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फलों एवं सब्जियों को छिड़काव कर कीटों से बचायें
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आधुनिक समाचार सेवा
       डाॅ०रणजीत सिंह
प्रतापगढ़। जिला उद्यान अधिकारी डा0 सीमा सिंह राणा ने बताया है कि आलू, आम एवं शाकभाजी फसलों की गुणवत्तायुक्त उत्पादन हेतु सम-सामयिक महत्व के रोगों/व्याधियों को समय से नियंत्रण किया जाना नितान्त आवश्यक है।
                            वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बूंँदा-बांँदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। पिछते झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियॉ सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती है जो तीव्रगति से फैलती है।आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिये जिंक मैंगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 किग्रा0 अथवा मैकोजेब 2 से 2.5 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाय तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिये दूसरे छिड़काव में फफूॅदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसे डायमेथोएट 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिये।जिन खेतों में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफूॅद नाशक मेटालेक्जिल युक्त रसायन 2.5 किग्रा अथवा साईमोक्जेनिल फफूॅदनाशक युक्त रसायन 3.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।उन्होंने बताया कि आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने हेतु गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाया जाना अत्यन्त आवश्यक है। 
                 इस कीट से आम की फसल को काफी क्षति पहुँचती हैं इसके शिशु कीट को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिये माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 सेमी की ऊँचाई पर 400 गेज की पालीथीन शीट की 25 सेमी0 चौड़ी पट्टी को तने के चारो ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांँधकर पॉलीथीन शीट के ऊपरी व निचली हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिये। कीट के नियंत्रण हेतु जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर परी दो बार क्लोरीपाइरीफॉस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ से हिसाब से तने के चारो ओर बुरकाव करना चाहिये। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते है तो ऐसी स्थिति में कारबोसल्फान अथवा डायमेथोएट 2.0 मिली0 दवा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
                  इसी प्रकार सब्जियाँ यथा मिर्च, टमाटर, मटर आदि फसलों पर भी कम तापमान एवं कोहरा, पाला एवं बूंदा-बांदी से भारी नुकसान पहुॅचता हैं।ऐसी स्थिति में किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि फसल को पाले से बचाये तथा आवश्यकतानुसार फसलों में नमीं बनाये रखने हेतु समय-समय पर सिंचाई की जाये। पौधशाला के छोटे पौधों को पाले, कोहरे से बचाये जाने हेतु उद्यानों को पालीथीन अथवा टाट से ढंकना चाहिये।