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पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी को प्रत्याशी तय करने में पसीने छूट गए। खासी ऊहापोह व विचार मंथन के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को चुनाव मैदान में उतार दिया। अब अपनी वर्तमान सीट को बचाने के लिए उन्हें एक साथ भाजपा व बसपा से जूझना होगा। आजमगढ़ की दस विधानसभा सीट जीतने वाली सपा का यहां प्रदर्शन कई संकेत देगा।
असल में आजमगढ़ की चुनावी बिसात में मायावती व भाजपा ने सपा से पहले अपने प्रत्याशी का ऐलान कर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। सपा खेमे से पिछले कुछ दिनों से कई नाम प्रत्याशी के रूप में सामने आए। चर्चाओं और कयासबाजी आखिर समय तक चली। पहले सपा ने स्वर्गीय बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद को लड़ाने का निर्णय लिया। इस बीच विधायक रमाकांत यादव का नाम भी उछला। जब यह तय हुआ कि सैफई परिवार के एक सदस्य को सीट जाएगी तो धर्मेंद्र यादव, डिंपल यादव व अंशुल यादव तीनों की अलग-अलग वक्त में चर्चा चली। सबसे पहले डिंपल यादव को प्रत्याशी के तौर पर माने जाने लगा लेकिन सपा को अहसास था कि यह सीट उनके लिए जीत के लिहाज से पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।
इसके बाद धर्मेंद्र यादव को चुनाव के लिए मनाया जाने लगा। बदायूं से सांसद रहे चुके और वहीं की सियासत में सक्रिय धर्मेंद्र यादव को आजमगढ़ सीट जिताना प्रतिष्ठा का सवाल है। अखिलेश के लिए भी अपनी वर्तमान सीट को बनाए रखना उनके राजनीतिक कौशल का इम्तहान होगा। चूंकि चुनौती भाजपा ने लोकप्रिय दिनेश निरहुआ को उतार दिया है। क्या आजमगढ़ में आम चुनाव के नतीजे उपचुनाव में भी दोराहे जाएंगे या नतीजे इसके विपरीत आ सकते हैं। बसपा ने गुडडू जमाली को मैदान में उतारा है।
आजमगढ़ में हो सकता है वोटों का ध्रुवीकरण
देश के मौजूदा सियासी हालात में नूपुर शर्मा का मुद्दा वोटों के ध्रुवीकरण का सबब बन सकता है। अल्पसंख्यक वर्ग सपा के पक्ष में लामबंद हो सकते हैं लेकिन गुडडू जमाली के लिए चुनौती है कि वह अल्पसंख्यकों को कितना अपने साथ जोड़ सकते हैं। भाजपा के लिए ध्रुवीकरण की स्थिति भी मुफीद रहेगी। सपा को अपने एमवाई समीकरण पर पूरा भरोसा है। पर मुश्किल यह है कि सपा के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए दिनेश यादव निरहुआ पूरी शिद्दत से जुटे हैं, तो मुस्लिम वोट में सेंधमारी की बड़ी उम्मीद बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को भी है।