भारत की क्षेत्रीय अखंडता और अस्तित्व को लेकर राहुल गांधी के विचार खतरनाक
प्रकाश जावड़ेकर। मध्यमार्गी राष्ट्रीय दल से कांग्रेस के अतिवादी वामपंथ की दिशा में विचलन को दो भाषणों से समझा जा सकता है। करीब 73 वर्षों की अवधि के ये भाषण कांग्रेस में आई गिरावट को दर्शाते हैं। इनमें पहला भाषण 1949 का और दूसरा 2022 का है। पहला भाषण संविधान सभा की बहस में के. सुब्बाराव का था और दूसरा केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्य राहुल गांधी का, जो उन्होंने बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान दिया। स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य सुब्बाराव ने संविधान के अनुच्छेद एक से जुड़ी बहस में कहा था, 'भारत नाम ऋग्वेद में उल्लिखित है। साथ ही वायु पुराण में भी इन शब्दों में भारतीय सीमा का सीमांकन किया गया है-इदम् तु मध्यम चित्रम सुभाशुभ फलदायम, उत्तरम यत्समुद्रस्य हिम वन दक्ष्नम चयत। अर्थात् हिमालय के दक्षिण और (दक्षिणी) महासागर के उत्तर में जो भूमि स्थित है, वह भारत है। इसलिए भारत नाम बहुत प्राचीन है।
'कांग्रेसी सुब्बाराव 1949 में सार्वजनिक रूप से ऋग्वेद और वायु पुराण का उदाहरण देने के साथ ही अपने प्राचीन अतीत से भारत की सभ्यतागत विरासत एवं सांस्कृतिक कडिय़ों को जोड़ रहे थे। यह भी उल्लेखनीय है कि 2022 में भारत की सीमाओं का वर्णन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी वायु पुराण का वही उद्धरण दिया। दरअसल 1949 के दौर की कांग्रेस पार्टी सभी वर्गों को समाहित करने वाली थी और इसमें वे लोग भी शामिल थे, जो मानते थे कि स्वर्णिम अतीत से भारत का गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव रहा। पार्टी की बड़ी छतरी के तले इन सभी विचारों का समागम देखने को मिलता था। उसकी तुलना में आज की मौजूदा कांग्रेस पार्टी हमारे सांस्कृतिक अतीत से जुड़ाव के किसी भी पहलू के प्रति तिरस्कार भाव रखती है। आज कांग्रेस के कई सदस्यों में देश के बहुलतावाद की झलक नहीं मिलती। इसकी पड़ताल के लिए हाल में राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर राहुल गांधी के भाषण से इतर किसी और उदाहरण की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। विगत दो फरवरी को लोकसभा में राहुल गांधी ने कहा, 'यदि आप भारत का संविधान पढि़ए तो पाएंगे...और मेरे तमाम साथियों ने अगर इसे नहीं पढ़ा है तो उन्हें यह पढऩा चाहिए...कि भारत का उल्लेख 'राज्यों का संघ' के रूप में है।' इसमें कोई संदेह नहीं कि संविधान में भारत को 'राज्यों का संघ' कहा गया है। इस पद की सबसे बढिय़ा व्याख्या स्वयं डा. भीमराव आंबेडकर ने की है। संविधान का प्रारूप तैयार करते हुए और संविधान सभा में हुई बहस के आधार पर डा. आंबेडकर और अन्य सदस्य ऐसे कई बिंदुओं-विचारों पर मंथन कर रहे थे कि संविधान के अनुच्छेद-एक को किस प्रकार स्वरूप दिया जाना चाहिए। अंतिम सहमति 'भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा' पर बनी। संविधान के प्रारूप पर चर्चा प्रस्ताव के दौरान आंबेडकर ने इसे और विस्तार से समझाया, 'प्रारूप समिति यह स्पष्ट करना चाहती है कि यद्यपि भारत की प्रकृति परिसंघ की हो, किंतु यह परिसंघ राज्यों की सहमति का परिणाम नहीं और किसी राज्य के पास इससे विलग होने का अधिकार नहीं होगा। परिसंघ एक संघ है, क्योंकि यह अविनाशी है।'
आंबेडकर ने आगे कहा कि प्रशासनिक सुगमता के लिए देश के हिस्से और जनता भले ही राज्यों में विभाजित हों, किंतु संपूर्ण देश समग्र्रता में एक है, जिसकी प्राधिकार शक्ति का एक ही विशेष स्रोत है। आंबेडकर ने यह भी कहा कि अमेरिकियों को भले ही यह स्थापित करने के लिए गृहयुद्ध छेडऩा पड़ा कि अमेरिका के भीतर राज्यों को उससे विलग होने का कोई अधिकार नहीं और उनका परिसंघ अविनाशी है, वहीं प्रारूप समिति ने इस मुद्दे को आरंभ से ही स्पष्ट करना उचित समझा ताकि किसी भी प्रकार के विवाद या अटकलों के लिए कोई गुंजाइश न हो।
ऐसे में यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत की अविनाशी प्रकृति को लेकर आंबेडकर का दर्शन राहुल गांधी के दर्शन से एकदम अलग है, क्योंकि राहुल का विचार देश को खंडित करने वाला है। भारत की क्षेत्रीय अखंडता और अस्तित्व को लेकर राहुल गांधी का विचार माफी लायक नहीं। यदि यह एकाएक दिया गया अलहदा किस्म का बयान था तो उसे अपरिपक्वता समझकर रफा-दफा किया जा सकता है। हालांकि लोकसभा में दिए गए राहुल गांधी के इस भाषण को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता। पिछले साल अप्रैल में जब भारत कोविड की दूसरी लहर के कोप से जूझ रहा था, तब भी राहुल गांधी के विखंडनवादी स्वर सुनने को मिले थे। इतना ही नहीं अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री एवं हार्वर्ड के प्रोफेसर निकोलस बन्र्स के साथ मुलाकात के दौरान उन्होंने विदेशी हस्तक्षेप की गुहार भी लगाई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में उचित ही कहा कि इस प्रकार की भाषा तो 'अर्बन नक्सल' यानी शहरों में रहने वाले नक्सलवादियों के समर्थकों की ही हो सकती है।
यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो चला है कि कांग्रेस नेताओं के ऐसे बयानों को बहुत गंभीरता से लिया जाए। नागरिक राष्ट्रवाद और सभ्यतागत राष्ट्रवाद पर बहस के बीच हमारे इस महान देश के अस्तित्व पर सवाल उठाने की सुनियोजित कोशिशें होती दिख रही हैं। हम भारत के लोग इसका पुरजोर जवाब देंगे।