परम उत्सव गुरु पूर्णिमा महोत्सव सत्संग साधना शिविर के आज द्वितीय दिन गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर प्रातः भव्य शोभायात्रा प्रयागराज के शहर में निकाली गई जिसमें पूज्य गुरुदेव श्री स्वामी कमलेश्वरानंद जी के एवं ब्रह्मप्रिया मां नम्रता कमलिनी जी के सानिध्य में साहचर्य में एवं गुरु पूर्णिमा शिविर के प्रमुख संयोजक श्री लालू मित्तल जी के नेतृत्व में बड़ी ही भव्य एवं सुंदर शोभायात्रा निकली जिसमें पूरे भारतवर्ष से आए हुए साधक से श्रेष्ठ सृजन एवं प्रयागराज क्षेत्र के वरिष्ठ जन भी शामिल हुए,प्रयागराज प्रशासन का भी बहुत बड़ा सहयोग बहुत ही सुरक्षित एवं सुंदर तरीके से शोभायात्रा को सुचारू रूप से गति प्रदान करने के लिए संस्थान आभार व्यक्त करता है। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में पूज्य श्री गुरुदेव ने बताया कि गुरु अमरता का वह प्रतीक है जिन्हें ईश्वर ने स्वयं माध्यम बनाया इस जगत को ज्ञान रूपी आभूषण से सजाने के लिए प्रारंभ भी गुरु से और अंत भी उसी में इसलिए कहा गया यदि ज्ञान ना हो तो मनुष्य का जीवन कैसा होगा जरा सा विचार कीजिए विविध रूप विद नाम के माध्यम से जनमानस में प्रेरणा का स्रोत पुनर वृत्ति है गुरु उस प्रभु की और बार-बार घटता है मात्र जीवों के कल्याण हेतु स्वयं की उधार की प्रवृत्ति भी सृष्टि के कार्य में सहायक इसलिए जीवन उद्धार के संबंध में अवश्य विचार करें प्रेम से समर्पण से जीवन को संपोषित करें चलो थोड़ा निर्भर हो जाते हैं आप की तो आदत हो गई है दिन-रात बोझ धोने की और हम तो निर्भर होने की कला सिखाते हैं कोई मौके भार से दबा है कोई सम्मान कोई धन के लालच में पड़ा है और दिन रात एक किए पड़ा है कि कैसे सबसे अधिक धनवान मैं ही बन जाऊं आप सब कारण हो ऐसे समाज के निर्माण में चलते तो सामान्य हैं पर उस पर ढंग से चलना और सामान्य है तुम रोटी की सोचो यह सामान्य आवश्यकता है पर तुम ही दुनिया की सारी रोटियां खा लो यह सामान्य सी बात है आज का मनुष्य ऐसा ही है सब पर अपना ही राज दूसरा आए वहां तो तुम जल उठते हो फिर बहाने ढूंढते हो स्वयं को समझाने का मार्ग ढूंढते हो जीवन इसी में बीत रहा है आनंद कहीं दूर हो गया है अब अंधकार ऐसा भारी है तुम्हारा कि तुम अंधकार ही तो इकट्ठा करने में लगे हो क्या बड़ा है तुम्हारी नजर में पाए भी तो कुछ ऐसा पाय भी तुम ऐसा जिसे तुम खो नहीं सकते मरे तो छोड़कर ही जाना पड़ेगा तुम्हारे जीवन का उद्देश्य नश्वरता हो गई है तुम्हारी अपनी छवि समाप्त तुम तो बस घर संसार के लिए जी रहे हो बस वही उद्देश्य है जीवन का एक दिन जब बच्चा उठकर यह कहेगा कि क्या हो तो घबराना नहीं क्योंकि तुम जो कर रहे हो उसका परिणाम वही है तुम उसे भी तुम वही सिखा रहे हो बाहर से पूरे जीवन किस कार्य में आनंद खो जाए शांति हो जाए फिर ऐसे कार्य का अर्थ कहा तुम कहते हो इतना किया तुम्हारे लिए तुम ऐसा कर रहे हो तुम्हारा पिता भी यही सोच रहा है इसके लिए इतना किया ऐसा बोल रहा है पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा आगे बढ़ रही है घबराओ नहीं तुम जो किए हो उसी का परिणाम है कृत्य का ही तो परिणाम मिलता है तुम्हारे मौत पर मुझे लगेगा तुम मरे तो अच्छा हुआ निर्भर हुए तुम जो कि तुम जो कर रहे थे जब तुम छोटे थे तो माशा स्वत लगती थी जब बड़े हुए भाई-बहन विवाह हुआ पत्नी और बच्चे हुए अब वह उद्देश्य बन गए तुम्हारे तुम कहां हो तुम अपने उद्देश्य बन गए तुम्हारे उद्देश्य तो तुम कभी बने ही नहीं जो शाश्वत है वह तुम्हें कभी शासक लगा ही नहीं क्या खेल है कब समझोगे चलो थोड़ा मूक करो शाश्वत की ओर जीवन जब संसार में नहीं तो संबंध कैसे होगा अगर शुरू में ही सरस्वता को समझ लिया जाए तो दुख समाप्त हो जाए पर व्यर्थ में उलझने की आदत जो लगी है तुम्हें तुम अपने पिता को पागल समझते हो तुम्हारा बेटा तुम्हें तुम अपनी मां को ना समझती हो तुम्हारी बेटी तुम्हें रिश्तो के खेल में उलझा इंसान अंधकार इतना भारी है तो मैं कह रही हूं पर इतना जल्दी हो जाएगा कहां सिर्फ 2 दिन में कैसे इसके लिए तुम्हें पूरा समय देना पड़ेगा जीवन को समझना पड़ेगा समझे तो ही जीवन की पूर्णता बढ़ते क्रम में और बदलते रिश्ते सब जीवन पर बोझ चलो थोड़ा विलग होकर जीवन को समझते हैं समझना और शिकार करना तुम कभी किसी के हुए नहीं तो तुम्हारा अपना कौन होगा तुम जिससे शरीर पाए जिससे स्वास्थ पाए धीरे-धीरे भुला दिए फिर बढ़ते क्रम में वही आदत...
जीवन के समय उद्देश्य को समझें जाने और जी और जीएं
पूज्य श्री गुरुदेव ने सभी सदस्यों को परमात्मा ब्रह्म सिद्धि दीक्षा इस गुरु पूर्णिमा पर प्रदान किया जिससे सभी अपने जीवन के उद्देश्य को संपूर्ण कर सकें आनंद में प्रेम में जीवन जी सकें।
कार्यक्रम प्रमुख संयोजक श्री लालू मित्तल जी श्रीमती श्वेता मित्तल जी, श्री युगल किशोर मिश्रा जी आदि उपस्थित रहे।