मूक-बधिर बच्चों के लिए कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी बनी वरदान
आँखों में आ गए खुशी के आंसु, जब मनन ने माँ को पहली बार “मिमी” कहकर बुलाया
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• 11 मूक-बधिर बच्चों में सर्जरी से सुनने व बोलने की क्षमता आई
• पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी यूनिट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित केसरी ने दी जानकारी
• जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी नंद किशोर याज्ञिक ने बताया कैसे लें लाभ
प्रयागराज, 27 दिसंबर 2022 : मनन, उत्तम, अशुतोष, एलिजा, कार्तिक व अराध्या तो सिर्फ बानगी भर हैं। जन्मजात मूक-बधिर बच्चों के लिए कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी वरदान साबित हो रही है। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की शल्य चिकित्सा योजना के अनुदान से हुई कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी ने कई श्रवण दिव्यांग मासूमों के जीवन में रंग भरे हैं।
जनपद के जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की ओर से संचालित प्री प्राथमिक विद्यालय 'बचपन डे केयर सेंटर' के छात्र उत्तम, आशुतोष, मनन, कार्तिक, एलिजा, आराध्या, अंशुल, सौम्या, अर्पिता, एंजल चौरसिया व देवांश अब सुन और बोल सकते हैं। विद्यालय के केंद्र समन्वयक चंद्रभान द्विवेदी बताते हैं कि “इन बच्चों की विभिन्न सत्रों सर्जरी हुई है। । अभी तक सेंटर के कुल 11 बच्चों की सर्जरी हुई है। सर्जरी पूरी होने के बाद बच्चे को स्पीच थेरेपी के जरिए प्रशिक्षित किया जाता है। तीन अन्य बच्चों के कागजात तैयार कर पीजीआई भेजा गया है। डेट मिलते ही उनकी भी सर्जरी होगी।“
नवजात मनन को जब उसकी मां या दादी बुलाती थीं तो वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था। पूरा परिवार आशंकित रहता था। डेढ़ वर्ष बाद चिकित्सक ने बताया कि मनन कभी सुन और बोल नहीं सकेगा। यह सुनते ही उसके परिजन के पैरों तले जमीं खिसक गई। पूरा परिवार चिंतित रहने लगा। इस चिंता का निदान चार वर्ष बाद मिला जब मनन का दाखिला बचपन डे केयर सेंटर में हुआ। इस बीच सेंटर के केंद्र समन्वयक चंद्रभान द्विवेदी ने परिवार वालों को कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के बारे में बताया।
मनन के पिता कहते हैं कि “मैं विद्यालय के केंद्र समन्वयक चंद्रभान द्विवेदी का आभार व्यक्त करता हूं की उन्होंने मनन की कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के बारे में हमसे चर्चा की और हम राजी हो गए। सर्जरी होने के एक माह बाद मनन हमारी आवाज सुनने लगा। दूसरे माह आँखों में आ गए खुशी के आंसु जब उसने अपनी माँ को पहली बार “मिमी” कहकर बुलाया। इस खुशी को हम सब शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकते हैं।“
बच्चों की सर्जरी करने वाले पीजीआई के न्यूरो ऑटोलॉजी यूनिट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अमित केसरी बताते हैं की “समय पूर्व जन्मे व एनआईसीयू व संक्रमण की जद में आने वाले नवजातों में सुनने की समस्या होने की आशंका अधिक होती है। ऐसे बच्चों की सुनने की क्षमता का जितनी जल्दी परीक्षण होगा, उतनी जल्दी ही इलाज संभव है। एक हजार बच्चों में से छह बच्चे को सुनने की समस्या होती है। इसमें तीन या चार बच्चे इलाज से ठीक हो जाते हैं। वहीं एक हजार बच्चों में से एक बच्चे को ही कॉक्लियर इम्प्लांट की जरूरत होती है। कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी एक सफल उपचार है, जिससे सुनने की क्षमता विकसित हो जाती है। ध्यान देने वाली बात है कि यह पांच वर्ष तक के बच्चों में ही सफल होती है। इसलिए बच्चे की आयु पांच वर्ष होने से पहले ही उपचार करवाना आवश्यक है।“
जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिकारी नंद किशोर याज्ञिक के अनुसार “कॉकलियर इम्प्लांट का खर्च आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार वहन नहीं कर पाते हैं। इसके लिए राज्य सरकार के दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग की शल्य चिकित्सा अनुदान योजना के तहत 6 लाख रूपए की अनुदान राशि से सर्जरी संभव है। विभाग ऐसे बच्चों के स्वास्थ एवं विकास के लिए विभिन्न प्रकार की अनुदान राशि प्रदान कर दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु कार्य कर रही है। यदि किसी बच्चे को सुनने व बोलने की समस्या हो और उनकी आयु पांच वर्ष से ज्यादा नही है तो उसके अभिभावक विभाग से संपर्क कर सकते हैं, विभाग उनकी पूरी सहायता करेगा।“