महान डा. मिचियाकी ताकाहाशी को Google ने डूडल के जरिए दी श्रद्धांजलि, यहां जाने उनके बारे में
Dr. Michiaki Takahashi: महान डा. मिचियाकी ताकाहाशी को Google ने डूडल के जरिए दी श्रद्धांजलि, यहां जाने उनके बारे में
टोक्यो, जेएनएन: आज गूगल ने चिकनपाक्स के टीके का आविष्कार करने वाले डा मिचियाकी ताकाहाशी को 94वीं जयंती पर डूडल के जरिए श्रद्धांजलि दी है। दरअसल, डाक्टर मिचियाकी ताकाहाशी का जन्म आज ही के दिन 1928 में जापान के ओसाका में हुआ था। उन्होंने ओसाका विश्वविद्यालय से अपनी चिकित्सा की डिग्री हासिल की और 1959 में ओसाका विश्वविद्यालय के माइक्रोबियल रोग अनुसंधान संस्थान में शामिल हो गए। खसरा और पोलियो वायरस का अध्ययन करने के बाद डा ताकाहाशी ने 1963 में संयुक्त राज्य अमेरिका के बायलर कालेज में एक शोध फेलोशिप स्वीकार की। इसी दौरान उनके बेटे को चेचक हो गया। इससे वास्तव में उन्हें बीमारी के खिलाफ एक टीका खोजने में मदद मिली।
इसके बाद डा ताकाहाशी 1965 में जापान लौट आए, इस दौरान उन्होंने जानवरों और मानव ऊतकों में जीवित लेकिन कमजोर चिकनपाक्स वायरस की संवर्धन शुरू कर दिया। केवल पांच साल के विकास के बाद यह नैदानिक परीक्षणों के लिए तैयार था। 1974 में डा ताकाहाशी ने वायरस को लक्षित करने वाला पहला टीका विकसित किया। इम्यूनोसप्रेस्ड रोगियों पर तब शोध किया गया और उन्हें बेहद प्रभावी पाया गया।
जापानी डाक्टर मिचियाकी ताकाहाशी को आज पूरी दुनिया के लोग उनके आविष्कार के लिए उन्हें आभार व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने चेचक जैसी बीमारियों से बचाव का काम किया। इसलिए आज उनके जन्मदिन के अवसर पर Google की ओर से डा मिचियाकी ताकाहाशी का अनोखे तरीके से आभार व्यक्त किया। ताकाशाही के योगदान के लिए उनकी 94वीं जयंती पर गूगल ने डूडल के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने संक्रामक और गंभीर बीमारियों के रोगियों के लिए एक प्रभावी उपाय के रूप में टीके का आविष्कार किया। तब से लेकर अब तक दुनिया भर में लाखों बच्चों को टीका लगाया गया है।
आपको बता दें कि 1986 में, जापान में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित एकमात्र वैरिकाला वैक्सीन जापान में ओसाका विश्वविद्यालय के माइक्रोबियल रोगों के लिए अनुसंधान फाउंडेशन द्वारा पेश किया गया था। डा ताकाहाशी द्वारा निर्मित इस जीवन रक्षक का तुरंत 80 से अधिक देशों में उपयोग किया गया। हालांकि, इसके बाद 1994 में उन्हें ओसाका विश्वविद्यालय में माइक्रोबियल रोग अध्ययन समूह का निदेशक नियुक्त किया गया था। वह अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर रहे। 16 दिसंबर 2013 को उनका निधन हो गया था।