पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने कुछ मुश्किलें खुद बाइडन ने खड़ी कीं। मसलन, अफगानिस्तान से फौज वापसी के मामले में वे दूरदर्शिता दिखा सकते थे। लेकिन उनकी बेसब्री के कारण दुनियाभर में ये धारणा बनी कि अमेरिका पराजित हो गया है। इसे लेकर रिपब्लिकन पार्टी ने देश के अंदर मौजूदा प्रशासन पर हमले तेज कर दिए...
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सामने ऐसी कठिन समस्याएं खड़ी हो गई हैं, जिनका समाधान करने की ताकत उनके पास नहीं है। ये बात अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित एक विश्लेषण में कही है। इस विश्लेषण में कहा गया है कि ऐसी भी कई समस्याएं हैं, जिन्हें खुद राष्ट्रपति चुना है।
दूसरी मीडिया रिपोर्टों में भी बताया गया है कि प्राकृतिक गैस की बढ़ती कीमत, मुद्रास्फीति की ऊंची दर, और सप्लाई चेन से जुड़ी समस्याओं ने अमेरिका की घरेलू मुश्किलें बढ़ा दी हैं। राष्ट्रपति की दिक्कतें कोरोना महामारी के कारण भी बढ़ी हैं। बाइडन ने कोरोना महामारी पर काबू पाने के वादे के साथ पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव जीता था। उनके कार्यकाल के शुरुआती दिनों में इसमें कामयाबी भी मिली। लेकिन उसके बाद हालात फिर बिगड़ गए। इसे संभालने के लिए बाइडन प्रशासन ने मास्क पहनना और वैक्सीन लगवाना अनिवार्य किया, तो उससे नया विवाद भड़क उठा। रूढ़िवादी तबके लगातार इन फैसलों का विरोध कर रहे हैं।
बाइडन प्रशासन ने स्वीकार किया है कि देश कठिन परिस्थिति में है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने बीते शुक्रवार को कहा था- ‘यह सचमुच हमारे देश के लिए मुश्किल भरा वक्त है।’ विश्लेषकों ने कहा है कि घरेलू मोर्चे पर राष्ट्रपति के हाथ बंधे हुए हैं। वैक्सीन और मास्क की अनिवार्यता के मामले राष्ट्रपति बाइडन की भावुक अपीलों का भी कंजरवेटिव समूहों पर कोई असर नहीं हुआ है। इससे परेशान राष्ट्रपति ने पिछले हफ्ते कहा था- ‘हमारा धीरज जवाब दे रहा है। (टीका लगवाने या मास्क पहनने से) आपका इनकार सभी अमेरिकियों को महंगा पड़ रहा है।’
उधर राजनीतिक मोर्चे पर राष्ट्रपति खुद अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी में अपने 3.5 ट्रिलियन डॉलर के सॉफ्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज पर सहमति बनाने में नाकाम रहे हैं। इस मुद्दे पर डेमोक्रेटिक पार्टी की छवि अंदरूनी झगड़ों से ग्रस्त पार्टी की बनी है। अब ये आम धारणा बन गई है कि इस मामले में बाइडन को अपनी महत्त्वाकांक्षा से समझौता करना पड़ेगा।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने कुछ मुश्किलें खुद बाइडन ने खड़ी कीं। मसलन, अफगानिस्तान से फौज वापसी के मामले में वे दूरदर्शिता दिखा सकते थे। लेकिन उनकी बेसब्री के कारण दुनियाभर में ये धारणा बनी कि अमेरिका पराजित हो गया है। इसे लेकर रिपब्लिकन पार्टी ने देश के अंदर मौजूदा प्रशासन पर हमले तेज कर दिए। इसी तरह आव्रजकों के मामले में बाइडन प्रशासन का रुख भ्रामक रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये तमाम बातें पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हक में गई हैं। संभवततया इसे समझते हुए ही उन्होंने अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी है। इससे मीडिया में ये चर्चा जोर पकड़ गई है कि ट्रंप 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में फिर खड़ा होंगे और उसका अभियान उन्होंने अभी से छेड़ दिया है।
बीते सप्ताहांत आयोवा राज्य में एक रैली में ट्रंप ने कहा- ‘आज हमारी सड़कों पर हिंसक अपराधी गिरोह खुलेआम घूम रहे हैं। गैर-कानूनी विदेशी और खतरनाक ड्रग गिरोह हमारी सीमाओं पर जम गए हैं, महंगाई बढ़ रही है, चीन हमारी नौकरियां छीन रहा है, तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है, पागल वामपंथियों ने हमारे स्कूलों पर कब्जा कर लिया है, और रैडिकल सोशलिस्टों ने हमारे देश को अपने हाथ में ले लिया है।’ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि ट्रंप के ऐसे दावों के लिए जनसमर्थन बढ़ने लगा है, जो डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए खतरे की घंटी है।