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ट्रामा मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए उत्तर प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में विश्व स्वास्थ्य संगठन और एम्स दिल्ली का ट्रामा मॉडल लागू किया जाएगा। इसके लिए एम्स में सोमवार से विशेषज्ञों की ट्रेनिंग शुरू की जा रही है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की टीम रविवार को वहां के लिए रवाना हो गई। अभी तक शासन ने जीएसवीएम के साथ दो और मेडिकल कॉलेजों में अलग से हाईटेक ट्रामा सेंटर बनाने का फैसला किया है। इसे राज्य सरकार ने मंजूरी भी दे दी है। अब केंद्र सरकार को सिर्फ मुहर लगानी है। हालांकि तीनों के प्रस्ताव केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की हरी झंडी के बाद बनाए गए थे। सोमवार को विश्व ट्रामा दिवस है। 

यूपी में ट्रामा केस में लगातार इजाफा हो रहा है। दस सालों में यह संख्या दोगुनी हो गई है। हैलट इमरजेंसी में रोज कानपुर समेत 18 जिलों से 50-60 ट्रामा केस रिपोर्ट हो रहे हैं। ट्रामा इंजरी के चलते घायलों को औसतन एक-दो की मौत भी हो रही है। इसी को ध्यान में रखकर डब्ल्यूएचओ और एम्स ने ऐसे मरीजों के प्रबंधन, इलाज और रेस्क्यू का नया मॉडल बनाया है। यह देश में हो रही ट्रामा इंजरी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसी कड़ी में मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों को एम्स में ट्रेनिंग दी जा रही है। जीएसवीएम से प्रमुख अधीक्षक प्रो. आरके मौर्या, ट्रामा हेड डॉ.आरके सिंह और मैट्रन दिल्ली गई हैं। एक हफ्ते की ट्रेनिंग हर कॉलेज के सर्जरी के डॉक्टरों को दी जा रही है। इसकी पूरी फंडिंग भी डब्ल्यूएचओ कर रहा है। 

इन मेडिकल कॉलेजों में लागू होगा मॉडल 
केजीएमयू, एसजीपीजीआई,आरएमएल, गोरखपुर, कानपुर, प्रयागराज, झांसी, आगरा, मेरठ, आजमगढ़, अम्बेडकर नगर, बांदा, जालौन, कन्नौज, बदायूं और सहारनपुर मेडिकल कॉलेज। 
 
इस मॉडल की ट्रेनिंग के बाद सभी मेडिकल कॉलेजों में ट्रामा मरीजों को त्वरित इलाज का ब्लूप्रिंट लागू होगा ताकि ट्रामा मरीजों की जिंदगी बचाई जा सके। 
- प्रो. आरके मौर्या, प्रमुख अधीक्षक हैलट एंड एसोसिएट हॉस्पिटल
 
तुरंत नहीं मिलती एम्बुलेंस, लापरवाही बन आती है जान पर

ट्रामा घायलों को हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस सेवाओं की पोल खुल गई है। हादसों के बाद तुरंत एम्बुलेंस नहीं मिलती हैं। ऐसे में तीन फीसदी घायलों की मौत हो जाती है। इसका खुलासा जीएसवीएम की कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के शोध में किया गया है। इसमें हैलट अस्पताल में दो साल में भर्ती किए गए 950 मरीजों को मौके से लाने और फिर उनके इलाज के प्रबंधन का आकलन किया गया। कानपुर रीजन में एक्सीडेंट में एम्बुलेंस सेवा सिर्फ 62.53 घायलों को हैलट के ट्रामा सेंटर पर पहुंचा सकीं। देरी के चलते 37.05 फीसदी मरीजों को अपने वाहनों से हैलट के ट्रामा सेंटर पहुंचना पड़ा।

शोध का यह भी रिजल्ट रहा 

-हैलट में 58.63 फीसदी ट्रामा मरीजों का तत्काल परीक्षण किया गया
-64.63 फीसदी ट्रामा घायलों को कई गंभीर चोटें डायग्नोस की गईं
- 62 फीसदी मरीजों को ही लोकल में प्राथमिक इलाज के बाद हैलट इमरजेंसी भेजा गया
- माना जा रहा है कि 2030 में रोड ट्रै्फिक एक्सीडेंट पांचवा बड़ा कारण मौत का होगा