कोरेाना वायरस महामारी के गंभीर और विनाशकारी परिणाम निस्संदेह महामारी से निपटने की तैयारियों की कमी के कारण बदतर हो गए लेकिन पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया को छोड़कर, जिन्होंने 2003 में सार्स के अपने अनुभव के बाद संक्रमण से रक्षा हासिल कर ली। इसलिए सरकारों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अन्य जानलेवा संक्रमणों के पैदा होने पर हमारी रक्षा के लिए रणनीतियां बनाना शुरू कर दें। भारत में हाल में निपाह वायरस फैलने ने यह सवाल पैदा कर दिए कि क्या हमें इसे भविष्य का खतरा मानने पर विचार करना शुरू कर देना चाहिए और अब हमारे रक्षा के शस्त्रागारों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। कोरोना वायरस, सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ टीकों के विकास ने इस महामारी से निपटने का रास्ता दिखाया। तो अगर अन्य संभावित खतरनाक संक्रमणों के लिए टीके बनाए जा सकते हैं और उनका भंडारण किया जा सकता है तो नए संक्रमण का पता चलने से पहले जल्द से जल्द इसकी शुरूआत करनी चाहिए।
निपाह वायरस की पहचान सबसे पहले 1998 में मलेशिया में की गयी। केरल में एक लड़के की हाल में हुई मौत जैसे मामलों ने ये चिंताएं पैदा कर दी कि यह संक्रमण की अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है जिससे व्यापक पैमाने पर संक्रमण फैल सकता है। यह स्थिति डरावनी है क्योंकि अभी इस संक्रमण की मृत्यु दर 50 प्रतिशत है और इसके उपचार के लिए कोई टीका नहीं बना है। लेकिन निपाह के खिलाफ टीकों के विकास में संसाधनों का निवेश करने से पहले हमें यह पता करने की आवश्यकताा है कि क्या यह वास्तविक महामारी का खतरा है। और अगर हां तो अन्य संक्रमण भी हैं इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि इसे प्राथमिकताओं की सूची में कौन से स्थान पर रखना चाहिए। निपाह के महामारी के खतरे का आकलन करना : खतरे का आकलन करने के लिए हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कैसे संक्रमण फैलता और वायरस कैसे अपनी संख्या बढ़ाता है। निपाह एक पैरामाइक्सोवायरस है। यह मानव वायरस, मानव पैराइंफ्लुएंजा वायरस से जुड़ा है जिनसे आम तौर पर सर्दी-जुकाम होता है। यह वायरस ‘फ्रूट बैट’ यानी चमगादड़ और उड़ने वाली छोटी लोमड़ियों से फैलता है जो दक्षिण तथा दक्षिणपूर्व एशिया में फैली हैं।