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प्रयागराज के आतंक अतीक और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या हो गई ।हत्यारे पत्रकार के वेश में थे जिससे पुलिस की आँखें धोखा खा गई ।
          जब अतीक जैसे अपराधी हत्या और अपहरण के बाद   कानून की आंखों में धोखा देने में कामयाब होते  रहते हैं , तब वहां भी पुलिस को ही दोषी माना जाता है ।आज जब  अपराधी अतीक और उसके सहयोगी को मारने में सफल हो जाते हैं ,तब पुलिस को ही दोषी माना जा रहा है । अपराधियों ने  पत्रकार का रूप धरकर पुलिस को धोखा दिया ।अब ड्यूटी पर तैनात 17  पुलिसकर्मी  कर्त्तव्यहीनता के आरोप में निलंबित भी हुए हैं और विभागीय कार्यवाही की प्रक्रिया से गुजरते हुए  संभवतः दंड के भागी  भी माने जायेंगे  ।
              लेकिन क्या पुलिस वालों को पत्रकारों के झोले की जांच करने की छूट होती है ?  क्या पत्रकारों के झोले पर हाथ डालते ही  हंगामा  नहीं मच जायेगा कि चौथे स्तम्भ की स्वतंत्रता बाधित की जा रही है ?'दुहू भांति  भा मरण हमारा ' वाली स्थिति है  पुलिस की । मैं तो ऐसी स्थितियों में पुलिस कर्मियों को दोषी मानने के पक्ष में नहीं हूं । यदि पुलिस वाले अपराधियों को शूट आउट कर देते ,तब भी उनपर आरोप लगता कि फिल्मी स्टाइल में साक्ष्य को खत्म किया गया है ।40 सेकंड का  अंतराल और सारी सुरक्षा के बीच 40 वर्षों के आतंक का अंत ।
                       गणित का सूत्र है - negative negative make pisitive। यहां भी ऐसा हुआ है ।अपराध ने अपराध का खात्मा किया ।      इसके अच्छे और बुरे दोनो पहलू हैं ।अच्छा पहलू यह है कि 10 सेकंड के अपराध ने 40 वर्षों तक अपराध का पर्याय बने अपराधी का खात्मा कर दिया ।बुरा पहलू यह है कि पुलिस सुरक्षा देने में विफल रही ।लेकिन  कमांडो ट्रेनिंग में   बताया जाता है   कि ऐम्बुश( ambush) की स्थिति में  पहले आक्रमण को रोकना सम्भव नहीं होता ।यदि अपराधी भागने में सफल होते तो निश्चित रूप से पुलिस की सतर्कता पर निर्णायक प्रश्न चिह्न लग जाता ।लेकिन ऐसा नहीं हुआ । अतः मैं तो यही कहूंगा कि  तमाम जांच के बाद घटनास्थल पर तैनात पुलिसकर्मी निर्दोष सिद्ध होंगे । हां, सूचना तंत्र की कमजोरी जरूर मानी जायेगी । इस सम्बंध में खुफिया तंत्र को और भी मजबूत करने की जरुरत है ।
        पुनः पुलिस की चूक का राग अलापने वाले लोगों   को यह भी सोचना होगा कि अतीक , मुख्तार और शहाबुद्दीन जैसे अपराधियों को संसद तक पहुंचाने वाली जनता  से  भी तो चूक हुई थी ,अन्यथा सांसद तक कैसे पहुंच पाते  ?
                   ओवैसी जैसे लोग सिर्फ मुस्लिमों पर अत्याचार का आरोप लगायेंगे  ,पर वे भूल जाते हैं कि पूरी जेड प्लस सुरक्षा के बीच भारत के दो प्रधान मंत्रियों की  भी हत्या हुई थी और वे मुस्लिम नहीं थे। प्रधानमंत्री थी इंदिरा गाँधी जी ,पर उनके ही सुरक्षा गार्ड ने उनके ही आवास पर उन्हें गोली मार दी थी ।लेकिन ओवैसी जैसे नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  से ही इस्तीफे की मांग कर रहे हैं । क्या यह नहीं हो सकता कि मुख्यमंत्री को बदनाम करने के लिए  विपक्ष के द्वारा ही साजिश रची गई हो ?  अतीक के ISI से सम्बंध थे और उसने भेद उगलना भी शुरू कर दिया था।  भारत में फैले ISI के गुर्गे भी सुपारी देकर  हत्या करवा सकते हैं । गम्भीर जांच की जरुरत है । इस जांच में उस पत्रकार को भी शक के घेरे में लेना चाहिए जो  पूछ रहा है कि आप  मृत बेटे के जनाजे में क्यों नहीं गए ।  क्या यह पत्रकार इस बात से वाकिफ नहीं था कि  सरकार से उसे जनाजे में जाने की अनुमति नहीं मिली थी ?कहीं यह  यह अपराधी के लिए ऐक्शन में आने के लिए  कोड वर्ड   तो नहीं था ? कहीं पत्रकार का निहितार्थ यह तो नहीं  था कि तुम जल्द ही बेटे के पास पहुंचने वाले हो ।
           उत्तर प्रदेश में हाई एलर्ट जारी कर दिया गया है ।लेकिन आप देख लीजिएगा , नेताओं को छोड़ दीजिए ,तो उत्तर प्रदेश में  कहीं से कोई चूं शब्द भी नहीं होगा, क्योंकि जनता सब समझती है ।