महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की को 'ढाल और दो तलवार मिली', उद्धव ठाकरे के खाते में 'मशाल' आई। इसके साथ ही दोनों गुटों के बीच जारी पहचान की जंग पर विराम लग गया है। इसके अलावा दोनों गुटों को नया नाम भी मिला है। एक ओर जहां उद्धव की पार्टी 'शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)' हुई। वहीं, शिंदे की पार्टी 'बालासाहेबांची शिवसेना' के नाम से जानी जाएगी। खास बात है कि दोनों गुटों को मिले चिह्न भी खास हैं। दरअसल, इतिहास बताता है कि दोनों चिह्न शिवसेना की राजनीतिक यात्रा में शामिल रहे हैं।
एक ढाल, दो तलवार
बात साल 1968 की है, तब शिवसेना करीब 2 साल की ही थी और बृह्नमुंबई महानगरपालिका चुनाव में दांव आजमाने की तैयारी कर रही थी। तब पार्टी ने ढाल और दो तलवार के चिह्न पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, पार्टी का नाम जन्म यानी जून 1966 में ही तय हो गया था। इसका श्रेय पार्टी संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के पिता और समाज सुधारकर प्रबोधंकर केशव सीताराम ठाकरे को जाता है
मशाल
1990 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में छगन भुजवल के रूप में शिवसेना का एक ही विधायक चुना गया था। उस दौरान उन्होंने मझगांव क्षेत्र से मशाल के चिह्न पर ही चुनावी जीत हासिल की थी। इसे पहले साल 1984-85 लोकसभा चुनाव के दौरान शिवसेना ने भाजपा के कमल चिह्न पर चुनाव लड़ा था। हालांकि, चुनाव के बाद शिवसेना और भाजपा के रिश्तों में खटास आ गई थी और बाल ठाकरे ने भाजपा पर निशाना साधना शुरू कर दिया था। शिवसेना संस्थापक ने मशाल और कमल को लेकर बनाए एक कार्टून में भी भाजपा पर तंज कसा था।
पहले भी अलग-अलग चुनाव चिह्न देख चुकी है पार्टी
साल 1966 से अस्तित्व में आई शिवसेना ने जब 1968 में मुंबई नगर निगम का चुनाव लड़ा, तो पार्टी का चिह्न ढाल और तलवार था। वहीं, 1980 के समय में पार्टी का रेल इंजन चिह्न चर्चा में रहा। साल 1978 का चुनाव पार्टी ने रेल इंजन के निशान पर ही लड़ा था। खबर है कि साल 1985 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार टॉर्च, बैट-बॉल जैसे चिह्न लेकर मैदान में उतरे थे।