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आज के आधुनिक वातावरण में व्यक्ति अनेक रोगों के चंगुल में फंसा हुआ है। उसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं, किन्तु सबसे बड़ा कारण यही माना जाता है कि मानव कहीं न कहीं, किसी न किसी रुप में प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन-उपेक्षा कर रहा है। इसी उल्लंघन-उपेक्षा की भावना ने व्यक्ति को अनेक बीमारियों ने धीरे-धीरे अपने शिकंजे में कसना प्रारम्भ कर दिया है।

चिकित्सा के क्षेत्र में अनेक पैथियों का योगदान है, जो मानव के रोगों का निराकरण करने में लगी हैं। सभी पैथियों का अपने-अपने क्षेत्र में महत्त्व है। सभी पैथियों में बीमारियों का उपचार है, कारणों का निवारण नहीं। जब तक कारणों का निवारण नहीं होगा, तब तक बीमारी समाप्त नहीं हो सकती, वह सिर्फ अपना रुप परिवर्तित कर लेती है। परन्तु चिकित्सा के क्षेत्र में एक ऐसा भी विज्ञान है, जो रोगों पर तो नियंत्रण करता ही है, साथ ही साथ मानव मन को शांत करके उसे प्रकृति से भी जोड़ता है, जिस कारण खुद-बखुद रोग पर काबू हो जाता है। उस विज्ञान का नाम है-'योग।'

'योग' में आसन शरीर को, प्राणायम-मन एवं शरीर को तथा ध्यान; मन एवं आत्मा को प्रभावित करता है। आसनों का अभ्यास स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए भी किया जाता है। आसनों के अभ्यास से माँसपेशियों में साधारण खिंचाव, आंतरिक अंगों की मालिश एवं सम्पूर्ण स्नायुओंमें सुव्यवस्था स्थापित होती है। अनेक असाध्य रोगों में लाभ एवं उनका पूर्णरुपेंण निराकरण भी आसनों के अभ्यास के माध्यम से किया जा सकता है।

आसनों के नित्य अभ्यास से शरीर की अन्त: स्त्रावी ग्रन्थि प्रणाली नियंत्रित एवं सुव्यवस्थित होती है, जिससे सभी ग्रंथियों से उचित मात्रा में रस का स्त्राव होने लगता है। इसका लाभ स्वास्थ के साथ-साथ जीवन के प्रति हमारे मानसिक दृष्टिकोण पर भी पड़ता है। यदि कोई भी ग्रंथि कार्य ठीक से नहीं कर पाती है, तो उसका कुप्रभाव शरीर पर स्पष्ट रुप से दिखाई देता है, इसलिए यह नितान्त आवश्यक है कि इस प्रणाली को सुचारु रुप से संचालित रखा जाए ताकि रोग पीिड़त अंगों को पुनर्जीवित कर सामान्य कार्य के योग्य बनाया जाए।
आसनों के अभ्यास से माँसपेशियाँ, हड्डियाँ, स्नायुमंडल, ग्रंथि प्रणाली, श्वसन प्रणाली, उत्सर्जन प्रणाली, रक्त प्रणाली आदि एक-दूसरे से संबंधित होती हैं एवं सहयोग देती हैं। इससे शरीर लोचदार तथा परिवर्तित वातावरण के अनुकूल ढ़ालने योग्य बनता है। यह पाचन क्रिया को तीव्र करता है तथा उचित मात्रा में पाचन-रस तैयार करता है। इस प्रकार आसनों के अभ्यास से शरीर स्वस्थ होकर सक्रिय एवं रचनात्मक कार्य करने को तैयार होता है।
'प्राणायाम' का अर्थ होता है प्राण को विकसित करना। मानव का अस्तित्व इसी प्राण के कारण होता है। इस क्रिया से न सिर्फ प्राणवायु की अधिकतम आपूर्ति ही हमारे अंगों को होती है, बल्कि अंतरंगों का भलीभाँति व्यायाम भी हो जाता है। शारीरिक दृष्टि से प्राणायाम द्वारा शरीर की मांसपेशियाँ और फेफड़ों का संस्कार होता है और कार्बन-डाई ऑक्साइड गैस का भली प्रकार निष्कासन भी हो जाता है।
आहार का परिपाक करने वाले और रस बनाने वाले अंगों पर भी प्राणायाम का अनुकूल असर पड़ता है। अन्न के परिपाक में अमाशय, उसके पृष्ठ भाग में स्थित पैंक्रियाज और यकृत मुख्य कार्य करते हैं। प्राणायाम के समय डायफ्राम और पेट की माँसपेशियाँ बारी-बारी से खूब सिकुड़ती और फैलती है, जिससे पाकोपयोगी अंगों का अच्छी तरह से व्यायाम हो जाता है। इस प्रकार प्राणायाम द्वारा देह के विभिन्न हिस्सों और अवयवों का उपचार स्वत: ही हो जाता है।
 इस लिए योग अवश्य करे ।। आप सभी को योगा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। 

ब्रमहप्रिया नम्रता कमलिनी