UP Election 2022: कभी विकास दुबे के घर लगा दल का झंडा होता था फरमान... 30 साल बाद अब बिकरू करेगा बेखौफ मतदान
कानपुर [नरेश पांडेय]। उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के चौबेपुर इलाके का गांव बिकरू, किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लगभग तीस साल पहले जब इस गांव में कुख्यात विकास दुबे के नाम का परचम लहराया तो उसके साथ ही लोकतंत्र का सूरज भी डूब गया। अब न तो विकास दुबे है और न ही उसका खौफ। बिकरू सहित आसपास के दो दर्जन से ज्यादा गांवों में इन दिनों विधानसभा चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं है। तीन दशक बाद ग्रामीण अपने मन की बात सुनकर ईवीएम का बटन दबाने को आतुर हैं।
दैनिक जागरण की टीम गुरुवार को जब बिकरू पहुंची तो बदलाव साफ झलक रहा था। गांव के बच्चे हाथों में विभिन्न पार्टियों का झंडा लिए लोकतंत्र के इस उत्सव का जश्न मना रहे थे। गांव की पहले गली में पहला घर वीरेंद्र दुबे का है। जब हमारी टीम ने गांव में चुनाव और विकास दुबे की चर्चा की तो वह मुस्करा दिए। बोले, भले ही देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हों, लेकिन बिकरू को तो आजादी अब मिली है। पहले विकास दुबे की कोठी पर जिस दल का झंडा लग जाता था, पूरा गांव उसी को वोट देता था। क्या मजाल जो कोई हुक्म की नाफरमानी कर दे। विकास दुबे के खात्मे के साथ उसका भय भी यहां खत्म हो चुका है।
कुछ अन्य लोगों से बात करने की कोशिश की तो वह बात करने में झिझक रहे थे। बाद में पता चला कि उक्त लोग उन्हीं परिवारों से हैं, जो बिकरू कांड के आरोपित हैं। गांव के राकेश पांडेय बदल रहे परिदृश्य को लेकर काफी खुश हैं। वह बताते हैं कि गांव की तस्वीर अब अलग है। अब यहां के मतदाता खुलकर पसंद के प्रत्याशी को लेकर चर्चा कर सकते हैं। पहले तो पंडित जी का हाथ जिस उम्मीदवार होता था, वही प्रचार करने गांव में घुस सकता था। करीब 30 साल बाद बिकरू में असली लोकतंत्र आया है, जब यहां मतदाता बेखौफ होकर अपनी इच्छा के अनुसार वोट देंगे। पहले बिकरू ही नहीं आसपास दो दर्जन गांवों में एकतरफा मतदान होता था।
बिकरू गांव के कल्लू, सानू, चंद्र किशोर, अरुण काफी उत्साहित हैं। बताते हैं, अब मतदान भय के माहौल में नहीं होगा। खुदाबक्स, रामकिशन और मेहंदी हसन कहते हैं कि हर चुनाव में विकास दुबे के कहने पर ही हम लोग वोट देते थे। लेकिन, अब डर नहीं रहा। इस बार अपनी मर्जी से विधायक चुनेंगे। गांव वाले बताते हैं कि चुनाव में कहा न मानने पर कुख्यात के गुर्गे पेड़ में बांधकर पिटाई करते थे। अब वह खौफ खत्म हो चुका है।
बिकरू कांड : दो जुलाई 2020 की रात चौबेपुर का गांव बिकरू गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठा था। यहां कुख्यात विकास दुबे के घर दबिश देने गई पुलिस टीम को घेरकर हमला किया गया, जिसमें सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी बलिदान हो गए थे। बाद में विकास समेत उसके छह गुर्गे पुलिस मुठभेड़ में मारे गए।
दो दर्जन गांवों में बजता था डंका : वर्ष 2007 तक चौबेपुर, फिर परिसीमन के बाद बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र में दलों का झंडा लेकर मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने के लिए बिकरू गांव की परिक्रमा जरूर की। आसपास के दो दर्जन गांवों तक विकास दुबे के फरमान का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। बिकरू और आसपास के कई गांवों में गैंगस्टर की रसूख पर दो दशक तक लगातार निर्विरोध ग्राम प्रधान चुने जाते रहे। बिकरू में तो उसका परिवार या गुर्गे ही चार दशक से ग्राम प्रधानी पर काबिज था।
इन गांवों में पत्थर की लकीर था विकास का फरमान : बिकरू से जुड़े डिब्बा निवादा, भीठी, सुज्जा निवादा, देवकली, बसेन दिलीप नगर, ताकीपुर, मदारीपुर, जादेपुर, सखरेज, सकरवां सहित 20 गांव में विकास दुबे के कहने पर वोट होता था। इन गांवों में वोटरों की संख्या लगभग 35 से 40 हजार है। बिकरू और उससे सटे गांव भीठी और सुज्जा निवादा में न केवल विकास का आदेश तो इस कदर लागू होता था कि तीनों गावों में 97 प्रतिशत तक मतदान हो जाता था। ग्राम प्रधान मधु कमल कहते हैं गांव में अब कोई खौफ नहीं है। विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारी चल रही है। लोगों में उत्साह भी है। लंबे अरसे बाद लोकतंत्र के पर्व में अपनी पसंद के प्रत्याशी का चुनाव कर सकेंगे।