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यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप से तीसरे विश्‍व युद्ध का गहराता संकट और अंतरराष्ट्रीय कानून

यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप से तीसरे विश्‍व युद्ध का गहराता संकट और अंतरराष्ट्रीय कानून
सिद्धार्थ मिश्र। रूस और यूक्रेन विवाद इस समय पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। रूस के आक्रामक रुख और यूक्रेन के खिलाफ हमले की आशंका ने विश्व में अशांति और असुरक्षा का परिवेश निर्मित किया है। वैश्विक पटल पर चिंता है कि यदि रूस यूक्रेन पर कोई सैन्य कार्रवाई या हमला करता है तो उसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। आज जिस प्रकार के वैश्विक समीकरण बन रहे हैं, उससे यह भी स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर विभिन्न देशों में मतभेद हैं। ऐसे में इस मसले का समाधान तलाशने और इस भौगोलिक क्षेत्र में शांति कायम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को अपनी ओर से पहल करनी चाहिए।

वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन तनातनी की पृष्ठभूमि को देखें तो रूस का यूक्रेन से लंबे समय से चल रहा तनाव है जो 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर किए कब्जे से पैदा हुआ था। हालांकि हालिया गतिरोध का एक मुख्य कारण यूक्रेन का नाटो यानी नार्थ अटलांटिक देशों के समूह में शामिल होने का निर्णय है जिससे रूस नाराज है। दरअसल रूस नाटो में यूक्रेन के शामिल होने को अपने लिए खतरे के रूप में देखता है। रूस को भय है कि यूक्रेन के नाटो में शामिल होने से नाटो देशों का हस्तक्षेप व प्रभाव रूसी क्षेत्र में बढ़ जाएगा जिससे रूसी हितों व संप्रभुता को खतरा पैदा हो सकता है। रूस ने धमकी दी है कि यदि यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ और पूर्वी यूरोप में तैनात नाटो सैनिकों की संख्या कम नहीं की गई तो रूस सैन्य कार्रवाई करेगा। उधर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भी अपना रुख स्पष्ट कर रूस को चेताया है कि किसी भी सैन्य कार्रवाई की स्थिति में रूस को आर्थिक पाबंदियां व जवाबी कार्रवाई झेलनी पड़ेगी।

प्रथम दृष्टया इस संकट को कोई प्रत्यक्ष उत्प्रेरक नहीं है और यह संकट मुख्य रूप से अदृश्य आंतरिक दबावों से उपजा हुआ प्रतीत होता है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन का देश में राजनीतिक संस्थाओं व मीडिया पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाना और रूस में राष्ट्रीयता की भावना के बढऩे से रूस ने यूक्रेन सहित कई पूर्ववर्ती सोवियत देशों में अपने हित साधने शुरू दिए हैं। रूसी सरकार पश्चिमी देशों को भी संदेह की दृष्टि से देखती है और उन पर राजनीतिक एजेंडा चलाने का आरोप लगाती रही है। पुतिन ने संभवत: पश्चिमी देशों की एकता में बिखराव व कमजोर नेतृत्व के चलते नाटो की शक्ति और निश्चय को परखने का यह सही समय चुना है।

वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के आकलन से यह स्पष्ट है कि यूक्रेन पर रूसी हमले से नाटो का पूर्वी यूरोप में दखल और बढ़ जाएगा। साथ ही रूस दुनिया में अलग थलग होकर चीन पर और अधिक निर्भर हो जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो यह रूस के नाटो को पूर्वी यूरोप से दूर रखने के लक्ष्य पर कुठाराघात होने के साथ ही चीन के प्रति रूसी जनता, जो चीन को एक खतरे के रूप में देखती है, उसके भय को और बढ़ा देगा। इस संकट का लंबे समय से कायम यूरोप की स्थिरता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

ऐसा अनुमान है कि रूस यूक्रेन को न केवल नाटो में शामिल होने से रोकना चाहता है, अपितु उसकी विदेश व रक्षा नीति पर भी नियंत्रण कर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सीमित करना चाहता है। रूस इस बात से भी व्यथित है कि पिछले आठ वर्षों से चल रहा संघर्ष भी यूक्रेन को रूस की तरफ झुकाकर उसका पश्चिमी देशों के प्रभाव वाले यूरोपीय संघ की तरफ झुकाव रोक नहीं सका। यूक्रेन समस्या का समाधान न केवल दोनों देशों के, बल्कि समस्त यूरोपीय क्षेत्र व विश्व के हित में है।

इस मामले को सुलझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास जारी हैं और अमेरिका सहित अन्य कई देश राजनीतिक हस्तक्षेप व कूटनीति से इस मामले का हल खोजने को प्रयासरत हैं। परंतु अभी इस समस्या का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा। ऐसे में प्रश्न यह पैदा होता है कि मौजूदा मसले का हल किस प्रकार निकले? अंतरराष्ट्रीय कानून और संस्थाओं की इसमें क्या भूमिका हो सकती है?

देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र की इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र शांति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपने मुख्य अंगों की सहायता से कार्य करता है व राष्ट्रों द्वारा एक दूसरे की संप्रभुता व अखंडता का सम्मान करना इसका मुख्य सिद्धांत है। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यकारी अंग सुरक्षा परिषद सदैव कार्यरत रहता है। विश्व में कहीं भी शांति का उल्लंघन हो या होने की आशंका हो तो मामले का संज्ञान लेकर उचित कार्रवाई की संस्तुति करना उसकी जिम्मेदारी है। सुरक्षा परिषद द्वारा मामले का संज्ञान लेने के लिए आवश्यक नहीं कि देशों के बीच संघर्ष प्रारंभ ही हो गया हो, अपितु संघर्ष आरंभ होने की आशंका प्रतीत होने पर भी सुरक्षा परिषद को इसका संज्ञान लेना होता है।

पूर्व में अनेक बार ऐसा हुआ है कि दो या अधिक देशों के मध्य उपजे विवाद को सुरक्षा परिषद ने वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए खतरा माना है। यहां तक कि अनेक मामलों में किसी देश की आंतरिक अशांति को भी वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए खतरा मान कर कार्रवाई की संस्तुति की गई है। हैती, सूडान समेत अन्य कई मामलों में सुरक्षा परिषद यह रुख अपना चुकी है।

किसी मामले का संज्ञान लेकर यदि सुरक्षा परिषद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि वह स्थिति वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए खतरा है तो सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय छह और सात के अनुसार कार्रवाई की संस्तुति कर सकती है। सर्वप्रथम वह शांतिपूर्ण उपायों जैसे मध्यस्थता इत्यादी द्वारा मामले का हल निकालने का प्रयास करती है। परंतु यदि इन प्रयासों से मामले का हल न निकले तो सुरक्षा परिषद अध्याय सात से अनुसार प्रवर्तन उपायों जिसमें संघर्ष विराम और यथास्थिति बनाए रखने के अतिरिक्त कूटनीतिक व आर्थिक प्रतिबंध लगाने और बल के प्रयोग की संस्तुति कर सकती है।

अमेरिका और नाटो के संयुक्त मोर्चे के रुख से उम्मीद है कि रूस यूक्रेन के विरुद्ध किसी भी सैन्य कार्रवाई से बचेगा, क्योंकि इसकी प्रतिक्रिया अवश्य होगी। सुरक्षा परिषद व अन्य राष्ट्रों को भी प्रयास कर रूस और यूक्रेन दोनों देशों को अपनी अपनी सेनाओं को सीमा से वापस बुला कर संयुक्त राष्ट्र की शांति सेनाओं से क्षेत्र की निगरानी करनी चाहिए। इससे समस्या के स्थायी समाधान का रास्ता निकलेगा और फिलहाल विश्व में तृतीय विश्व युद्ध की आशंका दूर होगी।