विश्व दुग्ध दिवस 1 जून को पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दूध के संबंध में लोगो का ध्यान आकर्षित करना एवं दूध उद्योग से जुड़ी गतिविधियों के प्रचार-प्रसार के लिए अवसर प्रदान करना है।
इस उत्सव में वर्ष दर वर्ष भाग लेने वाले देशों की संख्या बढ़ती ही चली जा रही है। पूरे विश्व भर में दूध और दुग्ध उद्योग से संबंधित क्रिया-कलापों को प्रचार-प्रसार में हर वर्ष ध्यान केन्द्रित करने के लिये इसे विश्व दुग्ध दिवस के रूप मैं मनाया जाता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्सव संबंधित क्रिया-कलापों को आयोजित करने के द्वारा इस उत्सव का राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है। पूरे जीवन भर सभी के लिये दूध और इसके उत्पादों के महत्व के बारे में लोगों में जागरुकता बढ़ाने के लिये इसे मनाया जाता है। भारत में सबसे पहले भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान इज्जत नगर बरेली में दुग्ध दिवस मनाया गया इसमें प्राकृतिक वातावरण को मानवीय रखते हुए इस थीम को रखा गया और संपूर्ण बरेली क्षेत्र में संस्थान के द्वारा लोगों को दूध बांटा गया और दूध के प्रति जागरूक किया गया , भारत की अर्थव्यवस्था में पशुधन का महत्व विभिन्न तरह से है भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं। छोटे ग्रामीण परिवारों की आय में पशुधन का योगदान 16% था, जबकि सभी ग्रामीण परिवारों का औसत 14% था। पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह भारत में लगभग 8.8% आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है। भारत में विशाल पशुधन संसाधन हैं। पशुधन क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद का 4.11% और कुल कृषि जीडीपी का 25.6% योगदान है।दुनिया में सबसे अधिक भैंस की आबादी भारत में है में दुनिया का सबसे अधिक पशुधन भारत मैं है जो कि 535.78 मिलियन है। देश में गाय की संख्या सबसे अधिक है जो कि 192.49 मिलियन, भैंस 109.85 मिलियन हैं बकरियों की आबादी 148.88 मिलियन हैं। और भेड़ 74.26 लाख है अगर भविष्य को ध्यान रखते हुए हम प्राकृतिक खेती की तरह जाये तो देश की आम जनता को फ़र्टिलाइज़र युक्त खेती से निजात मिल सकती है जिस तरह उत्तर प्रदेश में आज बहुत से सामाजिक संघठन और कृषि विभाग द्वारा गौ आधारित खेती पर प्रशिक्षण दिया जा रहा जो की बहुत ही सहा रणीय है अगर आज हमारा जल थल और वायु स्वच्छ होगा तो हमारे आस पास का माहौल भी बहुत शुद्ध होगा और हमारे पशुओ को भी स्वच्छ बतावरण में रहने पर बहुत सारे रोगों से लड़ने की छमता व निजात मिलेगा, आज पर्यावरण के वेश्विक स्तर पर बात करे तो बहुत ही नाजुक हालत में सम्पूर्ण संसार गुजर रहा है और हमें अपने आस पास के जितने भी नदी तालाब एनिकट जहाँ जल का भंडार होता हो उनका बिशेष कर ध्यान रखना होगा जिससे की हमारी गौ आधारित खेती और प्रकृति के बीच समावेश बना रहे भारत सरकार ने हाल ही में घोषणा की थी की देश के हर जिले में 75 नदी, तालाब, बांध, पोखर जैसे स्थान का पुनः जीर्णोद्धार कराने का कार्य किया जायेगा बरगद के पेड़ को हम पशुपालन व धार्मिक दृष्टि से ले सकते हैं शुद्ध हवा और चारा प्रबंधन में भी उपयोग आयेगा क्योंकि जिस तरह से अशुद्धता के कारण रोगों के प्रति लड़ने की रोग प्रतिरोधक छमता खत्म हो रही है उसमे भी कंही न कंही पर्यावरण के साथ साथ दैनिक जीवन के खान पान का भी असर है और बरगद के पेड़ का हम ग्रामीण परिवेश में चौपाल लगा कर बैठने में भखूबी उपयोग कर सकते है क्यों की बरगद का पेड़ बहुत बिशाल होता है और दूर दूर तक उसकी छाया का एहसास होता है जिससे पर्यावरण भी संतुलन रहता है व पशुओ को स्वच्छ आहार के अलावा भी बतावरण का एहसास होगा और सामाजिक भाई चारा भी बढ़ेगा ये सिर्फ और सिर्फ गो आधारित खेती और प्राकृतिक समावेश के कारण ही हो सकता है और यही इसका अंतिम उपाय है जय हिंद !!
नीरज कुमार दीक्षित
रिसर्च स्कॉलर डेयरी टेक्नोलॉजी
शुअट्स कृषि विश्वविद्यालय प्रयागराज उत्तरप्रदेश