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इंटीग्रेटेड कोर्स : विशेषज्ञता के साथ रहें आगे, जानें क्‍यों बढ़ रही इस कोर्स की लोकप्रियता


 धीरेंद्र पाठक। देश-दुनिया में इन दिनों हर जगह इंटीग्रेटेड कोर्सेज पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इससे इस तरह के कोर्सों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। आज आप इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, साइंस या ला से लेकर कामर्स, आर्ट्स, एजुकेशन जैसे किसी भी संकाय में इस तरह के कोर्स कर सकते हैं। 12वीं के बाद यह कोर्स किया जाता है। इसे करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको एक साथ ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों ही डिग्री मिल जाती है और योग्यता बढ़ जाने से आपके लिए करियर के बेहतर विकल्प भी बढ़ जाते हैं। दरअसल, इंटीग्रेटेड कोर्स में दो कोर्स शामिल होते हैं। यदि कोई छात्र इस तरह के कोर्स में प्रवेश लेता है तो उसे इसमें पहले अंडरग्रेजुएट का कोर्स पूरा करना होगा और फिर मास्टर कोर्स में सीधे प्रवेश मिल जायेगा। कोर्स का दूसरा बड़ा लाभ यह है कि इससे आपको एक वर्ष की बचत होती है यानी दोनों ही डिग्री आपको पांच साल में ही मिल जाती है। वहीं, जानकारों की मानें, तो यह कोर्स करने से छात्रों को अपने विषय में काफी गहरी जानकारी भी हो जाती है और वे बेहतरीन प्रोफेशनल बनकर सामने आते हैं।
अलग-अलग एंट्रेंस से मुक्ति : इसका एक लाभ यह भी है कि ग्रेजुएशन और पोस्‍ट ग्रेजुएशन करने के आपको अलग-अलग प्रवेश परीक्षाएं नहीं देनी पड़ती हैं। जैसे-यदि कोई छात्र इंटीग्रेटेड मास्टर कोर्स में प्रवेश लेता है तो उसे प्रवेश सिर्फ 12वीं करने के बाद मिल जायेगा और वह ग्रेजुएशन और मास्टर की डिग्री हासिल करने के बाद ही संस्थान से निकलेगा। इसी तरह यदि कोई छात्र इंटीग्रेटेड एमबीए कोर्स करता है तो वह पहले बीबीए की पढ़ाई करेगा और फिर एमबीए की पढ़ाई करेगा। ऐसे में उसे मास्‍टर या एमबीए करने के लिए न तो अलग से किसी टेस्ट की तैयारी करनी होगी और न ही कोई टेस्ट देना होगा।
पढ़ाई में एक वर्ष की बचत: अभी देश के विभिन्न आइआइटी समेत कई निजी संस्‍थानों में इंटीग्रेटेड एमटेक कोर्सेज संचालित हो रहे हैं, जिसे करने पर सीधे-सीधे एक साल की बचत हो जाती है। ऐसा इसलिए कि अगर आप अलग-अलग बीटेक और एमटेक करते हैं, तो छह वर्ष पढ़ाई करनी होती है। इसमें चार साल बीटेक और दो वर्ष एमटेक करने में आपके लगेंगे। लेकिन यदि इंटीग्रेटेड कोर्स में प्रवेश लेते हैं तो दोनों ही डिग्री सिर्फ पांच वर्ष में मिल जायेगी। इसी तरह इंडियन इंस्‍टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, बेंगलुरु में भी ड्युअल बीएस-एमएस जैसे प्रोग्राम कराये जा रहे हैं, जहां गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान की पढ़ाई कराई जाती है। ला की पढ़ाई कराने के लिए इसीतरह देश की नेशनल ला यूनिवर्सिटीज में भी 12वीं के बाद पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड एलएलबी कोर्स कराया जा रहा है। इस कोर्स में प्रवेश हर साल आयोजित होने वाले कामन ला एडमिशन टेस्‍ट (क्‍लैट) के आधार पर दिये जाते हैं।
पीएचडी में भी हैं कोर्स: अब कई संस्‍थान इंटीग्रेटेड पीएचडी का कोर्स भी संचालित करने लगे हैं। इस कोर्स में बैचलर डिग्री के बाद प्रवेश मिलता है। छात्र पहले मास्टर कोर्स करते हैं और फिर पीएचडी में सीधे प्रवेश लेते हैं। ऐसे में उन्हें पीएचडी के कोर्स में प्रवेश लेने के लिए अलग से कोई प्रवेश परीक्षा नहीं देनी होती है और न ही नेट/जेआरएफ उत्‍तीर्ण करना अनिवार्य होता है। इसमें एक डिग्री पूरी करने के बाद दूसरी डिग्री बीच में ही छोड़ने का भी विकल्‍प होता है।
करियर के लिए फायदेमंद : परंपरागत डिग्री कोर्सेज की तुलना में देखा जाए, तो बेहतर करियर के लिए भी इंटीग्रेटेड कोर्स काफी फायदेमंद होते हैं। इंटीग्रेटेड कोर्स करने के बाद छात्रों को संबंधित इंडस्ट्री में नौकरी पाने के बेहतर विकल्प होते हैं या फिर तुरंत किसी कालेज/यूनिवर्सिटी के साथ अध्ययन-अध्यापन में भी जुड़ सकते हैं। अभी तक होता यह था कि लोग ग्रेजुएशन करने के बाद नौकरी करने लगते थे और फिर जब कुछ वर्षों के बाद उन्‍हें मास्टर या पीएचडी डिग्री करने की इच्छा होती थी तो उन्हें दाखिले के लिए कई दिक्‍कतों से गुजरना पड़ता था। इसका एक कारण यह था कि उनकी पढ़ाई छूट चुकी होती थी और इंडस्ट्री में काम करने के कारण वे पढ़ाई-लिखाई से काफी दूर हो जाते थे। ऐसे में जब फिर से वे आगे की पढ़ाई करने का मन बनाते थे, तो तैयारी करने के लिए उन्हें दोबारा एकाग्रता बनाए रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती थी। लेकिन इंटीग्रेटेड कोर्स से यह दिक्‍कत काफी हद तक दूर हो चुकी है। क्‍योंकि यदि कोई छात्र इंटीग्रेटेड कोर्स करता है तो तकरीबन सभी संस्‍थान/इंडस्‍ट्री उन्‍हें प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि एक ओर जहां उन्हें फील्ड का अनुभव होता है, वहीं पर्याप्त डिग्री भी।
इंटीग्रेटेड कोर्स के कई लाभ होते हैं। सबसे बड़ा लाभ तो यही है कि शैक्षिक योग्यता अधिक होने से नौकरी के कहीं अधिक अच्छे अवसर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। जो संस्थान अपने कोर्स को स्वायत्तता के साथ इंडस्ट्री की बदलती अपेक्षाओं और तकनीक के अनुसार अपडेट करते रहते हैं, वहां से कोर्स करने वाले युवाओं को हायर करने में इंडस्ट्री भी प्राथमिकता देती है।