पहला मुद्दा, प्रस्तावित समझौते में मुख्य रूप से अवैध, गैर-सूचना और अनियमित (IUU) मछली पकड़ने पर सब्सिडी खत्म करने की बात शामिल थी। खास बात है कि यह मुद्दा करीब 21 सालों से चर्चा में है। साथ ही मसौदे में जरूरत और क्षमता से ज्यादा मछली पकड़ने पर सब्सिडी रोकने की बात भी कही गई है। WTO के विकासशील सदस्य मौजूदा समझौते के तहत मिलने वाली सभी सब्सिडी को हटाना चाहते हैं। इसपर गोयल ने कहा, 'मछली पकड़ने वाले हर परिवार को भारत एक साल में 15 अमेरिकी डॉलर सब्सिडी देता है। वहीं, ऐसे भी देश हैं जहां एक परिवार को 42 हजार डॉलर, 65 हजार डॉलर और 75 हजार डॉलर की सब्सिडी मिलती है। यह असमानता की सीमा है, जिसे एक प्रक्रिया बनाने की कोशिश की जा रही है।'
भारत में मछलीपालन का आंकड़ा समझें
भारत में मछुआरों के करीब 90 लाख परिवार है, जो आजीविका के लिए सरकार पर निर्भर हैं। 2018 के आंकड़े देखें, तो भारत में छोटे मछुआरों को महज 277 मिलियन डॉलर सब्सिडी मुहैया कराई है। यह चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों के मुकाबले काफी कम है।
गोयल का कहना है, 'मैं देखता हूं कि कई देश अपने मछुआरों को लेकर चिंतित हैं। लेकिन इनकी संख्या कितनी है? एक केपास 1500 हो सकते हैं, दूसरे के पास 11 हजार होंगे... भारत के 90 लाख से ज्यादा मछुआरों के परिवारों से ज्यादा छोटी संख्या में मछुआरों की चिंता है। यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। यही कारण है कि भारत इसका विरोध करता है।'
दूसरा मुद्दा, भारत दूर दराज के पानी में मछली नहीं पकड़ने वाले विकासशील देशों के लिए सब्सिडी प्रतिबंध से छूट के लिए 25 साल की अवधि की बात कर रहा है। हालांकि, प्रस्तावित मसौदे में यह अवधि महज 7 साल ही रही। गोयल नेक हा कि यह हमारे और दूर के पानी में मछली नहीं पकड़ने वाले देशों के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा, 'हमें लगता है कि 25 साल के ट्रांजिशन पीरियड के बगैर हमारे लिए चर्चा को अंतिम रूप देना संभव नहीं होगा, क्योंकि हमारे कम आय वाले मछुआरों की समृद्धि के लिए यह जरूरी है।'
तीसरा मुद्दा, प्रस्तावित मसौदे में मछुआरों को सब्सिडी देने के लिए भौगोलिक सीमा को 12 नॉटिकल मील से 200 नॉटिकल मील करने का मुद्दा पर चर्चा में रहा। केंद्रीय मंत्री ने आरोप लगाए हैं कि विकसित देश समुद्र का दोहन कर रहे हैं।