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दुर्लभ बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रोफी से पीड़ित एक 11 साल के बच्चे के हक में अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता के हालात को देखते हुए जिला अधिकारी को बच्चे के अभिभावक की जिम्मेदारी निभाने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि बच्चे की रोजाना की दिनचर्या के अलावा उसके उपचार का जिम्मा भी जिला अधिकारी का होगा।

कड़कड़डूमा स्थित परिवार न्यायालय के न्यायाधीश अजय पांडे की अदालत ने शाहदरा जिला अधिकारी को कहा है कि वह बच्चे की मां के साथ संयुक्त रूप से अभिभावक होंगे।

अदालत ने जिला अधिकारी को कहा है कि दुर्लभ बीमारी से पीड़ित होने के चलते बच्चे का वजन लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में बच्चे की रोजाना की दिनचर्या के लिए सरकारी खर्च पर पुरुष अटेंडेंट उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा अदालत ने जिला अधिकारी से कहा है कि वह सरकारी संगठन अथवा गैर सरकारी संगठन के माध्यम से बच्चे के पालन-पोषण, शिक्षा एवं कल्याण के मद्देनजर एक योजना तैयार करें। अगली सुनवाई पर इसे पेश करें। जिला अधिकारी बच्चे के उपचार के लिए आधुनिक मेडिकल साइंस का सहारा ले सकते हैं।

आदेश का तत्काल पालन किया जाए
अदालत ने तत्काल इस आदेश का पालन करने को कहा है। साथ ही यह भी कहा है कि बच्चे के उपचार, शिक्षा एवं कल्याण के लिए जिला अधिकारी उसकी कस्टडी ले सकते हैं। मां यदि चाहे तो जिला अधिकारी की कस्टडी में रह रहे बच्चे के साथ रह सकती है। बच्चे और उसके परिवार के हालात को देखते हुए अदालत ने जिला अधिकारी से फोन पर बात कर जल्द कदम उठाने को भी कहा है। अदालत ने गार्जियंस एंड वार्ड अधिनियम की धारा 18 का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत सरकार पर बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी बनती है।

बच्चे के पिता ने क्या कहा
बच्चे के पिता की तरफ से जवाब दाखिल किया गया कि वह बच्चे को संभालेगा तो नौकरी नहीं कर पाएगा। बमुश्किल अपना व गुजाराभत्ता देने लायक कमा पाता है। अदालत ने बच्चे के पिता की कमाई को लेकर रिपोर्ट तलब की तो पता चला कि उसकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। ऐसे में माता-पिता की खराब आर्थिक स्थिति के मद्देनजर अदालत ने कानून के विशेष प्रावधान का सहारा लेते हुए उसकी परवरिश की जिम्मेदारी जिला अधिकारी (सरकार) पर डाली है।

मस्कुलर डिस्ट्रोफी बीमारी से ग्रसित
बच्चे का जन्म 25 फरवरी 2011 को हुआ था। बच्चे के माता-पिता अलग रहते हैं। बच्चा मां के साथ रह रहा है। मां की तरफ से अदालत में याचिका दायर कर बताया गया कि बच्चा मस्कुलर डिस्ट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ति है। इस बीमारी के कारण बच्चा फिलहाल 40 किलोग्राम का है। उसका वजन लगातार बढ़ रहा है। एम्स ने बच्चे की बीमारी को लाइलाज बताया है। बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ में बच्चे का एक थेरेपी के माध्यम से उपचार संभव बताया गया है। लेकिन इसके लिए साल में चार सीटिंग लेनी होगी। प्रत्येक सीटिंग का खर्च खाने एवं रहने से अलग 50 हजार रुपये आएगा। मां का कहना था कि इतना खर्च उठाना उसके लिए असंभव है।

समान्य दिनचर्या संभालने में भी दिक्कत
मां की तरफ से अदालत में कहा गया कि बच्चे का वजन तेजी से बढ़ रहा है, जिसकी वजह से वह उसकी सामान्य दिनचर्या (शौच व मूत्र त्याग) भी नहीं संभाल पा रही है। बच्चे का वजन अधिक होने के कारण एक बार वह उसके हाथ से फिसल गया था।