नेपाल को लेकर अमेरिका और चीन के बीच कूटनीति जंग तेज, क्या आसान होगी भारत की राह?- एक्सपर्ट व्यू
नेपाल को लेकर अमेरिका और चीन के बीच कूटनीति जंग तेज, क्या आसान होगी भारत की राह?- एक्सपर्ट व्यू
नई दिल्ली, जेएनएन। इन दिनों भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। इसकी दो प्रमुख वजहे हैं। हाल में नेपाल सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से दावा किया है कि चीन उसके इलाके में हस्तक्षेप कर रहा है। दूसरे, द्विपक्षीय संबंधों पर पुनर्विचार करने की अमेरिकी धमकी से नेपाल में चिंता गहरा गई है। इसके बाद दक्षिण एशिया का यह छोटा सा मुल्क सुर्खियों में है। आखिर चीन और अमेरिका की नजरों में क्यों चढ़ा नेपाल? इसके क्या बड़े निहितार्थ हैं? नेपाल में चीन और अमेरिका के दखल का भारत पर क्या असर पड़ेगा? आइए जानते हैं इस पर क्या है विशेषज्ञों की राय।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि इसके लिए नेपाल में पूर्व में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का चीन के प्रति झुकाव के चलते यह स्थिति उत्पन्न हुई है। चीन की नजर दक्षिण एशियाई मुल्कों पर है। हिमालयी राष्ट्र होने के कारण नेपाल सामरिक रूप से चीन के लिए काफी उपयोगी है। चीन अपनी बेल्ट एडं रोड परियोजना के तहत वह छोटे राष्ट्रों को अपने कर्ज में फंसा रहा है। दक्षिण एशिया के कई मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और नेपाल पर उसकी पूरी नजर है। अब अमेरिका इसको लेकर सजग और सचेत हो गया है। हाल में नेपाल ने चीन के उकसावे में आकर भारत के साथ सीमा विवाद पर नई बहस छेड़ दी थी।
2- हाल के वर्षों में नेपाल की सरकार ने भारत से रिश्तों को संतुलित करने के लिए चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिश की थी। इस रिपोर्ट के नतीजों से चीन के साथ सुधरते रिश्तों पर असर पड़ सकता है। हाल में नेपाल सरकार ने पहली बार आधिकारिक रूप से दावा किया है कि चीन उसके इलाके में हस्तक्षेप कर रहा है। दोनों देशों की आपस में साझी सीमा है। नेपाल सरकार की एक रिपोर्ट में चीन पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है। यह रिपोर्ट पिछले साल सितंबर में तब अधिकृत की गई थी, जब दावे किए जा रहे थे कि पश्चिमी नेपाल के हुमला जिले में चीन अतिक्रमण कर रहा है। नेपाल में चीनी दूतावास ने अतिक्रमण के दावों को खारिज किया है। बता दें कि नेपाल और चीन के बीच सरहद हिमालय पर्वत से करीब 1,400 किलोमीटर लगा है। नेपाल के इस कथन का कि चीन उसके इलाके में हस्तक्षेप कर रहा है, इस रिपोर्ट का असर दोनों देशों के संबंधों पर पड़ सकता है।
बता दें कि 1960 के दशक की शुरुआत में दोनों देशों के बीच कई संधियों पर हस्ताक्षर हुए थे। दोनों देशों की सीमा जहां लगती है, वह सुदूरवर्ती इलाके हैं। इन इलाकों में यहां पहुंचना बहुत आसान नहीं होता है। जमीन पर सीमा का निर्धारण खंभों से किया गया है। ऐसे में कई बार नेपाल और चीन के इलाको को समझना मुश्किल हो जाता है। हुमला जिले में संभावित चीनी अतिक्रमण की रिपोर्ट आने के बाद नेपाल की सरकार ने एक टास्कफोर्स भेजने का फैसला किया था। कुछ लोगों का दावा है कि चीन ने नेपाल के इलाके में कई इमारतों का निर्माण किया है। टास्कफोर्स में पुलिस और सरकार के प्रतिनिधि शामिल थे। चीनी सुरक्षाबलों ने नेपाली क्षेत्र में धार्मिक गतिविधियां बंद कर दी थीं। इस इलाके का नाम लालुंगजोंग है। यह क्षेत्र पारंपरिक रूप से तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, क्योंकि यह कैलाश पर्वत के पास है।
अमेरिका में नेपाल के राजदूत रह चुके सुरेश चालीसे ने कहा है कि अगर हमने एमसीसी से हुए करार का अनुमोदन नहीं किया, तो हम गंभीर संकट में फंस जाएंगे। अगर अमेरिका नेपाल के साथ अपने संबंध पर पुनर्विचार करता है, तो आर्थिक और रणनीतिक मामलों में नेपाल के लिए यह अच्छी बात नहीं होगी। एमसीसी ने बिजली ट्रांसमिशन लाइन और आयात मार्गों के निर्माण के लिए 50 करोड़ डालर की मदद देने की पेशकश की थी। इसके लिए 2017 में समझौता हुआ था। लेकिन तब से उसका नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां विरोध कर रही हैं। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा इस समझौते के अनुमोदन का रास्ता निकालने की कोशिश में जुटे हुए हैं। लेकिन उनकी नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पुष्प कमल दहल और माधव कुमार के नेतत्व वाली दो कम्युनिस्ट पार्टियां इसका पुरजोर विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि ये मदद चीन का प्रभाव रोकने की अमेरिकी कोशिश का हिस्सा है। नेपाल को अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ में नहीं फंसना चाहिए।
भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में चीन और अमेरिका की कूटनीति का क्या असर होगा। इस बारे पर प्रो पंत का कहना है कि फौरी तौर पर नेपाल में चीनी हस्तक्षेप को सीमित करने के लिहाज से भले यह ठीक हो, लेकिन भारत के पड़ोस में दो महाशक्तियों की राजनीति भारत के लिए शुभ नहीं है। इसका दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन पर सीधा असर होगा। भारत के नाक के नीचे महाशक्तियों की लंबे समय तक होड़ भारत के लिए कतई शुभ नहीं हो सकती। इससे दक्षिण एशिया में शस्त्रों की होड़ शुरू होगी।