उच्च सदन का सदस्य हुआ नाकाम, लेखपाल बना अंगद का पाँव
चिन्ता पाण्डेय
जब उच्च सदन के सदस्य को एक लेखपाल का ट्रांसफर कराने के लिए अनुग्रह करना पड़े। और लेखपाल उसी स्थान पर अंगद का पांव बना रहे। तो इसे लोकतंत्र के लिए आत्मघाती क़दम कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
भारतीय जनता पार्टी का तीव्रगति से केंद्रीय करण होता जा रहा है। सारी शक्ति वन शो मैन में निहित होती जा रही है। केंद्र में मोदी यूपी में योगी बहुत तेज़ी से पॉवर पॉलिटिक्स की धुरी बनते जा रहे हैं। हाई लेवल पर इसका ताज़ा उदाहरण मंत्री नितिन प्रसाद के विभागीय ऑफिस में सीएम योगी आदित्यनाथ का इंटरफ़ेयर रहा। पीडब्लूडी के भ्र्ष्टाचार से उतपन्न हेडेक से तंग आकर योगी आदित्यनाथ नाथ ने मंत्री जितिन प्रसाद को विश्वास में लिये बग़ैर उनके स्टॉफ अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इससे व्यथित होकर जितिन प्रसाद ने केंद्र का रुख किया। अमित शाह से मिटिंग के बाद आक्रोश की ज्वाला शांत हो गई। पॉवर पॉलिटिक्स के केंद्रीकरण का ये तो एक डेमो है। स्थिति और भी भयावह होती जा रही है। निचले स्तर पर भी जनप्रतिनिधियों की शिकायत नक्कार खाने में बजने वाली तूती साबित हो रही है। जनपद सोनभद्र में एक पत्र तेज़ी से वायरल हो रहा है। राज्य सभा जैसे उच्च सदन के सदस्य सांसद राम शकल जी ओबरा, डाला, बिल्ली व मारकुंडी खनन बेल्ट का दौरा कर आमजनमानस की समस्याओं से रु ब रु हो रहे थे। तभी स्थानीय लोगों ने बिल्ली मारकुंडी के लेखपाल अरुणोदय पांडे की शिकायत की कि लेखपाल महोदय जमीन नापी में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। खनन में सीमांकन को लेकर भी तमाम खेल खेला गया है। ग्रामीणों की गंभीर शिकायतों को सुनने के बाद सरकार की छवि पर दाग़ न लगे इसके लिए ग्रामीणों को उचित कार्रवाई कराने का भरोसा दिलाया। साथ ही लोगों को यह विश्वास भी दिलाया कि भाजपा सरकार ज़ीरो टॉलरेंस की डबल इंजन सरकार में भ्र्ष्टाचार के लिये कोई जगह नहीं है। इसके बाद सांसद महोदय ने दिनांक 22 नवम्बर 2022 को जिलाधिकारी सोनभद्र को अपने लेटर हेड से पत्र लिखा। पत्र में आग्रह किया कि जनशिकायत के कारण बिल्ली मारकुंडी के लेखपाल अरुणोदय पांडे का तबादला ओबरा तहसील से हटाकर अन्यत्र तहसीलों में करने का कष्ट किया जाये। इसके बाद भी आजतक सांसद महोदय के शिकायती रिक्वेस्ट पत्र के बाद भी लेखपाल अंगद का पाँव बना हुआ है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि उच्च सदन के सदस्य के आग्रह को नज़र अंदाज़ कर दिया जाये। रामशकल जी एक साफ सुथरी छवि के जनप्रतिनिधि हैं। इस बात का डंका समूचे पूर्वांचल में बज रहा है। चांद तारे, फूल और कलियां भी रामशकल जी की ईमानदारी की कसमें खाते हैं। अगर ऐसा जनप्रतिनिधि ग्रामीणों की शिकायत पर एक लेखपाल का ट्रांसफर न करा पाये तो आमजनमानस में क्या मैसेज जाएगा। उच्च सदन का सदस्य जब एक लेखपाल के तबादले लिए याचना करने लगे तो स्थिति की गम्भीरता का अंदाज़ा भली भांति लगाया जा सकता है। जनशिकायत पर जब जनप्रतिनिधि एक लेखपाल का ट्रांसफर कराने में हतास हो जाये तो जनप्रतिनिधियों की शक्तिहीनता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अब नौकरशाही सीधे वन शो मैन के प्रति जवाबदेह होती जा रही है। ऐसे विपरीत हालात में जनता के बीच मंत्रियों एवं जनप्रतिनिधियों की ग्रिप ढीली होती जा रही है। दिल्ली और लखनऊ में बैठी शक्ति सोनभद्र के जनता की हर समस्याओं से एक साथ रु ब रु नहीं हो सकती। इसके लिए उसे स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासनिक हैंड्स की आवश्यकता पड़ेगी। वह महाभारत के संजय की तरह करामाती शक्तियों का स्वामी नहीं हो सकता। फिर ऐसे हालात में आमजनमानस की समस्याओं का समाधान करने हेतु जनप्रतिनिधियों की शक्ति को नगण्य क्यों किया जा रहा है। ऐसे हालात लोकतांत्रिक मूल्यों का व्हास कर रहे हैं। आदर्श भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में स्थानीय जनप्रतिनिधियों को हाशिये पर टांग कर उनकी कार्यशक्ति को कुंद करना एक आत्मघाती क़दम है।
ऐसी उतपन्न हास्यपद स्थिति के बीच जनता के बीच जाने से कतराने लगे हैं जनप्रतिनिधि। सर्वोच्च शक्ति का केंद्र बनने वालों की अंधाधुंध महत्वाकांक्षा ने जनप्रतिनिधियों के पांव के नीचे से ज़मीन खींच ली है। अपने इलाक़े में अब जनप्रतिनिधि जनता से मुंह छिपाते फिर रहे हैं। यही कारण है कि चुनाव में मंत्री तक को पराजय का दंश झेलना पड़ रहा है। जनता अब बहुत कुछ समझने लगी है कि जनप्रतिनिधियों के बस में अब कुछ नहीं रह गया है। बहरहाल एक लेखपाल का तबादला कराने का उच्च सदन के सदस्य की याचना जनचौपाल पर ब्रेकिंग न्यूज़ बन रही है। जनता की समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधि अगर उचित कार्य प्रशासन से न करा सकें तो समझ सकते हैं कि उनकी स्थिति जनता के बीच किस तरह की होगी। बात हमाम में नंगे होने की नहीं है। बात जनता की नज़रों में गिरने की है। पॉवर पॉलिटिक्स में वन शो मैन बनने की चाहत देश और समाज को किस डगर पर ले जाएगी कहना बेहद मुश्किल है। इतिहास गवाह है कि अति महत्वाकांक्षा सर्व प्रथम लोकतांत्रिक किले को ध्वस्त कर उसके मकबरे पर तानाशाही का साम्राज्य स्थापित करता है। आज शायद देश में पॉवर पॉलिटिक्स का खेल खेला जा रहा है। जिसमें एक अपने को सिकन्दर समझ रहा है। और बाकी को प्यादा समझने की हिमाक़त कर रहा है। अंत में एक शेर बस बात ख़त्म, एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिस्तां करने को। हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा।