जीएल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च और ग्रेटर नोएडा के वैश्विक मानव संसाधन एवं संगठन विकास केंद्र ने उत्पादकता सप्ताह मनाया
नोएडा स्थित जीएल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में भारत सरकार के राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद उद्योग (वाणिज्य मंत्रालय), ग्लोबल ह्यूमन रिसोर्स एंड आर्गेनाइजेशन डेवलपमेंट सेंटर ओ डी स्किल्स डेवलपमेंट अकादमी, सस्टेनेबिलिटी सेल जीएलबीआई एमएमआर और ग्रेटर नोएडा उत्पादकता परिषद के सहयोग से "उत्पादकता हरित विकास और स्थिरता विषय पर एक दिवसीय इंटर-कॉलेज वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया। ग्रेटर नोएडा उत्पादकता परिषद के निदेशक डॉ.आर.डी. मिश्रा मुख्य अथिति रहे। उन्होंनें प्रतिभागीयों को संबोधित करते हुए कहा कि हरित विकास एक आर्थिक विकास है जो पर्यावरण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें की गयी पहलों और उद्देश्यों के लिये हरित अर्थव्यवस्था के मुद्दों को संबोधित करना बहुत जरूरी है। जीएलबीआईएमआर के प्रोफेसर और ओडीएसडीए निदेशक डॉ. वी. एन. श्रीवास्तव ने प्रतिष्ठित पैनलिस्टों का परिचय देकर उत्पादकता, हरित विकास स्थिरता और चुनौतियों के विविध दृष्टिकोणों को सामने लाकर उत्पादकता सप्ताह समारोह के मैक्रो, माइक्रो जैसे मुद्दो और लक्ष्यों पर प्रकाश डाला। राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के (प्रशासन) निदेशक अमिताव रे ने हरित ऊर्जा को एक नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में संदर्भित किया। उन्होंने उल्लेख किया जीवाश्म ईंधन के विपरीत सीमित संसाधन हैं जो अंततः समाप्त हो जाएंगे और हरित ऊर्जा स्रोत टिकाऊ होते हैं और पर्यावरण पर बहुत कम प्रभाव डालते हैं हरित ऊर्जा के विभिन्न स्रोत सौर, पवन, पनबिजली, भूतापीय, बायोमास हैं जो स्थिरता के लिए जाने जाते हैं। सेंट स्टीफंस अस्पताल नई दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. आमोद कुमार ने कहा कि हरित विकास सतत विकास के लिए एक असाधारण रणनीति है जो पर्यावरणीय मुद्दों और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से निपटने के लिए एक मार्ग प्रदान करता है। एसोचैम के वरिष्ठ सलाहकार पिनाकी दासगुप्ता ने कहा कि मानवता के अस्तित्व के बाद से लगभग 1000 वर्षों से स्थिरता का अभ्यास किया गया है और यह न केवल पर्यावरण से संबंधित है बल्कि इसमें आर्थिक और सामाजिक कोणों से संबंधित मुद्दे और चुनौतियां भी शामिल हैं और स्थिरता की संस्कृति को संस्थागत बनाने और विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है। जीएलबीआईएमआर के सेंटर ऑफ सस्टेनेबिलिटी की प्रमुख डॉ. सुचिता सिंह ने ऊर्जा की खपत और कार्बन उत्सर्जन के संयुक्त प्रभावों को समझने की तत्काल आवश्यकता की ओर इशारा किया जो कईं देशों में हरित विकास को खराब करता है और कहा कि उच्च-जीडीपी वाले देशों के नीति निर्माताओं को अपनी आर्थिक और पर्यावरणीय गतिविधियों का प्रबंधन करना चाहिए। प्रतियोगिता में जीएलबीआईएमआर संकाय के छात्रों के साथ-साथ 300 से अधिक विद्वानों ने आर्थिक विकास, वित्त प्रबंधन, जनसंख्या समस्या और जलवायु परिवर्तन विषयों पर पैनल चर्चा की। बारह छात्रों ने प्रतियोगिता फाईनल राउँड में जगह बनायी जिसमें से 3 प्रतिभागियों को विजेता घोषित किया गया। वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कारों के वितरण और धन्यवाद प्रस्ताव के साथ उत्पादकता सप्ताह समारोह का समापन किया गया।