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योग मनुष्य आत्माओं के लिए ईश्वरी उपहार है
 जब आप योग करके व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपने अंदर सकात्मक चिंतन की वृत्तियों का निर्माण करते हैं, जो आपका यह पुरुषार्थ समाज के लिए बहुत बड़ा सहयोग होता है। धन ,भौतिक वस्तुओं एवं साधनों से समाज के निर्बल लोगों का सहयोग करना सहज होता है। स्थूल साधनों से समाज के लोगों को सहयोग भी करना चाहिए। परंतु मानसिक रूप से निर्बल लोगों का धन और स्थूल साधनों से सहयोग की आवश्यकता नही होती है ।प्राय देखा जा रहा है कि भौतिक साधनों और सुविधाओं से संपन्न लोग मानसिक रूप से निर्बल हो रहे हैं। सैकड़ों बुझे हुए दीपक मिलकर भी एक दीपक को प्रज्वलित नहीं कर सकते हैं। एक प्रज्ज्वलित दीपक ही सैकड़ों बुझे हुए दीपक को प्रज्वलित कर सकता है। इसी प्रकार नकारात्मक एवं निर्बल मानसिकता वाले लोग एक बेहतर समाज और सशक्त भारत के नव निर्माण में अपना योगदान नहीं दे सकते हैं ।सकारात्मक चिंतन वाला मनुष्य अपने आसपास मौजूद सैकड़ों हजारों नकारात्मक सोच और जीवन से निराश लोगों के जीवन में अपने सकारात्मक चिंतन से नई ऊर्जा का संचार करते हुए समाज की दशा और दिशा को बदल सकता है ।वर्तमान समय में जीवन में सकारात्मक सोच को विकसित करना एक चुनौती है क्योंकि हमारे आसपास का वातावरण नकारात्मक वायुमंडल से घिर गया है ।परंतु यह सहज और संभवहै।
प्रायः हर एक व्यक्ति के मन में या तो स्वयं से या दूसरों से शिकायत है । इससे मनुष्य का जीवन नकारात्मक वातावरण से घिरने लगता है ।जीवन में सकारात्मक चिंतन का विकास केवल ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग के अभ्यास द्वारा ही किया जा सकता है। शारीरिक क्रियाओं पर आधारित योगाभ्यास से केवल हमारा शरीर तो स्वस्थ हो सकता है परंतु मन में केवल ज्ञान और विवेक के आधार पर ही सकारात्मक और स्वस्थ बनाना संभव है ।क्योंकि यह शरीर का कोई स्थूल अंग नहीं होता है। मन अति सूक्ष्म और चेतना का क्रियात्मक स्वरूप होता है ।अतः समाज का परोपकार करने के लिए योग से सबका सहयोग करे।
नीरज श्रीवास्तव संगठन् मंत्री उपसा ने योग के विषय मे बताया की 
करे योग रहे निरोग वर्तमान  के युवा होते बच्चों और युवा पीढ़ी को अपने सपनों से किसी भी प्रकार से समझौता स्वीकार नहीं है ।इसके लिए वे सभी प्रकार की कीमत को चुकाने के लिए तैयार रहते हैं ।स्वास्थ्य की देखभाल और मानवीय संवेदनाओं का जीवन में विकास युवा पीढ़ी के युवा पीढ़ी के चिंतन के केंद्र से बाहर होता जा रहा है । इसका दुष्परिणाम हमारी युवा पीढ़ी को भुगतना पड़ रहा है ।विगत कुछ वर्षों में युवा में हार्ट-अटैक, मानसिक तनाव, अवसाद के कारण मृत्यु की घटनाएं अधिक देखने को मिल रही है। कई अभिनेताओं की हुई असामयिक मृत्यु ने जनमानस को झकझोर कर रख दिया है। आखिर यह जीवन का लक्ष्य भी किस काम का है जिसमें जीवन की अंतिम यात्रा में शांति ना हो।
जीवन काल में लंबे समय तक सक्रिय रहने के लिए बाल्यकाल से ही तन और मन को स्वस्थ बनाने के लिए योग को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बहुत ही आवश्यक है । नियमित रूप से योग करने तथा सात्विक भोजन से विशेषकर मानसिक तनाव और उत्पन्न होने वाली असाध्य बीमारियों के कारण और असामयिक मृत्यु दर पर नियंत्रण पाना संभव है। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा  कि 80% स्वास्थ्य संबंधी समस्या का कारण मनोदैहिक बीमारियां हैं। उदाहरण के लिए ,मानसिक तनाव के कारण ब्लड प्रेशर की बीमारी प्रारंभ में होती है। बाद में इसके कारण शुगर तथा लीवर और किडनी के फेल होने की बीमारी मृत्यु का कारण बन जाती है। निरोग रहने के लिए अपनी दिनचर्या में योग को सम्मिलित करना समय की मांग है। यह सत्य है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। भावनात्मक रूप जीवन में उतार- चढ़ाव आने पर शरीर में अनेक प्रकार के हानिकारक हार्मोन उत्पन्न होते हैं। -आचार्य कुमकुम शास्त्री ने बताया की  शोध से यह ज्ञात हुआ है कि असाध्य बीमारी कैंसर की उत्पत्ति का एक कारण मानसिक आघात भी है।
योग: कर्मसु कौशलम् भौतिक समृद्धि और उपलब्धियों के लिए जीवन में सक्रियता और कुशलता आवश्यक है। घोर स्पर्धा के वर्तमान युग में थोड़ा भी आलस्य जीवन में आगे बढ़ने के अवसरों को छीन लेता है ।जीवन में उन्नति के अवसरों के लिए कर्म में कुशलता और व्यवहार में सहजता अति आवश्यक है। आहार और दिनचर्या को व्यवस्थित करके ही वर्तमान स्पर्धा युग में टिकना संभव है। स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही जीवन में भारी तबाही का कारण बन सकती हैं इसलिए कर्म में कुशलता आवश्यक है ।गीता में स्पष्ट कहा गया है -'योग से कर्म में कुशलता आती हैं ।वर्तमान समय में मनुष्यो को कौशल विकास केंद्रों में प्रशिक्षण देकर कार्यकुशल बनाने का प्रयास किया जा रहा है ।परंतु ट्रेनिंग से एक सीमित सीमा तक ही कर्म में कुशलता लाना संभव हो पाता है। इसलिए कर्म में और असीमित कुशलता के लिए योग ही एकमात्र विकल्प है ।राजयोग के अभ्यास से मन में अंतर्निहित शक्तियों और चेतना के नए आयामों के विकास की नई संभावनाएं सदा बनी रहती है। इसलिए हाल ही के वर्षों में कारपोरेट सेक्टर व्यापारिक संस्थानों और कारखानों में काम करने वाले लोगों में योग के प्रति आकर्षण देखा जा रहा है। योग को दिनचर्या में नियमित रूप से सम्मिलित करने पर तनाव मुक्त होकर कर्म कुशलतापूर्वक अपने दायित्व का करना संभव है।
अरविन्द राय अध्यक्ष उपसा ने बताया की 
मानवता के लिए योग योग में समस्त मानवता का कल्याण निहित है। योग किसी एक धर्म विशेष से संबंधित नहीं है। योग एक ऐसी क्रिया है जो प्रत्येक मनुष्य के तन और मन पर सार्वभौमिक रूप से प्रभाव डालती है ।योग हमारी आंतरिक सुरक्षा प्रणाली और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती हैं ।गीता में स्पष्ट कहा गया है - काम ,क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार नर्क का द्वार है' अर्थात इन तीव्र नकारात्मक आवेगो के कारण हमारे तन और मन में रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। नकारात्मक मनोदशा की अवस्था में धर्म के अनुकूल आचरण करना असंभव होता है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर उत्तरा प्रदेश राज्य अद्योगिक संघ  द्वारा जीवन में सकारात्मक मन की अनुभूति के लिए आयोजित विशेष योग कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए ईश्वरीय निमंत्रण है। राजयोग का अभ्यास और स्वयं परमात्मा द्वारा दिया गया ईश्वरी ज्ञान का नियमित अनुश्रवण आपके जीवन का कायाकल्प करने में समर्थ है ।योग के प्रयोग और सात्विक आहार का तन और मन पर चमत्कारी प्रभाव पड़ता है। राजयोग के जीवन में घटित हो रही तथा होने वाली घटनाओं का रहस्य स्पष्ट होने से जीवन सहज और व्यर्थ चिंतन और दुखों से मुक्त हो जाता है ।
हमारे जीवन का नियंता कोई बाह्य शक्ति नहीं  बल्कि हमारा मन ही है ।राजयोग मन को सहज साधने का विज्ञान है ।
अनंत चंद्र ,प्रबंध निदेशक वेंटूरा ट्रांसफार्मर ने आह्वान किय की 
आईये,स्वयं के और मानवता के सुख में भविष्य के लिए राजयोग को अपने जीवनशैली में अपनाकर एक सशक्त और स्वर्णिम भारत के नवनिर्माण में अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें । सर्व मनुष्यात्माओं को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर परमात्मा की ओर से ईश्वरी संदेश है ।