सोनभद्र। धर्म और सनातन संस्कृत में नाग पंचमी पर्व का अत्यंत धार्मिक महत्व है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि पर पड़ने वाला नाग पंचमी का यह पर्व हमारी संस्कृति और परंपरा को सास्वत बनाता है। इस दिन अखाड़ों में कुश्ती लड़ने, लम्बी कूद के अखाड़े कूदने, सन्ने से गुड़िया पीटने,पटना को लम्फाने व झूलने , झूला झूलने , कजरी गाने और सुनने, गुड़ व सोंठ के गोझे खाने की पारंपरिक रीति रिवाज हम सनातन संस्कृत के उपासक सार्थकता प्रदान करते हैं। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों को गुड़िया के पावन पर्व की ये यादें आज मस्तिष्क पटल पर सहज ही चित्रित हो उठती हैं। इस त्यौहार पर पहलवान दंगल में लड़कर ईनाम जीतने के लिए लालायित रहते हैं, तो लड़कियां गुड़िया पीटने और सावन के गीत गाने के लिए उत्सुक रहती हैं । यह बात है मंगलवार को नाग पंचमी पर्व की महकता पर प्रकाश डालते हुए श्री सिद्धेश्वर महादेव सेवा संस्थान महुआंव पाण्डेय, घोरावल के संस्थापक राम अनुज धर द्विवेदी ने कहीं । उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित परम्परानुसार लोग
सुबह उठकर गाय व बैलों को सींग में कंधे पर हल्दी युक्त सरसों का तेल लगाकर खरी नमक खिलाकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। साथ ही गाय के गोबर से पूरे घर को गोंठा जाता है और घर की साफ सफाई पुताई आदि भी गृहणियों द्वारा किया जाता है। तदुपरांत स्नान करने के बाद कुछ लोगों द्वारा नाग देवता को लावा दूध चढ़ाया जाता है। साथ ही गो शाला में हूम कर नाग देवता की आराधना की जाती है। इस दिन लोगों द्वारा अपने घरों में व शिवालयों में भगवान शिव का दर्शन पूजन अभिषेक आदि कार्यक्रम भी किया जाता है। इसके बाद आज घर में अच्छे पकवान जैसे कड़ी,बरी,इड़हल,रसाज, आदि अनेकों प्रकार के व्यंजन अपने सुविधानुसार गृहणियां बनाती है। इस दिन सभी वर्ग के लोग कुरी डाकने, कुश्ती लड़ने, पूजा पाठ, ख़ान पान पर्यटन आदि में अपनी रूचिनुसार कार्यक्रम करते हैं। इस पर्व को लोग बड़े ही उत्साह से मनाते हैं।