भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में भी चौंकाने वाली सफलता हासिल की है। एक तरफ उसने हरियाणा में कार्तिकेय शर्मा को जिताकर अजय माकन को उच्च सदन में पहुंचने से रोक दिया तो वहीं महाराष्ट्र में तीन सीटों पर जीत हासिल कर ली, जबकि वह दो ही जीतने की स्थिति में थी। विपक्ष में होते हुए भी सत्ताधारी गठबंधन को इस तरह का झटका देना भाजपा की बड़ी सफलता माना जा रहा है। हालांकि इस पूरे घटनाक्रम की इनसाइड स्टोरी यह है कि महाविकास अघाड़ी को करारा झटका देने में शिवसेना के ही एक पूर्व नेता का अहम रोल है, जिनका नाम आशीष कुलकर्णी है।
आशीष कुलकर्णी कभी शिवसेना में थे और बाल ठाकरे के भी करीबी माने जाते थे। लेकिन अब वह भाजपा में हैं और पार्टी को शिवसेना कैंडिडेट को हरा तीसरी राज्यसभा सीट जिताने की पटकथा लिखने वाले प्रमुख नेता हैं। देवेंद्र फडणवीस के करीबी नेताओं में से एक आशीष कुलकर्णी फिलहाल प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। शिवसेना से करियर की शुरुआत करने वाले कुलकर्णी 2003 में कांग्रेस में थे और फिर कुछ साल पहले ही भाजपा में आ गए। शनिवार को आए राज्यसभा नतीजों में भाजपा के तीसरे कैंडिडेट धनंजय महादिक ने जीत हासिल कर ली और शिवसेना के संजय पवार को हार झेलनी पड़ी।
कैसे कुलकर्णी की रणनीति से मिला फायदा
भाजपा के एक नेता ने अपनी रणनीति को लेकर बताया, 'हमारी इस चुनाव को लेकर साफ स्ट्रेटजी थी। हमने सबसे ज्यादा 48 वोट केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और पूर्व मंत्री अनिल बोंडे को दिए। इसके बाद सभी विधायकों ने दूसरी प्राथमिकता के वोट महादिक को दिए, जो तीसरे कैंडिडेट थे। इस प्लान को कुलकर्णी ने तैयार किया और फिर देवेंद्र फडणवीस ने अंजाम दिया। इसमें अश्विनी वैष्णव ने भी साथ दिया।' गोयल और बोंडे को 48 वोट मिले, जिनका मूल्य 4800 था और दूसरी प्राथमिकता के सारे मत महादिक को ट्रांसफर हो गए।
भाजपा नेता बोले- फडणवीस की रणनीति को मानना होगा
भाजपा के नेता ने कहा कि भाजपा को कुल 106 विधायकों के मत हासिल हुए। 8 निर्दलियों के अलावा 9 और वोट महादिक को मिल गए। उन्हें मिले कुल वोटों का मूल्य 4,156 था। भाजपा लीडर ने कहा कि कुलकर्णी की ओर से तैयार की गई रणनीति को फडणवीस ने मजबूती के साथ बढ़ाया। इस प्लान की फडणवीस और वैष्णव के अलावा किसी को जानकारी नहीं थी। फडणवीस ने निर्दलीय विधायकों और छोटे दलों के लोगों को साथ लेकर रणनीति को अंजाम दे दिया। उनकी स्किल को मानना होगा। बता दें कि आशीष कुलकर्णी ने दो दशक पहले शिवसेना छोड़ी थी, जब बाल ठाकरे ने उद्धव को आगे बढ़ाया था। दरअसल आशीष के नारायण राणे से अच्छे रिश्ते थे, जिनकी उद्धव से हमेशा से अदावत रही है।