अधिकतर राज्यों में बेअसर साबित हो सकती है विपक्षी एकता, बिहार में एकजुटता की संभावना
बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू नेता नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव-2024 के लिए फिर विपक्षी एकता की बात करते हुए संकेत दिया है कि वह भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम पर फिर निकल सकते हैं। एकजुटता की संकल्पना विपक्ष को हौसला भले ही दे, लेकिन वोटों-सीटों का गणित इतनी आसानी से भाजपा को उलझाता नहीं दिखता। यदि सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले शीर्ष दस राज्यों को ही देख लें तो इक्के दुक्के राज्यों के अलावा इसका आधार नहीं दिखता।
बिहार में जरूर विपक्षी एकजुटता की संभावना है लेकिन सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में यह दो बार फेल हो चुका है। ओडिशा में सत्ताधारी दल किसी भी पक्ष में जाने को तैयार नहीं है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस किसी तीसरे दल के लिए स्थान देखती ही नहीं है, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और द्रमुक के एक साथ आना संभव नहीं है। मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान जैसे राज्यों में प्रतिद्वंद्विता भाजपा और कांग्रेस के बीच है जहां किसी भी तीसरे दल का प्रासंगिकता नहीं है।
सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के समीकरणों को समझें तो यहां भाजपा से सिर्फ समाजवादी पार्टी ही लड़ने की स्थिति में नजर आती है। वैसे तो सपा के सिर्फ तीन सदस्य लोकसभा में हैं, लेकिन विपक्षी एकजुटता के पैमाने पर बात करें तो कांग्रेस वहां सिर्फ एक सीट पर सिमट चुकी है। यदि जनाधार वाली बसपा (दस सीट) और सपा के भरोसे विपक्षी एकजुटता को परखें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की कास्ट कैमिस्ट्री इस गठबंधन को बेमेल साबित कर चुकी है। भाजपा को 49.98 तो बसपा-सपा को क्रमश: 19.43 और 18.11 प्रतिशत वोट ही मिला था।
इसी तरह 29 सीटों वाले मध्यप्रदेश में सिर्फ एक लोकसभा सीट के साथ कांग्रेस एकमात्र प्रभावी विपक्षी दल है और 26 सीटों वाले गुजरात में कांग्रेस शून्य पर है। ओडिशा में भी बीजू जनता दल के रुख को देखते हुए त्रिकोणीय लड़ाई ही रहेगी। बिहार में पिछले कुछ उपचुनावों में जो नतीजा रहा वह गठबंधन को ही निराश करता है। ध्यान देने की बात यह भी है कि 2019 में राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बन गई थी लेकिन उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी 25 सीट जीतने में सफल रही थी।दिल्ली में बंपर बहुमत से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी लेकिन लोकसभा में सभी सात सीटें भाजपा के खाते में आई थी। सच्चाई यह है कि फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के बीच ही यह लड़ाई चल रही है कि मुख्य विपक्षी दल है कौन। संख्या बल के आधार पर जरूर कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है लेकिन विमर्श के तौर पर तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अब बीआरएस इस दौड़ में शामिल है। बीजद के अलावा आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस किसी पक्ष में रहने को तैयार नहीं है और क्षेत्रीय दलों में नीतीश जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर ऐसा कोई चेहरा नहीं जो दूसरे राज्य में विपक्षी दलों के लिए कोई भूमिका निभा सके।