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अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ज्ञानवापी विवाद पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा, "विहिप के गठन से पहले अयोध्या संघ के एजेंडे में भी नहीं थी। ज्ञानवापी पर भागवत के भाषण को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। बाबरी मस्जिद के लिए आंदोलन को याद करें जो ऐतिहासिक कारणों से आवश्यक था। उस समय आरएसएस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान नहीं किया और इसमें भाग लिया। फैसले से पहले मस्जिद को तोड़ा। क्या इसका मतलब यह है कि वे ज्ञानवापी पर भी कुछ ऐसा ही करेंगे?"

ओवैसी ने भाजपा प्रमुख जगत प्रकाश नड्डा और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की ओर से देश में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के आश्वासन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "इन मुद्दों पर आश्वासन देने के लिए मोहन या नड्डा कौन हैं? उनके पास कोई संवैधानिक पद नहीं है। प्रधानमंत्री कार्यालय को इस मुद्दे पर और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के बारे में स्पष्ट संदेश देना चाहिए। उन्होंने संविधान की शपथ ली है। अगर वह इसके साथ खड़े होते हैं, तो इस हिंदुत्व को रोकना होगा।"

'पालनपुर प्रस्ताव में अयोध्या एजेंडे का हिस्सा बना'
AIMIM प्रमुख ने कहा, "विश्व हिंदू परिषद (आरएसएस का एक संगठन) बनने से पहले अयोध्या मंदिर संघ के एजेंडे में भी नहीं था। 1989 में भाजपा के पालनपुर प्रस्ताव में कहा गया था कि अयोध्या एजेंडे का हिस्सा बन गया है। आरएसएस ने राजनीतिक दोहरापन सिद्ध किया है। काशी, मथुरा, कुतुब मीनार आदि मसले उठाने वाले सभी जोकरों का संघ से सीधा संबंध है।" मालूम हो कि विश्व हिंदू परिषद का गठन 1964 में आरएसएस नेताओं एमएस गोलवलकर और एसएस आप्टे की ओर से किया गया था। आरएसएस का गठन सितंबर 1925 में हुआ था।

'संघ की पुरानी रणनीति है कि...'
ओवैसी ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "संघ की पुरानी रणनीति है कि जब चीजें अलोकप्रिय होती हैं तो बाद में उनका मालिक बन जाता है। कोई भी गोडसे और उनके दोस्त सावरकर को याद करता है? बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान भी कुछ लोगों ने कहा कि वे शीर्ष अदालत के आदेशों का पालन करेंगे, जबकि अन्य ने कहा कि यह आस्था का मामला है और अदालत फैसला नहीं कर सकती। आप जानते हैं कि ये लोग कौन हैं।"