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मेरे समस्त गुरु भाई बहनों एवं प्रबुद्ध मित्रों हमारा जीवन परमपिता परमात्मा की अमूल्य धरोहर है उसने 84लाख योनियों में समस्त श्रष्टी में एक भी जीव , वनस्पति एवं वस्तु या अपनी सरल भाषा में कहें कि एक भी तिनका ब्यर्थनहीं बनाया है पृकृति प्रदत्त समस्त श्रष्टी में ईश्वर ने केवल एक मानव का निर्माण ही विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया है ।
समस्त श्रष्टी में ८४ लाख योनियों में केवल एक मानव मात्र है जिसे विधाता ने विवेक दिया है और इसी विवेक के आधार पर केवल मानव मात्र की कुंडलिनी शक्ति जागृत हो कर नर से नारायण बनने की ओर अग्रसर हो सकता है । इसीलिए हमारे शास्त्रों ने बार बार इस बात पर जोर दिया है कि मानव जीवन दुर्लभ है और हम आप कभी भी कुछ क्षण बैठकर यह विचार नहीं कर पाते कि आखिर हमारे ऋषियों ने इस बात को इतना बल देकर क्यों कहा है , उन्होंने वह सब प्राप्त कर ,भोग कर देखा और तब अपनी दिव्य दृष्टि से बडे़ बडे़ ढेरों गृन्थो की रचना की कि हम भी पूर्ण गृहस्थाश्रम में रहकर उस ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन का मापन करते हुए अंत में
अपने प्रभु के परमधाम को प्राप्त हो सकें।आप कदापि भ्रम में न रहें हमारे सभी ऋषि मुनि पूर्ण गृहस्थ थे।
क्या हमने कभी इस विषय पर एक क्षण के लिए कभी विचार किया है ? अपने अन्तर्मन को कभी टटोल कर देखा है ? हम इस पृथ्वी तल पर क्यों हैं? क्या हमारा जीवन केवल मैथुन, निद्रा और भोजन मात्र के लिए हुआ है ? और अंत में हम शम्शान में जाकर चिर निद्रा में सो जाते हैं , क्या यही जीवन है ?
यदि यही जीवन है तो , समस्त श्रष्टी में चौरासी लाख योनियों में सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करें ,चिंतन करें
देखें कि छोटे बडे़ सभी जीव भूमिचर,जलचर ,नभचर पशु पक्षी कीट पतंगे सभी सम्पूर्ण जीवन इन्ही उपरोक्त तीन कार्यों हेतु ही भोग कर रहे हैं ।
अब प्रश्न यह उठता है कि हममें और चौपाये पशुओं में मूलभूत भिन्नता क्या है? हमें विवेक की( स्पेशल पावर) ऊर्जा शक्ति जो प्रभु ने प्रदान की है उसका प्रयोजन क्या है ?
हमारे ऋषियों के वचन , उनमें वर्णित त्रिगुणात्मक इतरलोक के प्राणी ,देवी देवता , ब्रह्मा ,बिष्णु और महेश
सब कपोल कल्पित अवधारणाएं हैं ? क्या इनका कोई अस्तित्व है भी अथवा नहीं ? मां भगवती ,दुर्गा , सरस्वती काली ,राम कृष्ण हनुमान हैं भी या नहीं , अनेकों नेक विधर्मियों ने हमारे शास्त्रों को खंडित कर हमारी आने वाली पीढ़ियों को दिग्भृमित कर मस्तिष्क शून्य कर दिया है ,हमें तमाम अनसुलझे प्रश्नों के मध्य खड़ा कर दिया है।
जब हम इन सब प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए इस दैनिक आपाधापी के झंझावातों की सांसारिक भीड़ से
एक कदम बाहर की ओर बढ़ते हैं ,बस यहीं से प्रारम्भ होती है हमारी पशुता से मनुष्यता की यात्रा ,तत्वज्ञान की यात्रा,बुद्धत्व की यात्रा । गुरु खोज की अनंत यात्रा।
अब हमें आवश्यकता होती है एक अनुभवी व्यक्तित्व की जो उस रास्ते का अनुगामी हो ,जिसने ब्रम्ह का साक्षात्कार किया हो जो हमारे और ब्रम्ह के बीच सेतु का कार्य कर सकें । हम यह भली भांति जानते हैं कि जिसे हम पहचानते ही नहीं हम उसके पास से ही निकल जाएं तो हम उसे कैसे पहचानेंगे और हम उसे अपनी इन छल झूठ फरेब ब्यभिचार और मक्कारी से लबालब भरी आंखों से ढूंढ़ने इस भव सागर में निकल पड़ते हैं जो नितांत कष्टप्रद औरदुष्कर कार्य है।
जबकि गुरु तो आपके दरवाजे पर खड़े है उन्हे इंतजार है केवल आपकी एक आर्त पुकार की जो हृदय के पट को खोलकर निकले ,केवल आपके कंठ से निकलती हुई न हो ।उसके लिए आपको किसी लम्बे चौड़े विधान की आवश्यकता नहीं है ।मैं आपको सर्वथा अत्यन्त सरल , साधारण विधि से गुरु खोज का उपाय बतलाने का अथक प्रयत्न कर रहा हूं जो शायद आपको अन्यत्र हजार ग्रन्थों को खंगालने पर भी प्राप्त होना दुर्लभ होगा ।
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को उसका शौभाग्य कभी न कभी एक बार ही सही दस्तक अवश्य देता ही है माध्यम कुछ भी हो ,जागरूक होता है लपक लेता है , ढुलमुल होता है खड़ा रह जाता है ।आप सभी गुरु भाई बहनों एवं मित्रों से मेरी अपेक्षा है कि आप पोस्ट अध्य्यन करने के उपरांत जो भी आपके सम्पर्क में आध्यात्मिक छटपटाहट युक्त नवीनतम अल्लहड़ , तर्क़ युक्त ,वाचाल ,अपने को नास्तिक कहने वाला व्यक्ति नौजवान आपसे अत्यधिक सवाल जवाब करनेवाला , जिज्ञासु आता है तो उसे आप मात्र एक पखवारे के लिए ही सही निम्न विधि द्वारा गुरु प्राप्ति का सरल साधन अवश्य बतलाइएं हो सकता है आपके माध्यम से ही परमपिता उसका कल्याण कर दें आपको इस नेक कर्म पुण्य फल का भागी बना दें ।आपके भाग्य के बन्द ताले की चाबी भी वही ब्यक्ति हो ।क्या पता कौन किसका किस विधि से भाग्य विधाता हो जाए , कल्याण का माध्यम बन जाए।
आठ बजे सो कर उठने वाले बेड टी पीने वाले को यह पहाड़ की चढ़ाई से कम कठिन कार्य नहीं है केवल आप
एक बार ही सही साहस हिम्मत बंधवाकर खड़ा कर दें बाद में सब हो जायेगा ।
एक ऐसा जिज्ञासु जो इस संसार रूपी मिथ्या जगत के रोज़ रोज़ के झूठ छल फरेब के अंधेरे कमरे की खिड़की खोल कर आध्यात्मिक सूर्य की झलक पाने का अभिलाषी है जीवन के सत्य का दर्शन करना चाहता है।लेकिन जाए तो जाए कहां ? सर्वथा पहली बारलिपिबध्य सर्वोत्तम सरलतम नितांत नये व्यक्ति के लिए गुरु खोजने का साधन,:-------
आप ब्रह्म मुहूर्त में यानि साढ़े चार बजे उठ जायें , दैनिक क्रिया से निवृत होकर स्नान कर धुले हुए कोई भी वस्त्र वातावरण के अनुसार जो भी उपलब्ध हों धारण कर एक आसन घर के किसी कोने में किसी वस्त्र का बिछा लें ठीक पांच बजे बैठ जाएं सामने एक बाजोट(लकड़ी के टुकड़े पर ) कोई छोटा वस्त्र का टुकड़ा बिछाकर उस पर एक मिट्टी का सकोरा रखकर उसमें कोई भी खाद्य तेल (जो आपकी रसोई में उपलब्ध हो ) डालकर रुई की बत्ती डाल कर जला दें । ध्यान रहे कि आपके सामने आपके दाहिने हाथ पर दीपक हो और बाएं हाथ की तरफ किसी पात्र में धूप बत्ती जला दें और सवा पांच से छः बजे तक केवल पौने घंटे तक उस दीपक की लौ के अंदर की तरफ देखने की कोशिश करते हुए निम्न मंत्र का अनवरत (लगातार)जप करना है
मंत्र है :----।। ऊॅं गुरुभ्यो नमः ।।
मेरा अनुभव और मेरा दावा है कि आप को कहीं अपने पच्चीस जन्मों के साक्षीभूत सद्गुरु को ढूंढने जाने की आवश्यकता नहीं है किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है कहीं दर दर भटकने की आवश्यकता नहीं है।आपका सशक्त गुरु आपको किसी न किसी माध्यम से ऐसे खींच लेगा जैसे अथाह सागर में तैरती मछली को मछुआरा बंशी में फंसाकर खींच लेता है और जब आप की आंख खुलेगी तो आप अपने गुरु के चरणों को अश्रु पूरित नेत्रों से प्राक्षालित कर रहे होगे । मैं समझता हूं कि यदि आपका सौभाग्य जागृत होकर आप तक यह ऋषि पंक्तियां पहुंच कर आपके मन और हृदय के वीणा के तारों को झंकृत कर सकें आप के अंदर का सागर हिलोरें लेकर मचल सके मैं अकिंचन आप और आपके इष्ट के मध्य सेतु बनकर आपको आपके अभीष्ट सिद्धि सक्षम गुरु तक पहुंचा सकूं यह मेरा परम सौभाग्य होगा आप अपने गुरु के चरणों में बैठ कर उनके सम्मुख मुखारबिंद से सदेह उपस्थिति होकर गुरुदीक्षा प्राप्त कर , रोज शामको मरकर सुबह चाय के साथ जिन्दा होने वाले जीवन से मुक्ति प्रादान करवाकर आपके अभोज्य पदार्थों के सेवन से मुक्त कर अपने पिछले जीवन ,इस जीवन और अगले जीवन की कड़ी को समझ कर अपने जीवन में वह सब प्राप्त कर सकें जो आपका अभीष्ट है जो आपका लक्ष्य है ,इस मानव देह की सार्थकता है।
पृथ्वी तल पर आने का मूल उद्देश्य है ,जिस लिए विधाता ने आपको देवदुर्लभ मानव जीवन प्रदान कर आप पर महती कृपा की है ।मैं आपको हृदय से आशीर्वाद प्रदान करता हूं आप अपने गुरु के चरणों में पहुंच सकें , इस पशुवत जीवन से उपर उठकर देवतुल्य जीवन प्राप्त
कर गुरु मय होकर इसी जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकें ।अपने जीवन को धन्य कर सकें ।आप नदी बनों तो सही समुद्र बाहें फैलाए खड़ा है आपको अपने अंक में समेट लेने के लिए ,अपने आप में मिला लेने के लिए ।एक गुरु रूपी सागर की भावना को नदी तुल्य शिष्यशिष्याओं का भाव कवि ने किस तरह शब्दों में पिरोया है ।
हम खड़े तीर पर कबसे ,तुम तनिक नहीं रुकते हो ।
हम बाट जोहते कबसे , तुम मुड़कर चल देते हो ।।
तुम हिम खंडों ने निकली , सौ सौ बल खाती आना ।
अंतिम मैं लक्ष्य तुम्हारा , तुमको मुझ में मिल जाना ।।,