें यदि एक करोड़ डालर से ऊपर के कारोबार की बात करें, तो भारत में ऐसे सौदों का प्रतिशत इस क्षेत्र में 42 प्रतिशत रहा, जबकि पाकिस्तान में 28 प्रतिशत और वियतनाम में 29 फीसद रहा। इससे दो तथ्य उभरकर सामने आते हैं। एक तो यह कि भारत में क्रिप्टो को लेकर काफी संजीदगी दिख रही है। दूसरा तथ्य यह है कि कई देशों के मुकाबले भारत में क्रिप्टो के कारोबार में उतरने वाली आबादी ज्यादा युवा और तकनीक की जानकार (टेक-सेवी) है। इसी सिलसिले में जो तीसरी अहम बात सामने आती है, वह यह है कि जैसे-जैसे युवाओं में क्रिप्टो की चाह बढ़ी है, उसी तरह इन मुद्राओं का तेज पतन भी हुआ है। मिसाल के तौर नवंबर, 2021 को 60 हजार डालर वाले एक बिटकाइन की कीमत छह महीने से कम समय में आधी से भी नीचे चली गई थी। इस बीच किसी नई और अनजान क्रिप्टो करेंसी में तेज उछाल की खबरें आती हैं, तो युवा अपनी बची पूंजी भी इनमें झोंकने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। लेकिन जिस तेजी से नई क्रिप्टो करेंसी उभरती है, उससे भी ज्यादा तेजी से उसके पतन की खबरें आती हैं। निश्चय ही इस पूरे ट्रेंड के खतरनाक नतीजे निकलने का अंदेशा है। ठीक उसी तरह, जैसे पिछले कुछ वर्षों से देश में स्टार्टअप के नाम पर हजारों छोटी-मोटी कंपनियां बनाई गईं और उनमें से ज्यादातर अनुभवहीनता, कारोबार की समझ नहीं होने और बड़ी कंपनियों की आक्रामक नीतियों के लागू होने के कारण ठप हो गईं। क्रिप्टो करेंसी के छलिया भविष्य का तानाबाना भी युवाओं को बुरी तरह ठग रहा है।
भावनात्मक संकट : क्रिप्टो करेंसी की कीमतों में उतार-चढ़ाव की अटकलों में उलझे और अपने निवेश के चुटकियों में कई गुना हो जाने का ख्वाब इन युवाओं को भावनात्मक संकट में डाल रहा है। चूंकि ये डिजिटल मुद्राएं अपने स्वभाव में अस्थिर हैं, ऐसे में इनमें पैसा झोंकने वाले युवा हर समय चिंताग्रस्त रहते हैं। ऐसा इसलिए है कि इन मुद्राओं में मिलने वाला लाभ कई बार चंद मिनटों में ही स्वाहा हो जाता है। हालात ये हैं कि डिजिटल या क्रिप्टो करेंसी में पैसा लगाने वाले हजारों-लाखों युवाओं की जिंदगी किसी रोलर-कोस्टर की सवारी जैसी हो गई है, जहां वे कभी आसमान पर होते हैं, तो कभी एकदम फर्श पर आ जाते हैं। इसका असर युवाओं की मानसिक स्थिति पर भी पड़ रहा है। यही वजह है कि स्काटलैंड के एक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र कैसल क्रेग ने दुनिया में क्रिप्टो करेंसी की खरीद-फरोख्त की बढ़ती लत को नए जमाने की महामारी घोषित कर दिया है।
क्या पाबंदी ही है सही इलाज : सवाल यह है कि इस महामारी से मुकाबला कैसे किया जाए। असल में, क्रिप्टो करेंसी और स्टार्टअप जैसी चीजों में बिना ज्यादा जानकारी हासिल किए और आगा-पीछा सोचे बगैर कूद पडऩा खतरों को न्यौत रहा है। दूसरों की देखादेखी अधकचरे ज्ञान के बल पर खुद की और दूसरों से हासिल की गई पूंजी से खोले गए ज्यादातर स्टार्टअप औंधे मुंह गिर रहे हैं। ठीक वही हाल क्रिप्टो में पांव धरते ही धड़ाम हो रहे युवाओं का हो रहा है।
इधर चूंकि भारत सरकार को क्रिप्टो करेंसी के खतरों का अंदाजा है, इसलिए वह इसे किसी भी किस्म की मान्यता देने से साफ बच रही है। हमारे देश में चर्चा यहां तक होती रही है कि कहीं भारत सरकार क्रिप्टो के कारोबार को ही प्रतिबंधित न कर दे और सभी वर्चुअल मुद्राओं को गैरकानूनी न घोषित कर दे। हालांकि सरकार ने अभी तक ऐसी पाबंदी लगाने से खुद को दूर रखा है, लेकिन इसकी खरीद-फरोख्त पर लाभ की स्थिति में 30 प्रतिशत के टैक्स ने साबित कर दिया है कि वह निवेशकों और युवाओं को इससे दूर रखना चाहती है।
किसने बनाया क्रिप्टो को विलेन। आज भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां क्रिप्टो करेंसी की उठापटक और प्रचलन चिंता का कारण बन गया है। कुछ ही समय पहले इंडोनेशिया की नेशनल उलेमा काउंसिल (एमयूआइ) ने क्रिप्टो करेंसी को प्रतिबंधित घोषित किया है। इस काउंसिल ने कहा कि चूंकि क्रिप्टो करेंसी के चरित्र में अनिश्चितता, नुकसान और जुएबाजी जैसे तत्व शामिल हैं, ऐसे में ये हराम है। इससे पहले पड़ोसी देश चीन ने भी बिटकाइन और इस जैसी अन्य आभासी मुद्राओं के सृजन और लेनदेन पर रोक लगाई है। सितंबर, 2021 में चीन के केंद्रीय बैंक पीपल्स बैंक आफ चाइना ने क्रिप्टो करेंसी से जुड़ी सभी ट्रांजेक्शन को अवैध घोषित कर दिया था। पीपल्स बैंक आफ चाइना ने वर्चुअल करेंसी से जुड़ी कारोबारी गतिविधियों को अवैध वित्तीय गतिविधि के रूप में चिह्नित करते हुए कहा था कि ऐसी आभासी मुद्राएं जनता की जमापूंजी की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं।
ध्यान रखना होगा कि चीन दुनिया के सबसे बड़े क्रिप्टो करेंसी के बाजारों में से एक है। वहां क्रिप्टो करेंसी में होने वाले उतार-चढ़ाव से अक्सर इन करेंसी की वैश्विक कीमतें प्रभावित होती रही हैं। इसलिए सितंबर में जब चीन ने बिटकाइन पर रोक लगाई तो उस दिन इसकी कीमत दो हजार डालर से ज्यादा गिर गई। सरकारों, केंद्रीय बैंकों और समाजशास्त्रियों की सबसे बड़ी चिंता अब यह है कि कहीं क्रिप्टो को लेकर मची यह सनसनी 2000 के डाट काम बबल जैसी न साबित हो। उस दौर में आइटी कंपनियों का कारोबार बढ़ते देख लोगों ने उनमें पूंजी झोंक डाली थी और बाद में ज्यादातर कंगाल हो गए थे। उसी तरह क्रिप्टो को लेकर पूरी दुनिया आशंकित हो गई है। ये आशंकाएं बेमानी नहीं हैं, क्योंकि क्रिप्टो में स्वर्ण (गोल्ड), कंपनियों के शेयर और सरकारी (केंद्रीय) बैकों द्वारा जारी की जाने वाली आधिकारिक मुद्राओं के साथ कोई ऐसा आश्वासन भी नहीं जुड़ा है, जो निवेशकों में यह भरोसा जगाता हो कि इनका कारोबार ठप होने पर भी निवेश का कुछ मूल्य तो अवश्य ही मिलेगा।
क्रिप्टो करेंसी को आधुनिक समय की महामारी कहने के पीछे सबसे अहम कारण इन मुद्राओं का आभासी (वर्चुअल) होना, सरकारी नियंत्रण से बाहर होना और इनकी कीमतों का बेहद खतरनाक ढंग से चढऩा (वैल्यूशन) है। अभी निवेशकों में इसका आकर्षण इसीलिए है, क्योंकि आभासी होने के बाद यह खरीदार के पास इसके मालिकाना हक का अहसास कराती है और इसके चोरी होने जैसे खतरे न्यूनतम हैं। लेकिन कुछ ही महीने पहले कर्नाटक से सामने आए बिटकाइन घोटाले से क्रिप्टो के वेबसाइटों की हैंकिंग का खतरा भी उजागर हो गया है। कर्नाटक में श्रीकृष्ण उर्फ श्रीकी ने बिटकाइन एक्सचेंज को हैक करके जिस तरह करोड़ों के बिटकाइन अपने खाते में भेज दिए, उससे क्रिप्टो खरीदारों की पूंजी के कभी भी स्वाहा होने का खतरा साफ दिखने लगा है। पहले से ही साइबर लुटेरों (हैकरों) के कारण संकट में पड़ी इलेक्ट्रानिक या डिजिटल लेनदेन की व्यवस्था को देखते हुए यह आशंका सहज ही उपज सकती है कि क्रिप्टो कहीं सच में एक बुलबुला न साबित हो।
निवेशकों को क्रिप्टो की ओर जो दावा करते हुए लुभाया जाता रहा है, उसमें एक तर्क बिटकाइन आदि को डिजिटल गोल्ड की तरह निवेश का एक आकर्षक विकल्प बताना है। लेकिन ध्यान रहे कि सरकारी मुद्राओं से बाहर किसी भी चीज में निवेश उसके मौलिक या आधारभूत मूल्य (फंडामेंटल वैल्यू) से तय होता है। इस मूल्यांकन में फंडामेंटल वैल्यू ऐसी रकम होती है, जिसके आधार पर किसी संपत्ति के पैदा होने की उम्मीद रखी जाती है। मसलन यदि निवेशक किसी कंपनी में निवेश करता है तो ऐसा वह इस प्रत्याशा में करता कि आगे चलकर कंपनी मुनाफा कमाएगी। इससे शेयर की बढ़ी हुई और लाभांश के रूप में निवेशक फायदा उठाने की स्थिति में होगा। इसी तरह केंद्रीय-सरकारी बैंकों की मुद्राओं को एक तय सिस्टम के दायरे में लेनदेन का आसान जरिया माना जाता है, क्योंकि उस मुद्रा पर छपी कीमत के बराबर रकम सरकार देने का वचन देती है। लेकिन क्रिप्टो के मामले में स्वर्ण या शेयर में निवेश और सरकारी मुद्राओं जैसे आश्वासन नहीं हैं। इनमें फंडामेंटल वैल्यू तय करने का कोई आधार या इनके एवज में दी जाने वाली संपत्ति मौजूद नहीं है।