नोएडा जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने समस्त कृषकों का आह्वान करते हुए जानकारी दी है कि खरीफ में धान की मुख्य फसल है जिसमें कीट/रोग के प्रकोप से खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए धान की फसल के कीट/रोग के प्रकोप एवं खरपतवार के रोकथाम के लिए तत्काल उपाय अपनाये जाये। किसान द्वारा धान की फसल की प्रतिदिन निगरानी करते रहें। कीट/रोग की पहचान व उपचार के लिए देखें बिंदुवार विस्तृत रिपोर्ट-
1. दीमक एवं जड़ की सूंडी : पहचान-जड़ की सूंडी के गिडार उबले हुए चावल के समान सफेद रंग की होती है जो जड़ के बीच के भाग को खाकर नष्ट कर देती है, जिसमें पौधे पीले पडकर सूख जाते हैं। दीमक एक सामाजिक कीट है, इसमें 90 प्रति0 श्रमिक तथा 2-3 प्रति0 राजा रानी व सैनिक पीलापन लिये सफेद रंग के होते हैं। यही धान की फसल की जड़ों को खाकर हानि पहुंचाते हैं।
प्रचार-इन दोनों कीट की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफॉस 20 प्रति0 ई0सी0 की 2.50 ली0 मात्रा प्रति हे0 के हिसाब से सिचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
2. पत्ती लपेटक, तना, बेधक, बन्का एवं हिस्पा कीट: पहचान-पत्ती लपेटक कीट की सूडिंया पत्तीयों को लम्बाई में मोड़कर अन्दर से हरे भाग को खाती है। तना बेधक कीट की मादा पत्तियों पर समूह में अण्डे देती है। अण्डों से सुडिंया निकलकर मुख्य प्ररोह को हानि पहुँचाती है, जिससे बालिया आने पर वे सूखकर सफेद दिखाई पडती है। हिस्पा कीट के गिंडार पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाते है, जिससे पत्तियों पर फफोले जैसी आकृति बन जाती है तथा प्रौढ कीट पत्तियों के हरे भाग को खाते है।
उपचार- कार्बोफ्यूरान 3.0 जी0 दानेदार 20.0 किग्रा अथवा कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4.0 जी0 दानेदार 18-20 किग्रा मात्रा 3.5 सेमी0 स्थिर पानी में भुरकाव करें अथवा क्यूनालफास 25 प्रति0 ई0सी0 की 1.5 ली0 मात्रा को 500-600 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करें।
3. खैरा रोग: पहचान- यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है, जिसमें पत्तियां पीली पड़ जाती है, जिस पर बाद में कत्थई रंग के ध बन जाते हैं।
उपचार- इसके उपचार के लिए जिंक सल्फेट 21 प्रति0 किग्रा0 यूरिया के साथ 1000 ली0 पानी में घोलकर प्रति0 हे0 की दर छिड़काव करें।
4. शीथ ब्लाईट: पहचान-इस रोग का प्रकोप अधिक वर्षा एवं जल मग्नता की स्थिति में अधिक होता है। प्रकोप की दशा में शीथ पर धब्बे बनते हैं, जिसका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का होता है।
उपचार-कार्बेन्डाजिम 5 प्रति0 डब्लू0पी0 500 ग्राम अथवा प्रोपिकोनाजाॅल 25 प्रति0 500 मिली0 मात्रा को 500-700 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
5. जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारी झुलसा: पहचान-जीवाणु झुलसा रोग में पत्तियां नोक अथवा किनारे से सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। जीवाणुधारी झुलसा में पत्तियों पर नसों के बीच में कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियाँ बन जाती है।
उपचार- स्ट्रप्टोसाइक्लीन की 15 ग्रा0 व कॉपर आक्सीक्लोराइड की 500 ग्रा0 मात्रा को 600 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
6. खरपतवार नियंत्रण: जनपद गौतमबुद्धनगर में धान की रोपाई हुए 20-25 दिन हो चुका है, अगर किसी कृषक के धान के खेत में खरपतवार की समस्या हो तो चौड़ी एवं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिये विषपायरीबैक सोडियम 10 प्रति एस0सी0 0.2 ली0 रोपाई के 15-20 दिन बाद नमी की अवस्था में लगभग 500 ली0 पानी में घोलकर फलैट फैन नोजल से छिड़काव करना चाहिए। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रति0 डब्लू0पी0 की 20 ग्रा0 मात्रा अथवा 2-4 डी0 इथाइल एस्टर 36 प्रति0 ई0सी0 की 2.5 ली0 मात्रा को 500 ली0 पानी में घोलकर फलेट नोजल से छिड़काव करना चाहिए।